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जेपी के सेखो देउरा आश्रम से: पहुंचे बड़े-बड़े नेता, पर जेपी को भूल गये
लोकनायक जेपी ने संघर्ष के साथ रचना को जोड़ते हुए नवादा जिले के सेखो देउरा में आश्रम की स्थापना की थी. चुनाव की गहमागहमी के बीच यहां जेपी की पुण्यतिथि पर कोई नहीं पहुंचा. यहां का दौरा किया प्रभात खबर के स्पेशल सेल के संपादक अजय कुमार ने. अली हुसैन, अयूब खान और छोटू के […]
लोकनायक जेपी ने संघर्ष के साथ रचना को जोड़ते हुए नवादा जिले के सेखो देउरा में आश्रम की स्थापना की थी. चुनाव की गहमागहमी के बीच यहां जेपी की पुण्यतिथि पर कोई नहीं पहुंचा. यहां का दौरा किया प्रभात खबर के स्पेशल सेल के संपादक अजय कुमार ने.
अली हुसैन, अयूब खान और छोटू के हाथ करघे पर लय में चल रहे हैं. उसी लय में करघों से आवाज निकल रही है. एक सुर में. ये कारीगर 21 सालों से यहां काम कर रहे हैं. अली इसलामपुर के रहने वाले हैं और अयूब जहानाबाद के. अली कहते हैं: यह सब बाबा की देन है. उन्होंने यह आश्रम नहीं बनाया होता, तो हमें काम कैसे मिलता. अली जिस बाबा की बात कर रहे हैं, वह हैं लोकनायक जयप्रकाश नारायण.
लोकनायक ने 1954 में नवादा के कौआकोल ब्लॉक के सेखो देउरा में एक आश्रम बनाया था. गांधीवादी मॉडल पर. आश्रम के सामने पहाड़ है. पहाड़ के उस तरफ झारखंड का गिरिडीह है. आने-जाने का रास्ता बना हुआ है. सर्वोदय आश्रम के बारे में यहां सबको पता है. आठ अक्टूबर को जेपी की पुण्यतिथि थी. नवादा में वोट के लिए बड़े-बड़े नेता पहुंच रहे हैं. पर आश्रम और जेपी की याद किसे है?
आश्रम से जुड़ी हैं 2200
महिलाएं : आश्रम में खादी के कपड़े तैयार होते हैं. शेखो देउरा के अलावा गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, पटना और रांची में इसके केंद्र हैं. सूत कताई के लिए इन केंद्रों से कभी आठ हजार महिलाएं जुड़ी थीं. अब उनकी तादाद घटकर 2200 सौ रह गयी है.
खादी की मांग बढ़ी,सप्लाई कम हुई : इन केंद्रों पर खादी व रेशम के कपड़ों की मांग बढ़ रही है. उसकी तुलना में आपूर्ति नहीं है. इसकी वजह कच्चे माल की खरीद में आ रही परेशानी है.
बदल रहे गांव : आश्रम के आसपास के गांवों में बदलाव देख सकते हैं. यह बदलाव दो स्तरों पर है, पहला चेतना और दूसरा रहन-सहन के मामले में. सामाजिक मुद्दों पर गांव के लोग आश्रम के जरिये पहल में शामिल होते हैं. परसों गांव के लोगों ने जेपी को याद किया. उन्होंने एक छोटी सी जागरु कता रैली भी निकाली. रैली वोट देने के लिए प्रेरित करने के लिए थी.
आश्रम परिसर में चलने वाले केंद्र किसानों के बीच काम करता है. जेपी की गोशाला और हकीकत : गाय को लेकर इन दिनों राजनीति खूब हो रही है. पर गोवंश को समृद्ध करने के लिए जेपी के पास जो योजना थी, उसे उनकी विरासत संभालने वाले आगे नहीं बढ़ पाये. इस गोशाला में किसी वक्त 30-35 गाये थीं. वह घटते-घटते तीन पर पहुंच गयी थी. अरविंद कुमार कहते हैं: यह गोशाला घाटे में चल रही थी. कुछ साल पहले से इसकी व्यवस्था ठीक की गयी. अब यह सालाना 55 हजार के मुनाफे में है. यहां गायों की संख्या नौ है.
रेफरल अस्पताल, लेप्रोसी केंद्र बंद : 1980 में आश्रम की जमीन पर रेफरल अस्पताल खुला था. वह 2003 से बंद है. फिलहाल उसमें सीआरपीएफ के जवानों को लोकतंत्र की रक्षा के लिए ठहराया गया है. इस इलाके में लेप्रोसी का प्रकोप था. आश्रम के ऐसे मरीजों के लिए कपसया नामक जगह पर केंद्र खोला गया था. वह इसलिए बंद हो गया क्योंकि संबंधित विभाग ने पैसा देने से मना कर दिया.
आश्रम के प्रधानमंत्री अरविंद कुमार बताते हैं, जेपी का सपना था कि अपने कार्यकर्ताओं को श्रम से जोड़ेंगे. सूत कताई व बुनाई के साथ-साथ उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी दी जायेगी.
केंद्र भी बारह साल से बंद है.
हमारे केंद्र का सरकार के यहां एक करोड़ 12 लाख रु पया बाकी है, वह भी 2011 से. खादी पर छूट के एवज में यह बकाया है. समय पर पैसा नहीं मिलने के चलते सामान की खरीद पर असर पड़ रहा है. इस दौरान कच्चे सामान की कीमत दोगुनी हो गयी है.
अरविंद कुमार,आश्रम के प्रधानमंत्री
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