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वोट तो उसी को जो अच्छा काम करेगा

औरंगाबाद में चुनावी तपिश को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है. बाकी जगहों के मुकाबले यहां के लोग ज्यादा मुखर हैं. बातचीत शुरू हुई नहीं कि वे खुल कर अपनी राय रखते हैं. बातें बेलौस और साफ-साफ. वे साफ-साफ कहते हैं कि नेता भले ही जाति की बात करें, लेकिन लोगों की सोच बदली […]

औरंगाबाद में चुनावी तपिश को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है. बाकी जगहों के मुकाबले यहां के लोग ज्यादा मुखर हैं. बातचीत शुरू हुई नहीं कि वे खुल कर अपनी राय रखते हैं. बातें बेलौस और साफ-साफ.

वे साफ-साफ कहते हैं कि नेता भले ही जाति की बात करें, लेकिन लोगों की सोच बदली है. लोगों की चिंता रोजी-रोजगार, सिंचाई, शिक्षा से लेकर सड़क व बिजली तक की है. प्रभात खबर के गया संस्करण के संपादक कौशल किशोर त्रिवेदी ने जिले का जायजा लिया.

बिहार के लोग भी अब देश-दुनिया के उन हिस्सों से काफी हद तक वाकिफ हो गये हैं, जहां रहनेवाले अपनी सरकारों के साथ मिल कर आये दिन उन्नति-प्रगति के नये-नये प्रतिमान गढ़ रहे हैं. औरंगाबाद के लोगों की भी इच्छा है कि इनके आसपास की दुनिया इनके हित में बदलनी चाहिए, इनकी जरूरतों के हिसाब से बदलनी चाहिए.

जिले के अलग-अलग इलाकों में रह रहे व्यवसायी उमा मेहता, राजेश गुप्ता, अयाज वारसी, छात्र विकास, दिनेश यादव, किसान संत लाल, भिखारी प्रसाद, प्राइवेट ट्यूटर राजेश कुमार व शिक्षक योगेंद्र दूबे की भावनाएं तो कम से कम यही संकेत करती हैं. राजकाज व समाज के बारे में बातचीत में इनकी तल्खी और तेवर बताते हैं कि अब इन्हें बातों में उलझा कर रख पाना किसी के लिए संभव नहीं.

जात-धर्म व अगड़ा-पिछड़ा नहीं

बलराम प्रसाद राजनीति के बारे में बहुत बातें करना नहीं चाहते. टालने के अंदाज में कहते हैं, ‘छोड़िए उन बातों को. नेता-जनता की बात मत करिए. नेता तो अपने ही हिसाब से चलेगा, चाहे जनता का जो भी हो. इसलिए पार्टी और नेता के बारे में क्या बोलना है? कहीं बालू पेरने से तेल निकलता है? ऐसी राजनीति से कुछ नहीं होनेवाला. लेकिन, अब गांव-ओंव का आदमी भी समझदार हो गया है. वह भी (विकास, बदलाव) खोजने लगा है. ये सब बहुत दिन नहीं चलनेवाला.’ यहीं अभिषेक जेंट्स पार्लर के करीब खड़ा एक युवक मोबाइल फोन पर किसी को कह रहा है, ‘पैसे तो अभी ही ले लेना. क्या बोल रहे हो? … अच्छा, अच्छा.

सुनो, गाड़ी में तेल भरवा लिये हो न? … चलो ठीक है. लेकिन, किसी तरह बाकी 400 रुपये भी ले लेना. बाद में कोई पैसा देगा तुम्हें? ऊपर से नेता है. ठीक है न? … चलो, रखते हैं.’ बातचीत में युवक अपना नाम संजय कुमार बताता है. किसी से मिलने के लिए पहरपुरा जाने की हड़बड़ी में है. दरअसल, उसने औरंगाबाद गये किसी नेता को गाड़ी उपलब्ध करायी है.

डर है कि बाद में नेताजी पैसे नहीं देंगे, सो ड्राइवर को पैसे वसूल लेने के लिए फोन पर बार-बार हिदायतें दे रहा है. चुनाव के बारे में बातें करते हुए बताता है कि पिछली बार वह वोट नहीं दे सका था. बाहर चला गया था. इस बार किसे देगा, अभी तक तय नहीं किया. लेकिन संजय कहते हैं, ‘जात-धरम, अगड़ा-पिछड़ा व दिल्ली-पटना कुछ नहीं. जो भी अच्छा काम करनेवाला दिखेगा, उसी को वोट दे देंगे.’

सरकार कोई हो, फर्क नहीं!

आगे बढ़ने पर जीटी रोड पर देव मोड़ के पास दो मोटरसाइकिलों पर सवार तीन लोग मिलते हैं. देव से औरंगाबाद लौट रहे हैं. इनमें मुंशी भगत भी हैं, जो सब्जियों के कारोबार से जुड़े हैं. अपने साथी रामप्रवेश महतो के साथ निकले हैं. साथ में उनके करीबी महेश प्रसाद भी हैं.

श्री भगत कहते हैं, ‘चुनाव-ओनाव तो देखिये बड़े आदमी की बात है. पैसेवाले ही लड़ते-समझते हैं. हमलोग तो दिनभर बैगन-परोर में ही उलङो हुए हैं. कहां समय है कि आदमी सोचे-समङो. कोई पार्टी चाहे नेता मदद करनेवाला है? अभी चुनाव है तो सब गरीब-गुरबा के नाम पर डुगडुगी बजा रहे हैं. बाद में किसको कौन पूछता है?’ बीच में महेश टोकते हैं. कहते हैं, ‘इ जो कह रहे हैं, इसमें कुछ गलत है भैया? आप ही बताइये न, नेता-पार्टी क्या करते हैं?

गद्दी पर बड़ा कोई प्रोफेसर-डाक्टर बैठेगा, तो भी सरकार चलेगी और अंगूठा छाप बैठेगा, तो भी चलेगी. बताइये कि यह कैसी सरकार होती है, जिसे कोई चलाये, फर्क नहीं पड़ता. हद है महाराज.’ इस बीच राम प्रवेश भी बोलने लगते हैं. ’अभी हुआ ही क्या है? खाली सड़क, बिजली की तो बात हो रही है. सिर्फ इससे ही जिंदगी चलेगी क्या? बाकी सब? यहां पढ़ाई-लिखाई भी ठीक नहीं है. घूस-रिश्वत का तो कहना ही नहीं है.’

जो विकास करेगा, वोट पायेगा

औरंगाबाद शहर होते हुए बारुण पहुंचने पर कई लोगों से मुलाकात होती है. इनमें युवा व्यवसायी राजेश गुप्ता भी हैं. वह फुटवेयर के कारोबार से जुड़े हैं. राजेश बिना लाग-लपेट कहते हैं, ‘सर, जो विकास करेगा, वो वोट पायेगा. केवल बात करनेवाला अब नहीं चलेगा. काम करेंगे, तो वोट मिलेगा. बिना काम कुछ नहीं.

’ जानकारी के मुताबिक, यादव व मुसलिम बहुल बारुण इलाके में आमतौर पर लोग शांतिपूर्ण माहौल में ही गुजर-बसर करते हैं. यहीं मिले मोहम्मद अयाज वारसी ने बताया कि उनलोगों को कहीं कोई परेशानी नहीं है. वे लोग चाहते हैं कि रोजी-रोजगार की दिक्कतें कम हों. विकास की बातें हों और विकास जमीनी स्तर पर दिखे.

बदला है जनता का सोच

बारूण से गया की दिशा में लौटते वक्त ओबरा में उमा मेहता मिले. उनका टोन अचानक कठोर होने लगता है- ‘कोई माने या नहीं, यहां जात-पात कूट-कूट कर भरा है. लोग जात-पात पर ही वोट करते हैं.

यह अलग बात है कि अधिकतर लोग अब विकास चाहते हैं.’ प्राइवेट ट्यूटर राजेश कुमार कहते हैं कि चीजें बदलनी चाहिए. दुनिया कहां से कहां चली गयी और बिहार कितना पीछे रह गया. ओबरा बाजार के पास रहनेवाले विकास और अभिनव नामक दो छात्र अपनी अलग चिंता जताते हैं. अभिनव औरंगाबाद के सिन्हा कॉलेज में पढ़ते हैं.

कहते हैं, ‘स्कूल-कॉलेज में शिक्षक ही नहीं हैं. जो हैं, वे पढ़ाने योग्य नहीं हैं. वह जहां पढ़ते हैं, क्लास ही नहीं होता.’ पचरुखिया मोड़ के पास सड़क किनारे चाय दुकान पर मिले किसान भिखारी प्रसाद सरकारी रवैये से बहुत दुखी हैं. बोले, सरकारें बोलती बहुत हैं और करती कुछ नहीं. कहते हैं, लोगों के पास पटवन के लिए पैसा नहीं है. कितना पैसा डीजल में झोंकेगा किसान? महागंठबंधन एनडीए वाम दल

रफीगंज अशोक कुमार सिंह (जदयू) प्रमोद सिंह (लोजपा) सुरेश मेहता (जअपा)

औरंगाबाद आनंद शंकर सिंह (कांग्रेस) रामाधार सिंह (भाजपा) संजीत कु. चौरसिया (जअपा)

नबीनगर वीरेंद्र कुमार सिंह (जदयू) गोपाल ना सिंह (भाजपा) मंजू देवी (बसपा)

कुटुंबा राजेश कुमार (कांग्रेस) संतोष कु सुमन (हम) सुदेश्वर कुमार (जअपा)

ओबरा वीरेंद्र कु सिन्हा (राजद) चंद्रभूषण वर्मा (रालोसपा) राजाराम सिंह (माले)

गोह रणविजय कु सिंह (जदयू) मनोज शर्मा (भाजपा) श्याम सुंदर (जअपा)

शहर के कई रंग : औरंगाबाद जिला को जीटी रोड से बांट कर देखें, तो इसके अलग-अलग रंग दिखते हैं. जीटी रोड इस शहर से होकर गुजरती है. अनुग्रह नारायण सिंह और उनके पुत्र सत्येंद्र नारायण सिन्हा का यह राजनीतिक क्षेत्र रहा है. जीटी रोड के एक तरफबड़े इलाके में नक्सलियों का आतंक छाया रहता है. दूसरी तरफ धान की उपजाउ भूमि है, क्योंकि पटना नहर है. शहर अभी भी विकास की बाट देख रहा है. इन दिनों शहर में गहमागहमी है.

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