दरभंगा : काफी जोर शोर से चल रहे चुनाव प्रचार अभियान के बीच मिथिला की विरासत को समेटे हुये ऐतिहासिक शहर दरभंगा के निवासी 30 वर्षीय गोपाल झा कभी शाही महल रहे और किलों की ओर देखते हुये खुद को ठगा सा महसूस करते हैं. गोपाल का कहना है, ‘‘नेता हर चुनाव में यहां आते हैं, जोरदार भाषण देते हैं, अपने विरोधियों पर हमला करते है और फिर चले जाते हैं और केवल अगले चुनाव में वापस आते हैं. लेकिन दरभंगा और यहां के लोग अभी भी वहीं ठहरे हैं जहां थे, बल्कि हर चुनाव के बाद यहां हालात बदतर हुये हैं.”
दरभंगा, मधुबनी और पुर्णिया सहित बिहार के नौ जिलों में चुनाव प्रचार अभियान का शोर थम गया है. कल होने वाले विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन तीन जिलों में विशाल रैलियों को संबोधित किया था. दरभंगा शहर उत्तर बिहार के ऐतिहासिक तिरहुत क्षेत्र में आता है जो कभी दरभंगा राज रियासत की राजधानी थी. यहां के निवासियों का आरोप है कि सरकार एवं जनता की उदासीनता के कारण यह धरोहर शहर अपनी पहचान खोता जा रहा है.
यह क्षेत्र चार शताब्दियों से अधिक समय तक राजशाही के शासन में रहा और 1960 के दशक तक इसका भव्य वैभव रहा और तब इसके शाही भवनों और बागीचों की शान में लंदन के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कसीदे कढ़े गये थे. हालांकि इसके बाद, अंतिम महाराज कामेश्वर सिंह के 1962 में देहांत के बाद विरासत और जगह की अनदेखी हुयी और एक पर्यटक स्थल बनने के बजाय यह जगह कभी भी पर्यटन मानचित्र पर जगह बना सका.