।।दक्षा वैदकर।।
ऐसे मेडल, जो दुनिया हमारे गले में टंगे देख सके, उसे पाने का मतलब ही केवल जीतना नहीं होता है. जब आप कोई अच्छा काम करते हैं और बदले में आपको सुकून मिलता है, सच्चा मेडल तो वही है. यह मेडल अदृश्य होता है, इसे कोई देख नहीं सकता है, लेकिन यही मेडल हमें अच्छा इनसान साबित करता है.
पिछले दिनों मैंने साउथ की मूवी का एक सीन देखा. हीरो किसी बात से हताश हो कर पेड़ के नीचे बैठा था. सामने मैदान में विकलांग बच्चों की दौड़ हो रही थी. दौड़ शुरू होते ही सभी बच्चे धीरे-धीरे बढ़ने लगे. पहला बच्च विनिंग लाइन तक पहुंचता, उसके पहले ही कोई बच्च लड़खड़ा कर गिर पड़ा. रेस में जितने भी बच्चे उसके आगे दौड़ रहे थे, सभी रुक गये. वे पलटे और उस बच्चे के करीब आये. उन्होंने उसे उठाया और तब सारे बच्चे साथ-साथ विनिंग लाइन तक पहुंचे. दौड़ देख रहे सारे लोग अपने स्थान पर खड़े हो गये, उनकी आंखें भर आयीं.
ऐसा ही एक किस्सा लेखक शिव खेड़ा की पुस्तक में भी लिखा है. कुछ सेल्समेनों का एक ग्रुप मीटिंग के लिए शहर से बाहर गया था. वापसी के दौरान वे थोड़ा लेट हो गये. सभी जहाज में चढ़ने के लिए भाग रहे थे, तभी उनकी टक्कर एक मेज से हुई. मेज पर रखा फलों की टोकरी गिर गयी और फल बिखर गये. वे सभी दौड़ कर चढ़ गये और उन्होंने चैन की सांस ली, सिवाय एक दोस्त के.
उसने अपने साथियों से विदा ली और बाहर आ गया. उसने जो देखा, उसे देख उसे एहसास हुआ कि बाहर आ कर उसने ठीक किया. एक अंधी लड़की मेज के पीछे बैठी थी, जो फल बेच कर अपना जीवन-यापन करती थी. उस सेल्समैन ने बच्ची से कहा, ‘‘ मुझे उम्मीद है कि हमने तुम्हारा दिन खराब नहीं किया है. ‘‘ उसने जेब से 10 डॉलर निकाल कर उस लड़की को दे दिये और कहा, ‘‘ यह तुम्हारा नुकसान पूरा कर देगा. ‘‘ इसके बाद वह चला गया.
वह लड़की यह सब कुछ देख तो नहीं सकती थी, लेकिन उस व्यक्ति के दूर जाते और धीमे पड़ते कदमों की आवाज सुनी. उसने जोर से चिल्ला कर पूछा- ‘‘ क्या आप भगवान हैं? ‘‘
बात पते की..
-जीत और विजेता में फर्क पहचानें. जीतना एक घटना है, जबकि विजेता एक भावना है. विजेता जीत को अपने सिद्धांतों के तराजू में तौलते हैं.
-किसी का दिल दुखा कर, किसी को चोट पहुंचा कर पायी गयी जीत किसी काम की नहीं. सच्ची जीत वही है, जिसे पाने के बाद हमें आत्मग्लानि न हो.