मधुमेह से ग्रसित महिलाओं के लिए आवश्यक है कि वह खून में शुगर की मात्र सामान्य होने पर ही गर्भधारण करें. चीनी अधिक रहने वह बच्चों को प्रभावित कर सकता है. गर्भपात हो सकता है, अथवा ह्दय, मस्तिष्क, तंत्रिका, रीढ़ या गुर्दे इत्यादि में विकार हो सकता है.
गर्भावस्था अपने आप में महिला में चीनी की मात्र बढ़ा सकता है. ऐसा प्राय: 2-5 फीसदी महिलाओं में हो सकता है. हार्मोन्स के प्रभाव से अधिकतर मोटी महिलाओं में 24-28 सप्ताह की प्रेगनेंसी में ब्लड शुगर बढ़ जाता है. भारतीय मूल के लोगों में यह संभावना और अधिक होती है. आमतौर पर यह बच्चे के जन्म के उपरांत खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है. हालांकि इसके असर से भविष्य में मधुमेह की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है. बच्चे के भी नॉर्मल डिलिवरी की जगह ऑपरेशन से होने के आसार ज्यादा होते हैं. बच्चे का वजन भी बढ़ जाता है. चीनी अधिक रहने से मां के पेट में अनायस ही बच्चे की धड़कन रुक भी सकती है. इसका दुष्प्रभाव मां के स्वास्थ्य पर भी होता है. तेजी से वजन बढ़ना, रक्तचाप बढ़ना, ऑपरेशन की आवश्यकता आदि इसके साइड इफेक्ट हैं.
ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि गर्भावस्था में समय-समय पर खून की जांच होनी चाहिए. ब्लड शुगर की जांच खाली पेट और खाने के पश्चात दोनों बार करानी चाहिए . संतुलित आहार एवं उपयुक्त व्यायाम इसके उपचार में सहायक हैं. खाने में रेशेदार भोजन अधिक और मीठा कम से कम होना चाहिए. तीन बार भोजन (मेन मील) और 2-3 बार हल्का नाश्ता (स्नैक्स) लें. अगर व्यायाम और संतुलित आहार के बावजूद शुगर लेवल कम नहीं हो रहा है, तो इंसुलिन की आवश्यकता पड़ सकती है.
प्रसव होने के छह सप्ताह बाद फिर से ब्लड शुगर जांच करायें. रेगुलर डॉक्टरी जांच भी कराते रहे. नवजात की भी जांच कराते रहे. ऐसे मामलों में संभव है कि शिशु में चीनी की कमी या पीलिया हो सकता है. नवजात को सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए जरूरी है कि शिशु रोग विशेषज्ञ के संपर्क में रहे.