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शारदीय नवरात्र : नौवां दिन, सिद्धिदात्री दुर्गा का ध्यान

सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।। सिद्धों, गंधर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों. देवताओं ने मां की स्तुति करते हुए कहा : सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्यै त्र्यम्बकै गौरि नारायणि नमोस्तुते ।। नारायणी, तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली […]

सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
सिद्धों, गंधर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों.
देवताओं ने मां की स्तुति करते हुए कहा :
सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्यै त्र्यम्बकै गौरि नारायणि नमोस्तुते ।।
नारायणी, तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो. कल्याणदायिनी शिवा हो. सब पुरुषार्थ को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो. तुम्हें नमस्कार है.
ये ही सर्वमंगलमयी मां आदि के तीन जोड़े उत्पन्न करनेवाली महाल्क्ष्मी हैं, इन्हीं की शक्ति से ब्रह्मादि देवता बनते हैं, जिनसे विश्व की उत्पत्ति होती है. इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं. दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्ति की शक्तियां हैं.
ये ही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, क्षीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गतिनाशिनी मेनका पुत्री दुर्गा हैं. ये ही वाणी, विद्या, सरस्वती, सावित्री और गायत्री हैं. ये ही सूर्य की प्रभाशक्ति, पूर्णचंद्र की सुधावर्षिणी शोभाशक्ति, जल की शीतला शक्ति, अग्नि की दाहिका शक्ति, वायु की वहन शक्ति, धरा की धारणा शक्ति और शस्य की प्रसूति शक्ति हैं.
यही तपस्वियों का तप, ब्रह्मचारियों का ब्रह्मतेज, संन्यासियों का त्याग, महापुरुषों की महत्ता और मुक्त पुरुषों की मुक्ति हैं. ये ही राजाओं की राजलक्ष्मी, वणिकों की सौभाग्यलक्ष्मी, सज्जनों की शोभालक्ष्मी और श्रेयोर्थियों की श्री हैं. अर्थात् समस्त जगत् में सर्वत्र सर्व मंगलमयी मां विविध शक्तियों के रूप में खेल रही हैं.
मां ने स्वयं हिमालय से कहा है : सर्वप्रथम मैं ही थी, दूसरा कोई न था. यही मां ‘इच्छाधिकमपि समर्था वितरणे’ अर्थात् मनुष्य की इच्छा से भी अधिक फल प्रदान करने में समर्थ हैं. इसलिए सर्वमंगलमयी मां के उपासक रूप, जय, यश, शत्रु-विनाश के लिए यंत्रों, स्तोत्रों तथा श्री दुर्गासप्तशती (मार्कण्डेयपुराणांतर्गत) एवं देवी भागवत, श्रीचंडी पाठ से मां की उपासना कर नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र का जप, सात्विक हवन द्वारा भुक्ति-मुक्ति प्राप्त करते हैं.
चूंकि मां सर्व मंगलमयी, सर्व कल्याणमयी हैं, शारदीय नवरात्र के अवसर पर योग-विधियों, साधनों से अनभिज्ञ कोटि-कोटि ग्रामीणजन मां की महापूजा उत्सव में सम्मिलित होकर तन्मयतापूर्वक यत्किंचित पत्र, पुष्प, ध्वजा, नारियल अर्पित कर ‘यं यं चिंतयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्’ यानी अभीप्सित फल प्राप्त करते हैं. कुछ सुरथ-जैसे राज्यकामी उपासक सावर्णि मनु हो जाते हैं तथा अन्य समाधि-जैसे वैश्य आराधक ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं.
मानव अगर तू चाहे, दुनिया को झुका देना।
बस मां के चरणों में, सर अपना झुका लेना।।
प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा

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