।। दक्षा वैदकर।।
गलती कभी छोटी या बड़ी नहीं होती. गलती केवल गलती होती है. बच्चे हों या ऑफिस के कर्मचारी, जब भी वे गलती करें उनसे बात करनी चाहिए. यह सब इसलिए जरूरी है, ताकि वे बड़ी गलती करने की राह न पकड़ सकें. जब मैं छोटी थी, तब टीवी पर ‘विक्रम और बेताल’ सीरियल आता था. इसमें हर हफ्ते राजा विक्रम को बेताल एक नयी कहानी सुनाता था और अंत में पूछता था कि इस कहानी में कौन व्यक्ति सही है और कौन गलत?
वह यह भी धमकी देता था कि जल्दी जवाब दो, वरना तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे. जब राजा उत्तर बता देते, तो पहले तो बेताल उनकी तारीफ करता कि तुम्हारी तर्कशक्ति व निर्णय बिल्कुल सही है. उसके बाद वह यह कह कर उड़ जाता कि तुमने शर्त तोड़ दी और मुंह खोल दिया. अब लो मैं उड़ चला. इसी रोचक सीरियल में से एक कहानी इस प्रकार थी. एक डकैत को जब पकड़ लिया गया और पंचों ने उसे मृत्यु की सजा देने से पहले पूछा कि बताओ तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? डकैत ने जवाब दिया, ‘मैं अपनी मां के कानों में कुछ कहना चाहता हूं.’ पंच मान गये.
मां भी बेहद खुश हो गयी. उसे लगा कि बेटा जरूर मुङो अपने किसी छिपे खजाने की जानकारी देनेवाला है, ताकि उसके मरने के बाद मेरा जीवन अच्छे से गुजर जाये. बेटा मां के करीब आया. उनके कान के पास पहुंचा और उनका कान काट लिया. मां के कान से खून निकलने लगा. सभी ने उसे बेटे से छुड़ाया और बेटे से पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया? तब बेटे ने कहा, ‘जब मैं छोटा था, तो मैंने स्कूल में पेंसिल चुरायी थी.
मेरी मां ने यह सब जानने के बावजूद मुङो कुछ नहीं कहा था. उसके बाद मैंने पेन चुरायी, मेरी मां ने तब भी मुङो नहीं टोका. उसके बाद मैं पड़ोसियों की चीजें चुराने लगा और चोरी करना मेरी आदत बन गयी. मेरी मां को सब पता था, लेकिन उन्होंने तब भी मुङो एक शब्द नहीं कहा. आज अगर मैं डकैत बना हूं, तो इसके पीछे इनका ही हाथ है. यदि वह मुङो मेरी पहली ही चोरी पर डांटतीं, सजा देतीं, तो शायद आज मैं डकैत न होता, फांसी पर न चढ़ता.
बच्चों को हर बार यह सोच कर माफ न कर दें कि अभी वह बच्च है. उसे भी सही-गलत जरूर समझाएं. वरना कल वो आपको ही दोष देगा.
छोटी गलती पर ही सजा देना जरूरी है. तभी बड़ी गलती पर रोक लगेगी. सजा नहीं दी, तो सामनेवाला बड़ी गलती के लिए प्रोत्साहित होता है.