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मोदी के रैली की लाइव रिपोर्ट : असर व उम्मीद दोनों अब भी कायम

हाजीपुर से लौट कर राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में अक्सर युवाओंसे पेड़ या दीवार से नीचे उतर आने की अपील करते हुए टीवी स्क्रीन पर दिखते हैं. वे अक्सर अपनी जनसभाओं में यह कहते हुए भी नजर आते हैं कि जहां तक नजर जा रही जनसैलाब ही जनसैलाब नजर आता है. उनके इन […]

हाजीपुर से लौट कर राहुल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में अक्सर युवाओंसे पेड़ या दीवार से नीचे उतर आने की अपील करते हुए टीवी स्क्रीन पर दिखते हैं. वे अक्सर अपनी जनसभाओं में यह कहते हुए भी नजर आते हैं कि जहां तक नजर जा रही जनसैलाब ही जनसैलाब नजर आता है. उनके इन अंदाजे बयां को जीवंत रूप मेंमहसूस करना एक अलग अनुभव है.

मौका था बिहार विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के लिए प्रधानमंत्री की हाजीपुर के नाइपरऔद्योगिक क्षेत्र के मैदान में रविवार को आयोजित जनसभा का. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसजनसभा मेंबड़ाजनसैलाब उमड़ा था.आदतन,कुछयुवा पेड़ की शाखाओं पर भी चढे थे औरखंभों पर भी.पर, इस बार पीएम ने किसी से पेड़ व खंभे से उतरने की अपील नहीं की, हां उन्होंने जनसैलाब को रैली नहीं रैला से एक कदम आगे बढते हुए परिवर्तन का मेला करार दिया. इसजनसभामें हाजीपुरजिले में पड़ने वालेसभी आठ विधानसभा क्षेत्रों के लोगआये थे. नि:संदेहभाजपा के ग्रासरूटस्तर केशानदारप्रबंधनकेकारण उसके लिए अपने कार्यक्रमों में ऐसी भीड़ जुटाना आसान होता है, लेकिन भीड़ मेंशामिल दूर दराज के लोगोंसेपांचमिनटबात कर या उनकेबॉडी लैंग्वेज से यहसाफ लगता है कि मोदीकाअसर आम आदमी पर है.रैलीमें आने वाले लोगों के लिए यहमहजखानापूर्तियाएटेंडेंस बनाने का बहानामात्र नहीं है. भले ही उसकी मात्रा 2014 से कुछ उपर नीचे हुई हो.

और, मोदी के 15 महीने के शासन के बाद उनसे उम्मीदें भी कायम हैं और लोग यह सवाल करने पर की 15 महीने में क्या हुआ, कहते हैं : बहुत कुछ हुआ, पांच साल में होगा न. स्वाभाविक रूप से ऐसी रैलियों में पार्टी समर्थक ही आते हैं, लेकिन उनकी तादाद और अंदाज नेताजी की लोकप्रियता का थर्मामीटर तो होता ही है. इसलिए चुनावी जनसभा मेंदालकी कीमतों का मुददा छेड़ने पर लोग कहते हैं, छोड़िए महंगाई की बात, यह तो कांग्रेस हो या किसी और का राज, रहेगी ही. अनुसूचित जाति से आने वाले कुछ लोग आरक्षण का सवाल पूछने पर मुस्कुराते हुए कहते हैं कि कैसे हटा देंगे. रैली में ऐसे लोग है जो नीतीश कुमार के दस साल के शासनसेप्रसन्नहैं,लेकिन अब बीजेपी व मोदी समर्थक हो गये हैं.जैसे अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले उमेशकुमारसिंहकहते हैं नीतीशजीतो हाजीपुरमें बहुते विकास किये, लेकिन अब वे दूसर विभाग मेंचलेगये, हम देखते हैंकिवे जंगलराज से कैसे निकलेंगे?

लोग संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को प्रचारित करने के लिए सबसे ज्यादा मीडिया को कोसते हुए नजर आते हैं और कहते हैं उसी ने उसे गलत ढंग से प्रचारित किया. वहीं, बगल में अगड़ी जाति के दो युवा कहते हैं कि सबको मिले आरक्षण, यह तो आर्थिक स्तर पर होना चाहिए. अगड़ी जाति से आने वाले सुशील कुमार और अनुसूचित जाति से आने वाले राजेंद्र सिंह दोनों अपने अपने ढंग से भाजपा के पक्ष में संघ प्रमुख के बयान की व्याख्या करते हैं. यह भाजपा के सामाजिक विस्तार कीओर इशारा करता है.


रुचि सिर्फ मोदी में ही

मोदी के सभा स्थल पर आने से पहले न तो मंच पर बयान दे रहे किसी नेता को सुनने में लोगों की रुचि है और न उन स्थानीय नेताओं से बहुत अधिक उम्मीदें हैं. उनकी रुचि व उम्मीद सीधे तौर पर मोदी से है और स्थानीय नेता हों या उम्मीदवार वे सिर्फ उनके लिए मोदी के प्रतिनिधि हैं, बस. जीतन राम मांझी जैसे नेता शायद इसीलिए कहते हैं, मैं जल्द अपनी बात खत्म करूंगा और आपके व मोदीजी के बीच दीवार नहीं बनूंगा. मोदी का हेलीकॉप्टर जब आकाश में घुमड़ता है, तो युवा से लेकर बुजुर्गों तक के चेहरे की चमक बढ जाती है और चेहरे पर मुस्कान भी आ जाती है. हजारों हाथ आकाश की ओर उठ पड़ते हैं, जब उनका हेलीकॉप्टर लैंड करता है, तो जिधर मोदी, उधर लोगों की नजरें. मोदी मंच पर आते हैं तो समर्थकों का मोदी मोदी का नारा और मोदी की ओर से लोगों से भारत माता की जय का नारा लगवाना अब जाना पहचाना सा हो गया है. उसके बाद मोदी का स्थानीय बोली में संबोधन भी. वे शुरू होते हैं : अपने सबके प्रणाम करै छी, हाजीपुर वैशाली की धरती से लोकतंत्र का जन्म होल रहेल…

मोदी एक बज कर 14 मिनट पर अपना संबोधन आरंभ करते हैं और 1.46 मिनट पर खत्म, यानी पूरे 32 मिनट बोलते हैं.उनकीहरवाक्य से लोगों की उम्मीदें जुड़ी होती हैं, आखिर वे केवल बीजेपी के शिखर नेता ही नहीं देशके प्रधानमंत्री भी तो हैं. जब वे राघोपुर में पुल नहीं बनने की चर्चा छेड़ते हैं, तो लोग यह उम्मीद लगाते हैं कि वे पुल निर्माण का एलान करेंगे क्या? लेकिन आचार संहिता के कारण मोदी ऐसा नहीं कर सकते. मोदी सीधे तौर पर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की जोड़ी पर निशाना साधते हैं और कांग्रेस का एकाध अवसर पर ही नाम लेते हैं. मोदी कहते हैं कि बिहार बचाने का एक ही रास्ता है विकास. वे इस चुनाव को बड़े व छोटे भाई के 25 सालके शासन को सजा देने वाला बताते हैं. मोदी चुनाव को विकास राज बनाम जंगल रात के बीच का बताते हैं और दाल की बढी कीमतों के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेवार ठहराते हुए कहते हैं कि दाल की जमाखोरी करने वालों ने इस सरकार की चुनाव में कौन सी मदद की है कि वह उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है, जबकि पूरे देश में कार्रवाई व जब्ती हुई है.

नीतीश कुमारको लोकतांत्रिकनीतीशबाबूबताते हुए उनके तांत्रिकके पास जाने पर सवाल उठाते हुए पीएम कहते हैं कि यह उस राज्य का अपमान है, जहां लोकतंत्र का जन्म हुआ, वैशालीकी धरती का अपमान है.वहीं लालूपरयहकहते हुए कटाक्ष करते हैं कि वे खुद को देशकासबसे बड़ा तांत्रिक बताते हैं. वे अपनीशैलीमें लालू नीतीशकोनिशानेपर लेते हुएजनतासे पूछतेहैं कि आप तांत्रिक और उसके सेवादार को इस चुनाव में हटायेंगे नहींऔर जनताहां,हां,हां में जवाब देती है. मोदी बिहार के विकास के छह सूत्र देते हैं : बिजली, पानी, सड़क, पढाई, कमाई और दवाई. जनता ये सूत्र याद करने की कोशिश करती नजर आती है. उनके कटाक्ष पर लोगों के मोदी मोदी के नारे और सवाल पर हां हां के बोल यह बताते हैं कि मोदी मैजिक सचमुच अब भी है.

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