।।दक्षा वैदकर।।
एक युवक था. जब भी वह घर पर होता, उसके अमीर पड़ोसी दादा जी उसे बुला लेते और उसे उनके बेटे को इ-मेल करने को कहते. उन्हें इ-मेल करना नहीं आता था, इसलिए वे हफ्ते भर इंतजार करते कि कब यह युवक घर पर हो और वे उसकी मदद ले. युवक भी इस काम से खुश था, क्योंकि जब भी वह इ-मेल करता, बुजुर्ग उसे बढ़िया खाना खिलाते, तोहफा देते. एक दिन युवक दोस्तों के साथ था. तभी बुजुर्ग का नौकर बुलाने आया, युवक ने उसे मना कर दिया और चिढ़ कर बोला, ‘हर हफ्ते चिट्ठी लिख कर मैं बोर हो गया हूं.’ उसके सारे दोस्तों ने कहा कि, ‘तुम उन्हें सीखा क्यों नहीं देते?’ युवक बोला, ‘अगर सिखा दूंगा, तो उन्हें मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी. मेरी कीमत घट जायेगी.’
कई बार इसी डर से हम ज्ञान को छिपा कर रखते हैं. हमें समझना होगा कि बड़ा इनसान वही होता है, जो अज्ञानी को ज्ञान दे, अगली पीढ़ी के लिए कुछ करे, जूनियर्स को नि:स्वार्थ भाव से हर चीज बताये. यह न सोचे कि इस काम को करने से मुङो क्या फायदा होगा. चर्चित कवि विल एलेन ड्रमगुले की कविता ‘रास्ता बनानेवाला’ हमें यही सीख देती है.
‘एक बुजुर्ग, जो एक सुनसान सड़क पर जा रहा था, शाम होते-होते ठंडा और ठिठुरता पहुंचा. एक लंबे, गहरे और चौड़े र्दे के करीब, जिसके अंदर तेज पानी बह रहा था. बुजुर्ग ने शाम के धुंधलके में उसे पार किया, पानी की धारा से उसे कोई डर नहीं लगा. मगर वह पीछे मुड़ा, सुरक्षित पार कर जाने के बाद, और उन लहरों के आर-पार एक पुल बनाया. ‘ओ बुजुर्ग’ एक साथी यात्री ने उसे पुकारा. ‘तुमने इस चौड़े और गहरे र्दे को पार कर लिया है. तुम इस धारा पर पुल क्यों बना रहे हो?’ उस बुजुर्ग ने अपने सिर को उठा कर कहा, ‘प्यारे दोस्त, जिस रास्ते से मैं आया हूं, उस राह में मेरे पीछे आ रहा है एक नौजवान, जिसे यहीं से गुजरना है. यह दर्रा जो मेरे लिए मुश्किल रहा है, उस सजीले नौजवान के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है. उसे भी शाम के धुंधलके में पार करना पड़ेगा. मेरे दोस्त, मैं यह पुल उस नौजवान के लिए बना रहा हूं.’
बात पते की..
-हमारी सबसे बड़ी जिम्मेवारी होती है एक विरासत देना, जिस पर आनेवाली पीढ़ियां गर्व कर सकें. उन्हें उससे फायदा पहुंचे.
-सुकरात ने प्लेटो को शिक्षा दी, प्लेटो ने अरस्तु को पढ़ाया. अरस्तु महान सिकंदर के शिक्षक बने. ज्ञान इसी तरह फैलता जाता है.