27.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा है मुड़मा जतरा का इतिहास

।।अमिताभ कुमार।।रांची के मांडर प्रखंड क्षेत्र में मुड़मा जतरा झारखंड का ऐतिहासिक जतरा है. इस जतरा को कितने दिनों से मनाया जाता है इसका आकलन कर पाना मुश्किल है. पश्चिम बंगाल, ओडिशा व छत्तीसगढ़ से भी खोड़हा (समूह) लेकर लोग इस जतरा में शामिल होते हैं. इस जतरा का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से बताया […]

।।अमिताभ कुमार।।
रांची के मांडर प्रखंड क्षेत्र में मुड़मा जतरा झारखंड का ऐतिहासिक जतरा है. इस जतरा को कितने दिनों से मनाया जाता है इसका आकलन कर पाना मुश्किल है. पश्चिम बंगाल, ओडिशा व छत्तीसगढ़ से भी खोड़हा (समूह) लेकर लोग इस जतरा में शामिल होते हैं. इस जतरा का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से बताया जाता है. पूर्वजों की मानें तो इस स्थल पर ही उरांव जनजाति और मुंडा जनजाति का मिलन हुआ. साथ ही दोनों में सांस्कृतिक समझौता भी हुआ था. इस जतरा की शुरु आत कार्तिक प्रतिपदा को होती है. चालीस पाड़हा के लोग अपने-अपने पड़हा के निशान काठ के हाथी, घोड़े, मगर, बाघ, चीता, मछली, झंडे व रंपा-चंपा के साथ नाचते गाते जतरा स्थल पर पहुंचते हैं और जतरा खूंटा की परिक्रमा कर खोड़हा (समूह) में बंट कर नाच गान प्रस्तुत करते हैं. चालीस पाड़हा के पहान, महतो, पुजार, मुड़ा, पैनभरा व विभिन्न राज्यों के सरना धर्म गुरु ओं द्वारा जतरा खूंटा की पूजा के साथ यह जतरा रांची जिले के मांडर में दो दिनों तक चलता है.

सिंधु घाटी सभ्यता और मुड़मा जतरा का संबंध

मुड़मा जतरा के प्रमुख और पाहन बंधन तिग्गा ने बताया कि इस जतरा का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से है. वो पिछले 16 साल से इसकी कमान संभाले हुए हैं. उन्होंने मुड़मा जतरा का इतिहास बताते हुए कहा कि जब उरांव जाती के लोग सिंधु घाटी से चले तो मुड़मा में उनका मिलन मुंडा जाती के लोगों से हुआ. यहां दोनों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक समझौता हुआ. यहां पर भाषा के आधार पर क्षेत्र का विभाजन हुआ. पूर्व का क्षेत्र मुंडाओं को मिला, जबकि पश्चिम का क्षेत्र उरांव जनजाति को दिया गया. पश्चिम का क्षेत्र छोटानागपुर कहलाया. इसे चार भागों में बांटा गया. सुरगुजा प्रदेश, छेछाड़ी प्रदेश, हीरो बरवे और खुखरा परगना. उरांव पहले बलि प्रथा नहीं मानते थे. वे जनेऊ धारण करते थे. जब दोनों के बीच सांस्कृतिक संधि हुई तो उरांव जनजाति के लोगों को अपने बाल और चोटी भी कटवानी पड़ी. कुछ उरांव जनजाति के लोग मुंडा जनजाति वालों के साथ पूर्व के क्षेत्रों में बस गये और उनकी संस्कृति के साथ-साथ उनकी भाषा भी उन्होंने सीखी.

क्या है पड़हा व्यवस्था

पाड़हा व्यवस्था उरांव जनजातियों की सबसे बड़ी सामाजिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था है. इस व्यवस्था के अंतगर्त न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका आती है जो गांवों में आज भी मौजूद है. झारखंड के 2484 भूमिहर गांव हैं. इन सभी गांवों में आज भी ये व्यवस्था कायम हैं. इस परंपरा के निर्वाहन करने के लिए लगभग ढाई सौ लाख एकड़ जमीन बेलगान है. धार्मिक कार्यो में जो भी लोग चुन कर आते हैं, उन्हें वेतन के रूप में इस जमीन की उपज दी जाती है. मुड़मा जतरा को अगर उरांव और मुंडा जनजाति का सुप्रीम कोर्ट कहा जाये तो गलत नहीं होगा. न्याय व्यवस्था के लिए सात, बारह और इक्कीस पड़हा का समूह बनाया गया है. गांव में किसी भी तरह के झगड़ा झंझट का निबटारा इन्हीं पड़हाओं के द्वारा किया जाता है. यदि इनके द्वारा समस्या का समाधान नहीं निकल पाता तो उसका फैसला मुड़मा में सुनाया जाता है. मुड़मा जतरा में सुनाया गया फैसला सर्वमान्य होता है. मौत की सजा के लिए मुड़मा में सेंदरा की व्यवस्था है.

राजकीय मेला घोषित होगा मुड़मा

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि मुड़मा जतरा मेला को राजकीय मेला घोषित किया जायेगा. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार आदिवासी व्यवस्था व धरोहर को बचाये रखने के लिए कृतसंकल्प है. मुड़मा जतरा भी राज्य की ऐतिहासिक धरोहर है. यह और भी भव्य व बेहतर हो, इसका इंतजाम करने का प्रयास राज्य सरकार करेगी. इस जतरा में आने वालों को कोई असुविधा न हो इसका सरकार विशेष ख्याल रखेगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें