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एलआइसीआर तकनीक से बदल जायेगा उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का तरीका
व्यालोक इसी आइएससीइ (काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट इग्जामिनेशन) की चली, तो अगले साल से स्कूली परीक्षाओं की मूल्यांकन प्रक्रिया में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. आइसीएसइ और आइएससी के लिए वर्ष 2016 से जिस तकनीक का इस्तेमाल होने जा रहा है, वह स्कूलों की परीक्षा में आमूलचूल बदलाव ला देगा. दरअसल, ज्यादा से […]
व्यालोक
इसी आइएससीइ (काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट इग्जामिनेशन) की चली, तो अगले साल से स्कूली परीक्षाओं की मूल्यांकन प्रक्रिया में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. आइसीएसइ और आइएससी के लिए वर्ष 2016 से जिस तकनीक का इस्तेमाल होने जा रहा है, वह स्कूलों की परीक्षा में आमूलचूल बदलाव ला देगा.
दरअसल, ज्यादा से ज्यादा सही और गलती से मुक्त नतीजे देने को ध्यान में रखते हुए ही काउंसिल एक नये डिजिटल पेन और टैबलेट पर आधारित तकनीक का इस्तेमाल करने जा रही है. परीक्षक अब इन दोनों की मदद से ही उत्तर-पुस्तिकाओं की जांच करेंगे.
इस तकनीक की मदद से रिजल्ट तो जल्दी आयेगा ही, बल्कि कई बार मूल्यांकन के वक्त उत्तर-पुस्तिकाओं पर जो गलत नंबर चढ़ने या अंक नहीं जुड़ पाने की शिकायत आती है, वह भी दूर हो जायेगी. काउंसिल की योजना के मुताबिक अगले वर्ष यानी 2016 की 10वीं और 12वीं की परीक्षा में इस तकनीक का प्रयोग होना तय किया गया है.
इसके लिए परीक्षकों को एक डिजिटल पेन का इस्तेमाल करना होगा. बिल्कुल किसी सामान्य पेन की तरह दिखनेवाली यह कलम पूरा आंकड़ा डिजिटल तौर पर सुरक्षित कर देगी. इससे गलतियों की गुंजाइश काफी कम हो जायेगी. इस नयी तकनीक के इस्तेमाल से रिजल्ट भी जल्दी तैयार हो जायेगा. इस तकनीक को लाइव इंक कैरेक्टर रिकॉग्निशन सोल्यूशन (एलआइसीआर) भी कहा जाता है.
एलआइसीआर को अगर बिल्कुल आसान शब्दों में समझना चाहें, तो यह ऐसी तकनीक है, जिसमें परीक्षक उत्तर-पुस्तिकाओं की जांच के लिए टैबलेट और रि-परपज्ड डिजिटल पेन का इस्तेमाल करते हैं. इससे समय कम लगने के साथ रिजल्ट सही बनता है और कॉपी के पुनर्मूल्यांकन (रिचेक) के लिए आनेवाले अनुरोध भी कम होते हैं. हालांकि, बोर्ड ने परीक्षा के पैटर्न में कोई बदलाव नहीं किया है, यह केवल मूल्यांकन के तरीके से जुड़ा बदलाव है.
क्या है एलआइसीआर
जैसा कि इसके पूरे नाम से स्पष्ट है इसे लाइव इंक कैरेक्टर रिकॉग्निशन सोल्यूशन के तौर पर जाना जाता है. यह डिजिटाइज करने का एक तरीका है, जिसमें कैरेक्टर रिकॉग्निशन तकनीक का इस्तेमाल होता है. इस पूरे सिस्टम के तहत एक टैबलेट, नवीकृत डिजिटल पेन और खास तरह के प्रिंटेड पेपर या कागज का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रिंटेंड पेपर को परीक्षक उत्तर-पुस्तिकाओं के शीर्ष पर रख कर इस्तेमाल करता है.
फिर रियल टाइम में अंकों या नंबरों को डिजिटल रूप दे देता है और ब्लूटूथ के जरिये इस आंकड़े को टैबलेट तक ट्रांसफर या हस्तांतरित कर देता है. हालांकि, मजेदार बात यह है कि दिये गये अंक टैबलेट पर डिजिटल प्रारूप में दिखने के अलावा हस्तलिखित प्रारूप में भी दिख सकते हैं.
एक बार जब परीक्षक टैबलेट के अंकों को अपनी तरफ से मान्य कर देता है, तो यह पूरा आंकड़ा इनक्रिप्टेड (कूट रूप में) हो जाता है, जिसे फिर एजुकेशन बोर्ड के केंद्रीकृत सर्वर में ट्रांसफर कर दिया जाता है. एलआइसीआर द्वारा परीक्षकों के समय की बचत के साथ इसमें गलतियों की गुंजाइश न के बराबर रहती है, जिससे पुनर्मूल्यांकन का बार-बार बखेड़ा नहीं उठता.
एलआइसीआर से जांच के विभिन्न चरण
– टैबलेट से प्रश्नपत्र के रूबरिक (शीर्ष) एप्लिकेशन, अंकों को जोड़ने और मूल्यांकन के दिन और समय का ख्याल रखा जाता है.
– अंकों के दर्ज होने और उनको परीक्षकों द्वारा मान्य करने के साथ ही डिजिटल पेन और टैबलेट में किसी तरह का कोई आंकड़ा बचा नहीं रहता है.
– यह सस्ता भी है. एक ही एलआइसीआर पेन और टैबलेट का इस्तेमाल कई परीक्षक साझा तौर पर कर सकते हैं. जहां मूल्यांकन का काम हो रहा है, वहां एक ही सेट से काम चल सकता है, क्योंकि इसकी जरूरत केवल ऊपर वाले खास प्रिंटेड कागज पर अंक चढ़ाते वक्त होती है. इसमें महज चंद सेकेंड का समय लगता है.
– यह बहुत सुविधाजनक और तेज है. एक बार अंकों का आंकड़ा जैसे ही केंद्रीय सर्वर तक ट्रांसफर होता है, यह तुरंत ही एजुकेशन बोर्ड के सर्वर में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध हो जाता है.
– परीक्षकों को इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रशिक्षण या कौशल की जरूरत नहीं होगी. यह बेहद आसान है. परीक्षकों के लिए किसी खास प्रशिक्षण सत्र का आयोजन नहीं करना होगा. वे पारंपरिक तरीके से ही मूल्यांकन करते रहेंगे, लेकिन अंकों के चढ़ाने और अंतिम रिजल्ट बनाने में इस डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल होगा, जो जाहिर तौर पर गति को बढ़ाने के साथ गलती की गुंजाइश को कम करेगा.
कैसे आया आइडिया
भारत में इसी साल कोलकाता में पायलट प्रोजेक्ट के तहत एलआइसीआर तकनीक की जांच की गयी, जिसे सफल पाया गया. इसके बाद ही काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीइ) ने इसका इस्तेमाल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए करने के बारे में सोचा. इस तकनीक को भारत में लाने का श्रेय ऑरियन सिस्टम्स इंटीग्रेटर्स को है, जिसका मुख्य कार्यालय न्यूजर्सी, अमेरिका में है और भारत में मुंबई, हैदराबाद और कोच्चि में क्षेत्रीय कार्यालय हैं. इस कंपनी ने एक क्रांतिकारी तकनीक की खोज की है.
यह तकनीक बिल्कुल अधुनातन है और इसी वजह से इसे 2014 के आखिर में केरल के कोवलम में आयोजित इ-इंडिया समिट में टेस्टिंग एंड असेसमेंट श्रेणी के तहत ‘सर्वाधिक नवोन्मेषी उत्पाद’ का पुरस्कार भी मिल चुका है. उसके बाद ही काउंसिल की नजर इस उत्पाद पर गयी और उसने 2016 के सत्र से इसका शैक्षणिक इस्तेमाल करने की ठान ली.
‘ऑरिएन एलआइसीआर’ के नाम वाले इस तकनीकी उत्पाद में रि-परपज्ड डिजिटल पेन और एक टैबलेट का इस्तेमाल होता है, जैसा पहले ही बताया जा चुका है. यह डिजिटल पेन हाथ से लिखे हुए डाटा को कागज से कैप्चर कर कूट में बदल देता है यानी इनक्रिप्ट कर देता है, जिसको फिर यह वायरलेस तरीके से साथ वाले टैबलेट तक ट्रांसफर कर देता है.
वहीं से यह संगठन के केंद्रीकृत सर्वर तक पहुंचता है.कंपनी का मानना है कि पारंपरिक तरीके से डाटा एंट्री को खत्म कर यह सॉल्यूशन डिजिटाइज करने की प्रक्रिया को तेज करने के साथ मानवीय भूलों की संभावना को न्यूनतम कर देता है. किसी भी ऐसी स्थिति में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां हाथ के लिखे आंकड़ों को डिजिटल बनाने की जरूरत है. इसी वजह से यह एक नयी तकनीकी क्रांति का आगाज है.
कितना होगा सफल और क्या पड़ेगा प्रभाव
यह तकनीक और डिवाइस सेट विश्वविद्यालयों और स्कूलों के बोर्ड, कॉलेजों इत्यादि के लिए खासे काम का होगा. पारंपरिक तरीके से यानी हाथ से कंप्यूटर में अंक भरने या हजारों उत्तर-पुस्तिकाओं को स्कैन करने में होनेवाली सभी झंझटों से छुटकारा दिलानेवाली तकनीक है यह.
दरअसल, इस तकनीक की मार्फत नतीजों के प्रकाशन में होनेवाली अवांछित देरी, रिजल्ट में होनेवाली गड़बड़ियां, पुनर्मूल्यांकन की ब.ढती मांग आदि से भी निबटा जा सकता है. इन सब कारणों से छात्रों के भविष्य को प्रभावित होने से रोका जा सकता है. फिलहाल, बाजार में उपलब्ध सॉल्यूशन के मुकाबले इस तकनीक के कई फायदे हैं. इसे अधिक व्यावहारिक, फायदेमंद और आसान समझा जा रहा है. इसकी वजह यह है कि भारत के लाखों परीक्षक अपने पारंपरिक तरीके यानी पेन और कागज से जांचने का इस्तेमाल जारी रख सकते हैं.
इसका एक सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि यह सस्ता भी होगा, क्योंकि एक ही परीक्षा-केंद्र पर कई सारे परीक्षक एक साथ साझा तौर पर एक ही उपकरण का इस्तेमाल कर सकेंगे. यह लागत को न्यूनतम करने के साथ शुद्धता को भी सुनिश्चित करेगा, क्योंकि उपकरण में परीक्षण का वक्त और तारीख तक दर्ज हो जायेगी. साथ ही, किसी भी तरह के फर्जीवाड़े से भी बचा जा सकता है, क्योंकि एक बार केंद्रीकृत सर्वर में जाने के बाद पेन और टैबलेट में कोई भी आंकड़ा बचा नहीं रहेगा.
यह परीक्षकों को अधिक झमेले से भी बचायेगा, क्योंकि अगर वे किसी भी तरह का फेरबदल करना चाहेंगे, तो उनको केवल ऊपरी कागज पर ही बदलाव करना पड़ेगा, टैब में नहीं. साथ ही, वे अंतिम वक्त तक इसमें अपने मनमाफिक सुधार कर सकेंगे. दरअसल, इस तकनीक की कसौटी बोर्ड एग्जाम में इसकी सफलता पर ही निर्भर करेगी. छात्रों के लिए इसके बाद ही प्रतिष्ठित कॉलेजों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों की राह खुलती है. राष्ट्रीय और राज्य स्तर की कई प्रतियोगिताओं के दरवाजे इन परीक्षाओं के बाद ही खुलते हैं.
इन परीक्षाओं में योग्यता की एक कसौटी 10वीं या 12वीं के अंक ही होते हैं. छात्र-छात्राएं अपने बोर्ड एग्जाम के नतीजों का बेसब्री से इसी वजह से इंतजार भी करते हैं.
शायद, यही वजह है कि बदलती हुई दुनिया, तकनीक और रुझानों की वजह से ही स्कूल एजुकेशन बोर्ड और काउंसिल भी अब इन नतीजों को जल्द से जल्द और बिना किसी गलती के प्रकाशित करना चाहते हैं. समय की बचत और शुद्धता की कसौटी ही ‘ऑरियन एलआइसीआर’ की असली परीक्षा है.
काउंसिल और बोर्ड इस नयी तकनीक के माध्यम से छात्रों का विश्वास जीतना चाहते हैं और ऑरियन को काउंसिल का विश्वास जीतने के लिए खुद को हरेक बार फुल-प्रूफ तकनीक साबित करना होगा. इस कसौटी पर खरे उतरने के बाद ही एलआइसीआर तकनीक का अधिकतम इस्तेमाल होना शुरू हो सकता है.
बहरहाल, एलआइसीआर डिजिटल क्रांति को भले ही नहीं अंजाम दे सके, लेकिन यह बोर्ड परीक्षार्थियों और परीक्षकों को बड़ी राहत दे सकता है.
शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति की ओर
भारत में आइसीएसइ और आइएससी की परीक्षाओं में एलआइसीआर तकनीक के इस्तेमाल से एक नयी क्रांति की ओर छोटा ही सही, कदम तो बढ़ा है. केंद्र सरकार का जोर भी डिजिटल इंडिया बनाने पर है.
हालांकि, भारत के हिसाब से डिजिटल क्रांति की बात यदि छोड़ भी दें, तो केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही आधारभूत संरचनाओं की इतनी अधिक कमी है कि इस एक फैसले मात्र से किसी तरह के डिजिटल आंदोलन की उम्मीद नहीं की जा सकती. हमारे देश में आज की तारीख में बमुश्किल 20 फीसदी आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है.
इसके साथ ही, हमारे लाखों स्कूल ऐसे हैं, जहां इंटरनेट की बात तो दूर, कंप्यूटर तक मुहैया नहीं हैं. विज्ञान की प्रयोगशालाएं तक आधुनिक रूप से दुरुस्त नहीं हैं और न ही वहां आधारभूत संरचनाओं का विकास किया जा सका है. ऐसे में ऑरियन एलआइसीआर किस हद तक शिक्षा का डिजिटलीकरण कर सकता है, इसे आसानी से समझा जा सकता है. हां, इतना जरूर है कि उन लाखों विद्यार्थियों और हजारों शिक्षकों के लिए जरूर आसानी, सुविधा और फायदा होगा, जिन्हें बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों का बेसब्री से इंतजार रहता है.
फिलहाल, दुनिया में तीन ऐसे देश हैं, जहां शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति का खासा इस्तेमाल किया जा रहा है. यूएइ सरकार ने शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने के लिए डिजिटल लर्निंग में काफी निवेश किया है.
यहां के ग्रेजुएट्स को काफी कुशल और तकनीक-प्रवण बनाने की व्यवस्था की गयी है. इसके लिए वहां खास ऑनलाइन क्लासेज और वीडियो माध्यम से पढ़ाने के अलावा विद्यार्थियों को उद्योग के ताजातरीन ट्रेंड से भी अवगत कराया जाता है. हमारे प्रधानमंत्री की हालिया यूएइ (संयुक्त अरब अमीरात) यात्रा को सफल बताया जा रहा है. इस दोस्ती का इस्तेमाल शिक्षा के डिजिटलीकरण में भी होना चाहिए.
कुवैत में हाल ही में एक स्कूल ने ‘एजुकेशनल टेक्नोलॉजिस्ट’ नाम का पद सृजित किया है, ताकि उनकी तकनीकी कार्यान्वयन की क्षमता बिल्कुल अद्यतन रहे और सोशल मीडिया व तकनीक के ताजातरीन बदलावों के साथ चल सके. इसके अलावा, एशिया के ही एक अन्य देश ताइवान को उन देशों में गिना जाता है, जिसने अपनी पूरी आबादी के लिए मुफ्त में वाइ-फाइ की व्यवस्था की, ताकि डिजिटल संसाधनों पर असीमित पहुंच कायम हो सके.
अनेक स्कूलों में मोबाइल ले जाने पर पाबंदी नहीं है. यहां तक कि छात्रों को स्मार्टफोन इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वे अपने मनपसंद एप्स का इस्तेमाल करें और पढ़ाई में मदद ले सकें.
भारत में भी कई स्कूलों में कई तरह के अभिनव और नवोन्मेषी प्रयोग शुरू हुए हैं, लेकिन भारत की विशाल जनसंख्या, बड़े भूभाग और आधारगत संरचना की कमी से एक चौड़ी डिजिटल खाई देखने को मिलती है.
जहां देश के आधे बच्चे भूखे-नंगे घूम रहे हों, वहां समग्र डिजिटल क्रांति के लिए एक गंभीर राजनीतिक इच्छाशक्ति, बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश और भारी मात्रा में आधारभूत संरचना
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