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सरकार ही डुबाती है अपनी कंपनियां

एयर इंडिया की स्थिति ढाक के तीन पात जैसी, प्रयोगों से हाल बेहाल हाल ही में एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव की पुस्तक ‘द डिसेंट ऑफ एयर इंडिया’ आयी है, जिसमें उन्होंने बताया है कि एयर इंडिया को लेकर प्रयोग बंद होने चाहिए. भार्गव ने सेवा में रहने के दौरान एयर इंडिया […]

एयर इंडिया की स्थिति ढाक के तीन पात जैसी, प्रयोगों से हाल बेहाल

हाल ही में एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव की पुस्तक डिसेंट ऑफ एयर इंडिया आयी है, जिसमें उन्होंने बताया है कि एयर इंडिया को लेकर प्रयोग बंद होने चाहिए.

भार्गव ने सेवा में रहने के दौरान एयर इंडिया को उबारने के कई प्रयास किये थे. पर सरकारी नीतियों के कारण नतीजा सिफर ही रहा. अब केंद्रीय उड्डयन मंत्री अजीत सिंह भी कह रहे हैं कि एयर इंडिया का निजीकरण जरूरी है.

जब वायलार रवि केंद्रीय उड्डयन मंत्री थे, तब उन्होंने संसद को बताया था कि एयर इंडिया की प्रतिदिन की आमद 36 करोड़ है, जबकि प्रतिदिन खर्च 57 करोड़ है. यानी प्रतिदिन 21 करोड़ का घाटा. एयर इंडिया को घाटे से उबारने के लिए सरकार ने 30 हजार करोड़ का बेलआउट पैकेज दिया.

पर यह भी नाकाफी निकला. अब वर्तमान उड्डयन मंत्री अजीत सिंह ने साफसाफ कहा है कि अगली सरकार को यह तय करना होगा कि एयर इंडिया अपनी कमाई बढ़ाये या फिर अपनी हालत पर आंसू बहाये.

उनका मानना है कि एयर इंडिया को इस स्थिति से निकालने के लिए इसका निजीकरण करना होगा. एयर इंडिया के 13 वर्षो तक कार्यकारी निदेशक रहे जितेंद्र भार्गव कहते हैं कि अब एयर इंडिया के साथ प्रयोगों का दौर बंद होना चाहिए.

उनका मानना है कि यदि निजीकरण के जरिये भी एयर इंडिया को एक लाभकारी संस्था में बदला जाता है, तो इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए.

कार्यशैली में बदलाव की जरूरत : भार्गव ने अपनी पुस्तक डिसेंट ऑफ एयर इंडिया में सरकार की कार्य शैली पर प्रश्न उठाते हुए पूछा है कि एयर इंडिया को उबारने के लिए क्या सरकार सख्त कदम उठाने में सक्षम है? उन्होंने बड़ी बेबाकी से बताया है कि वह अपनी पुस्तक का नाम हू डेस्ट्रॉयड एयर इंडिया ? यानी एयर इंडिया को किसने बरबाद किया रखना चाहते थे.

वह निजीकरण को समय की मांग बताते हैं, पर साथ ही उनका मानना है कि किसी कंपनी के फलनेफूलने में सरकारी स्वामित्व बाधा नहीं बनती. दुनिया में सरकारी स्वामित्व वाली कई एयरलाइंस हैं, जो बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं. लेकिन इसका मुख्य कारण उनकी नीतियां हैं. उदाहरण के लिए चीन में सरकार एयरलाइंस को चलाने के लिए दो व्यक्तियों की नियुक्ति करती है.

पहला जो पेशेवर तरीके से एयरलाइंस चलाते हैं और दूसरा, जो सरकार के साथ अपनी सहभागिता बनाने और अपनी हितों की पूर्ति के लिए काम करता है. लेकिन दुर्भाग्य से भारत में सीइओ का तीनचौथाई समयमंत्रालयके साथ संवाद बनाने में बीत जाता है. साल दर साल डूबता रहा एयर इंडिया : भार्गव ने एयर इंडिया की गिरावट का पूरा लेखाजोखा दिया है.

संस्थागत कमजोरी, बड़े पदों पर बैठे लोगों में नीतिगत फैसले लेने का अभाव, भविष्य की रणनीति पर काम नहीं करने और प्रतिस्पर्धी माहौल के अनुरूप बदलाव करने के लिए उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. साथ ही विजन की कमी को रेखांकित करते हुए भार्गव ने बताया है कि बोर्ड के गठन, नौकरशाहों को सीएमडी बनाने आदि के प्रयोगों से एयर इंडिया कंगाली और बदहाली के हालत में पहुंच गयी है.

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