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महालया : मां दुर्गा का आवाहन कल

पश्चिम बंगाल के वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने महालया को जन-जन तक पहुंचाया भागलपुर : मां दुर्गा की पूजा के एक दिन पहले 12 अक्तूबर को महालया अर्थात मां का आवाहन पूजन होगा. महालया को लेकर श्रद्धालु उत्साहित हैं. दुर्गा मंदिरों में महालया की तैयारी हो चुकी है. 12 अक्तूबर को ब्रह्म मुहूर्त में दुर्गा सप्तशती […]

पश्चिम बंगाल के वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने महालया को जन-जन तक पहुंचाया
भागलपुर : मां दुर्गा की पूजा के एक दिन पहले 12 अक्तूबर को महालया अर्थात मां का आवाहन पूजन होगा. महालया को लेकर श्रद्धालु उत्साहित हैं. दुर्गा मंदिरों में महालया की तैयारी हो चुकी है. 12 अक्तूबर को ब्रह्म मुहूर्त में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जायेगा. महालया मां दुर्गा का आवाहन के रूप में मनाया जाता है. महालया के दूसरे दिन पहली पूजा प्रारंभ हो रही है. बंगाली परिवार महालया के दिन घर-द्वार की सफाई करते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता देवाशीष बनर्जी ने बताया कि परिवार के सारे सदस्य एकजुट होकर रेडियो-टीवी या कैसेट से चंडी पाठ का श्रवण करते हैं, तो लोगों की आध्यात्मिक शक्ति जाग उठती है. उन्होंने बताया कि वर्षों पहले पश्चिम बंगाल के पंडित वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने दुर्गा सप्तशती का पाठ किया, उन्हीं की आवाज में आज भी कैसेट व रेडियो से लोग महालया का आनंद लेते हैं. दुर्गाबाड़ी के सचिव सुब्रतो मोइत्रा ने बताया कि दुर्गा बाड़ी में भी प्रात: चार बजे महालया पर लोग रेडियो पर चंडी पाठ का श्रवण करेंगे. महालया से ही पूजा का माहौल शुरू हो जायेगा.
सभी लोग पूजन कार्य में जुट जायेंगे. बिहार बंगाली समिति, बरारी शाखा के अध्यक्ष तरुण घोष ने बताया कि काजीपाड़ा, रिफ्यूजी कॉलोनी में प्रात: चार बजे रेडियो पर प्रसारित महालया का श्रवण करेंगे. इस दिन कई लोग पितृ तर्पण भी गंगा तट पर पहुंच कर करेंगे. महाशय ड्योढ़ी के पलटन घोष ने बताया कि महालया पर चंडी पाठ रेडियो पर सुनते हैं. इस दिन इसके अलावा कुछ नहीं होता है.
महालया का अर्थ
ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं कि महालया का मूल अर्थ कुल देवी-देवता व पितरों का आवाहन है. 15 दिनों तक पितृ पक्ष तिथि होती है और महालया के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है. अमावस्या के दिन पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिंडदान एवं श्राद्ध की आशा से जाते हैं. पितरों को पिंडदान और तिलांजलि अवश्य करनी चाहिए. लोग अमावस्या के दिन पितरों का तरपन व पारवन करते हैं. उनको दिया हुआ जल व पिंड पितरों को प्राप्त होता है. पितृ पक्ष में देवता अपना स्थान छोड़ देते हैं. देवताओं के स्थान पर 15 दिन पितरों का वास होता है. महालया के दिन पितर अपने पुत्रादि से पिंडदान व तिलांजलि को प्राप्त कर अपने पुत्र व परिवार को सुख-शांति व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान अपने घर चले जाते है. महालया से देवता फिर अपने स्थान पर वास करने लगते हैं.
पितृ पक्ष में 15 दिन देवताओं की नहीं पितरों की पूजा अर्चना होती है. महालया से देवी-देवताओं की पूजा शुरू हो जाती है.

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