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शारदीय नवरात्र : आठवां दिन, महागौरी दुर्गा का ध्यान
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शूचिः । महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा ।। जो श्वेत वृषभ पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेव को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें. भगवान् नारायण ने नारद को बताया था कि गणेश जननी दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और […]
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शूचिः ।
महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा ।।
जो श्वेत वृषभ पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेव को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें.
भगवान् नारायण ने नारद को बताया था कि गणेश जननी दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री सृष्टि की पांच प्रकृति कही जाती हैं. ये ही देवियां दानवी बाधाओं के उपस्थित होने पर अवतार लेकर शत्रुओं का संहार करती हैं. कुछ मनीषी मानते हैं कि तात्विक पांच विवर्ग : प्राण, भूति, ध्वनि, तेज और प्रभा ही राधा, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा और सावित्री के नाम से विख्यात हैं. देवताओं ने सर्व मंगलमयी मां दुर्गा के स्वरूप के संबंध में कहा है कि आप ही सबकी आधारभूता हैं, यह समस्त जगत् आपका अंशभूत है, क्योंकि आप सबकी आदिभूता अव्याकृता परा प्रकृति हैं.
सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूतः
मव्याकृता हि परमा प्रकृत्त्विवमाद्या।।
सृष्टि के आदि में देवी ही थीं : सैषा परा शक्तिः। इसी पराशक्ति भगवती से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा संपूर्ण स्थावर-जंगमात्मक सृष्टि उत्पन्न हुई. संसार में जो कुछ है, इसी में सन्निहित है. भुवनेश्वरी, प्रत्यंगिरा, सीता, सावित्री, सरस्वती, ब्रह्मानंदकला आदि अनेक नाम इसी पराशक्ति के हैं. देवी ने स्वयं कहा है : सर्वम् खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्. अर्थात् यह समस्त जगत् मैं ही हूं. मेरे सिवा अन्य कोई अविनाशी वस्तु नहीं है.
ये महाशक्ति दुर्गा ही सर्वकारण रूप प्रकृति की आधारभूता हैं. यही मायाधीश्वरी हैं, यही सृजन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं. यही आदि के तीन जोड़े उत्पन्न करनेवाली महालक्ष्मी हैं, इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं. दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्ति की शक्तियां हैं. यही गोकुल में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, क्षीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गतिनाशिनी मेनका पुत्री दुर्गा हैं. वास्तविक रूप में तो वह एक ही हैं : एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा। देवी के अवतार की यही वजह है, जो स्वयं देवी ने देवीभागवत में कहा है :
साधूनां रक्षणं कार्य हन्तव्या येअप्यसाधवः।
वेदसंरक्षणं कार्यमवतारैरनेकशः।।
युगे-युगे तानेवाहमवतारान् विभर्मि च।।
साधुओं की रक्षा, दुष्टों का संहार, वेदों का संरक्षण करने के लिए ही देवी प्रत्येक युग में अवतार लेती हैं.(क्रमशः)
प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा
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