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बहुत कठिन है मौसम और चुनावी राजनीति को समझना
गिरींद्र नाथ झा राजनीतिक मोड़ पर अक्सर अच्छे-अच्छे खिलाड़ी लोग भीरास्ते बदल लेते हैं. कई लोगों को तो इसमें महारत हासिल होती है. मौसम और चुनावी राजनीति को समझना बड़ा कठिन काम है. गांव का अपना जीवछ कबिराहा बोली में कहता है – ‘सब दल एक समाना..’ जीवछ की बात तीन अक्तूबर को उस वक्त […]
गिरींद्र नाथ झा
राजनीतिक मोड़ पर अक्सर अच्छे-अच्छे खिलाड़ी लोग भीरास्ते बदल लेते हैं. कई लोगों को तो इसमें महारत हासिल होती है. मौसम और चुनावी राजनीति को समझना बड़ा कठिन काम है. गांव का अपना जीवछ कबिराहा बोली में कहता है – ‘सब दल एक समाना..’
जीवछ की बात तीन अक्तूबर को उस वक्त सही लगने लगी, जब पूर्णिया के मौजूदा सांसद संतोष कुशवाहा ने अपना असंतोष सार्वजनिक कर दिया. मौका देखिए, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पूर्णिया आये थे. हालांकि उन्होंने एक बार भी यह नहीं कहा कि वह पार्टी से नाखुश हैं.
गौरतलब है कि पूर्णिया से जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा ने पार्टी नेताओं को लगभग धमकी देने के अंदाज में कहा है कि सदर विधानसभा सीट से कांग्रेस की इंदू सिन्हा और कटिहार के कोढ़ा विधानसभा से पूनम पासवान दमदार उम्मीदवार नहीं हैं. इन दोनों सीटों के उम्मीदवार नहीं बदले जाते हैं, तो निर्दलीय को समर्थन करेंगे.
वहीं दूसरी ओर शनिवार को पूर्णिया वायुसेना के एयरबेस पर जहां एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से इंदू सिन्हा की मुलाकात हो रही थी वहीं अपने आवास पर संतोष कुशवाहा पूनम पासवान और इंदू सिन्हा का टिकट रद्द करने की मांग कर रहे थे. कुशवाहा का कहना है कि इनके सहारे महागठबंधन ये सीटें नहीं जीत सकता. कहा यह भी जा रहा है कि कोढ़ा पर कुशवाहा की खास नजर थी. राजनीति यही है.
उधर इंदू सिन्हा का कहना है कि सांसद भाजपा छोड़कर जदयू में गये हैं. वह अंदर से भाजपाई हैं. उन्हें महिला और किसी पार्टी के जिलाध्यक्षों को टिकट दिया जाना अगर गलत लग रहा है, तो यह उनकी राजनीतिक समझदारी से जुड़ा मामला है. सोनिया गांधी ने उन्हे सीमांचल की मजबूत कांग्रेस नेता कहा है बौर इलाके की चुनावी कमान संभालने को कहा है. यह हुई पार्टी की बातें. अब चलिए चौक-चौराहों पर.
सुशील मोदी की बातों पर लोगबाग खूब बतकही कर रहे हैं. आरएन साव चौक पर सुबह-सुबह चाय की चुस्की लेते हुए बुजुर्ग रमेश रंजन कहते हैं -स्कूटी के साथ छोटे मोदी पेट्रोल भी भरा कर देंगे. बड़ा अजीब लगता है. हमें लगता है कि जब पॉलिटिकल लोग कुछ कहते हैं तो कभी सोचते भी होंगे कि क्या वे वादा पूरा कर पाएंगे?
चुनाव के वक्त बगावत भी एक मुद्दा बन जाता है. पूर्णिया से आगे बढ़कर लखीसराय की बात करते हैं. वहां हमारे एक मित्र आनंद शेखर हैं. उन्होंने कहा कि गिरिराज सिंह की प्रतिष्ठा लखीसराय में दावं पर है. भाजपा के विजय सिन्हा को चुनौती अपने ही दल के बागी सुजीत कुमार से मिल रही है. इन सबके बीच विकास मॉडल पर चर्चा कहीं होती है तो कहीं नहीं भी हो रही है. किशनगंज के असफाक आलम कहते हैं कि यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश-लालू है. उन्होंने बताया कि वोटर कहीं इस बात को लेकर कन्फ्यूज है कि लालू यादव अपने किस रूप में अब सामने आएंगे. लालू एक फैक्टर की तरह हर चौक चौराहों पर चर्चा में शामिल हैं. पूर्णिया के लाइन बाजार में इलाज के लिए फारिबसगंज से आये अलाउद्दीन कहते हैं-पहले चरण के बाद हम कुछ कह पाएंगे. हम सब इंतजार में हैं. वैसे सीमांचल में अच्छा अस्पताल होना चाहिए. बहुत सारी जरूरतें हैं. स्कूटी से कुछ नहीं होने वाला है. हम नीतीश कुमार से भी चाहेंगे कि वह यदि फिर कुर्सी संभालते हैं, तो कुछ खास करें. सुशील मोदी से भी यही चाहेंगे हम. ओवैसी के बारे में जब हमने अलाउद्दीन से पूछा, तो उन्होंने चुप्पी साध ली. लोगों से बातचीत कर ऐसा लगता है कि जमीनी तौर पर भी सब ने अपना पॉलिटिकल सेंस डेवलप कर लिया है. गांव पहुंचकर जब जोगो काका को यह सब सुनाता हूं तो वह कहते हैं-हम खेत में मगन हैं. हमारी अपनी दुनिया है. कोई आये जाये क्या फर्क पडता है. सबकी बातें सुनकर लगता है चुनाव हमें कितना कुछ सीखा रहा है. बाद बाकी जो है, सो तो हइये है.
(श्री झा पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद
पैतृक गांव में खेती-किसानी कर रहे).
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