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माय समीकरण : आठ सीटों पर होगी परीक्षा

पटना: विधानसभा चुनाव में आठ सीटों पर माय समीकरण ((मुसलिम-यादव) की परीक्षा होगी, तो पांच सीटों पर इस बात की परीक्षा होगी कि मुसलिम वोट का असली दावेदार कौन हैं. आबादी के अनुपात में किसी भी गंठबंधन या दल ने विधानसभा चुनाव में मुसलिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया. पर मुसलिम वोटों की दरकार सबको […]

पटना: विधानसभा चुनाव में आठ सीटों पर माय समीकरण ((मुसलिम-यादव) की परीक्षा होगी, तो पांच सीटों पर इस बात की परीक्षा होगी कि मुसलिम वोट का असली दावेदार कौन हैं.

आबादी के अनुपात में किसी भी गंठबंधन या दल ने विधानसभा चुनाव में मुसलिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया. पर मुसलिम वोटों की दरकार सबको है. राज्य में मुसलिम आबादी 16.5 फीसदी है. महागंठबंधन ने 33 मुसलमान प्रत्याशी उतारे हैं. राजद ने सबसे ज्यादा 17 मुसलमानों को टिकट दिया है. पिछले चुनाव में यह संख्या 28 थी. दूसरी तरफ, एनडीए की ओर से नौ मुसलिम प्रत्याशी उतारे गये हैं. भाजपा ने दो अल्पसंख्यकों को प्रत्याशी बनाया है. एनडीए में सबसे ज्यादा हम के पास मुसलमान प्रत्याशी हैं. छह दलों के थर्ड फंट्र की पूरी सूची आना बाकी है. मुसलिम बहुल सीमांचल की करीब दर्जन भर सीटों पर अल्पसंख्यक वोट निर्णायक माने जाते हैं. इस बार चुनाव में अससुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआइएमआइएम ने सीमांचल की 25 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर उन दलों को चिंता में डाल दिया है, जो अब तक मुसलिम वोटों पर दावेदारी करते रहे हैं. इन सीटों पर 30 से 75 फीसदी मुसलिम आबादी है. आठ सीटों- बिस्फी, सिमरी बख्तियारपुर, दरभंगा ग्रामीण, साहेबपुर कमाल और बेलागंज पर मुसलिम और यादव प्रत्याशी आमने -सामने हैं.

बिहार की राजनीति में सबसे ज्यादा मुसलमान विधायक 1985 के विधानसभा चुनाव में जीत कर आये थे. 324 सदस्यीय विधानसभा में तब उनकी संख्या 34 थी, जो कुल विधायकों की संख्या का 10.50 फीसदी था. जनता पार्टी के विघटन के तुरंत बाद 1985 का विधानसभा चुनाव हुआ था. इसके बाद कांग्रेस की सरकार बनी थी. हालांकि यह संख्या इसके बाद तेजी से घटी. यानी जनता दल और राजद सरकारों के कार्यकाल में विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 8.5 फीसदी से कम ही रहा. पिछले विधानसभा चुनाव में 19 प्रत्याशी जीते थे.

एएमयू के सहायक प्राध्यापक डॉ मोहम्मद सज्जाद का मानना है कि आजादी के बाद बिहार की राजनीति में मुसलिमों की भागीदारी में पड़ोसी राज्यों की तुलना में कम हिचक थी. मुसलिमों की बढ़ी हुई भागीदारी बिहार के विधान सभाओं में मुसलिमों की बढ़ी हुई नुमाइंदगी में झलकती है. हालांकि यह नुमाइंदगी उनकी आबादी के अनुपात में आज भी नहीं है.

सिर्फ एक मुसलिम सीएम

आजादी के बाद अब्दुल गफूर बिहार के एकमात्र मुसलिम सीएम बने. वह जुलाई, 1973 से अप्रैल, 1975 तक मुख्यमंत्री रहे. 1975 में उन्हें हटा दिया गया था.

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