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बदलाव दिखता है आदिम जनजाति बिरजिया में

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। सुखु बिरजिया खुश हैं, क्योंकि उन्हें अब मजदूरी के लिए हरियाणा नहीं जाना पड़ता. बेटा संजय भी गांव में रहता है. खेती–बारी देखता है. सुखु अपने गांव में ही फल की खेती और सब्जी से इतना कमा ले रहे हैं, जिससे पूरा परिवार का गुजर–बसर हो जाता है. 65 वर्षीय […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

सुखु बिरजिया खुश हैं, क्योंकि उन्हें अब मजदूरी के लिए हरियाणा नहीं जाना पड़ता. बेटा संजय भी गांव में रहता है. खेतीबारी देखता है. सुखु अपने गांव में ही फल की खेती और सब्जी से इतना कमा ले रहे हैं, जिससे पूरा परिवार का गुजरबसर हो जाता है.

65 वर्षीय सुखु बिरजिया आदिम जनजाति के हैं और विशुनपुर की नरमा पंचायत के बेइती गांव के बिरजिया टोली में रहते हैं. गांव में बिरजिया जनजाति के 12 परिवार रहते हैं. पास के ही रांगे गांव के तुसुरूटोला, लंगड़ाटांड़ में भी बिरजिया रहते हैं.

बिरजिया जनजाति के लोगों का रहनसहन अब बदल गया है. वे पढ़ाई पर भी ध्यान दे रहे हैं. सूरजो की बेटी मुनती कुमारी मैट्रिक पास कर गयी. अब उसकी श़ादी हो गयी है. रांगी टुसरूटोला के चंद्रेश बिरजिया इंटर पास कर शिक्षक बन गये हैं. उनकी बेटी अर्चना इंटर पास कर गयी है. बिरजिया जनजाति में लड़कियों का इंटर पास करना यह बता रहा है कि उनमें पढ़ाई के प्रति रूचि बढ़ी है.

यह सब बदलाव ऐसे ही नहीं आया है. क्षेत्र में विकास भारती के कार्यकर्ता, कृषि वैज्ञानिक पहुंचते हैं. खेती देखते हैं. उन्हें पौधा देते हैं. बताते हैं कि कैसे पौधा लगाना है. पौधे में अगर कीड़ा लगा हो, तो दवा देते हैं. प्रशिक्षण देते हैं. पहले तो किसी ने रूचि नहीं ली थी. सुखु आगे आये थे.

उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से आम के आठ पौधे दिये गये थे. कृषि वैज्ञानिक नीरज कहते हैंपहले लगा था कि एक भी पौधा नहीं बचेगा. वहां पानी ही नहीं था. सुखु आधा किलोमीटर दूर से पानी लाते थे. पौधों को उन्होंने बचा लिया. इससे सुखु का उत्साह बढ़ा. अब आम के 110 पेड़ हैं और इस साल उन्होंने नौ हजार का आम बेचा है.

सुखु को दुख इस बात का है कि उसके पास पीला कार्ड तो है, पर उसे वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती.उसके पास पांच एकड़ जमीन है. पहले सिर्फ उरद या बादाम लगाते थे. अब आम के अलावा कई और फलदार पौधे भी लगे हैं. थोड़ा ऊपर नेतरहाट के पास नाशपति की भी खेती होती है.

पेरवापाट गांव में सविता के पास नाशपति के चार पेड़ हैं, जिसमें लगभग 10 क्विंटल नाशपति फलता है. ऐसे मामले सिर्फ बिरजिया टोली या पेरवापाट में ही नहीं है, बल्कि विशुनपुर के अन्य क्षेत्रों में भी लगभग यही स्थिति है.

विशुनपुर से कुछ आगे है बनारी दीपाटोली. इसी गांव में शीला उरांव रहती हैं. संजीवनी संयुक्त महिला मंडल चलाती है. उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से केंचुआ खाद बनाने का प्रशिक्षण लिया. इस साल आठ बेड तैयार किया. अब तक 65 हजार का केंचुआ खाद बेच चुकी है. इस खाद की काफी मांग है.

शीला को बाहर भी नहीं जाना पड़ता. खाद तैयार होते ही विकास भारती उसे खरीद लेता है. इस काम में गांव के छोटेछोटे बच्चे उन्हें मदद करते हैं. आज स्थिति यह है कि शीला अपने पैर पर खड़ी है. उसका एक बेटा कोलकाता में पढ़ाई कर रहा है.

विशुनपुर के पास अब ग्रामीण नाइजर और टाऊ की खेती कर रहे हैं. ड्राइलैंड फार्मिग का बेहतर उदाहरण. सालम नवाटोली का काम देखते हैं वीरबल. कहते हैं कि लोगों में फल और औषधि प्लांट की प्रति रूचि बढ़ी है. सिंगबांगा आश्रम (बलातू) में हरि उरांव अपने बेटे माना उरांव के साथ मिल कर इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं. आम के 12 पेड़ अपने बगीचे में लगा चुके हैं जिनसे लगभग छह हजार की आय हुई थी.

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