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बिहार को चाहिए स्मार्ट सरकार
अंजय कुमार दिल्ली से विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. राजनीतिक दलों, उनके नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी काम बढ़ गया है. वे पूरी तरह से एक्टिव हो गये हैं. गंठबंधन और सीटों के बंटवारे की बात चल रही है. रूठने और मनाने का दौर भी जारी है. टिकट के लिए भी खूब जोर-आजमाईश […]
अंजय कुमार
दिल्ली से
विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. राजनीतिक दलों, उनके नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी काम बढ़ गया है. वे पूरी तरह से एक्टिव हो गये हैं. गंठबंधन और सीटों के बंटवारे की बात चल रही है. रूठने और मनाने का दौर भी जारी है. टिकट के लिए भी खूब जोर-आजमाईश चल रही है. ये जितनी भी चीजें चल रही हैं, उनके केंद्र में तो बस वही है, जिस पर पूरा चुनाव परिणाम निर्भर करता है. वह है जनता.
लोकतंत्र में शासन की असली डोर तो जनता के ही हाथों में होती है और यही वजह है कि चुनाव के दौरान हर चीज जनता को रिझाने के लिए की जाती है, ताकि उसका वोट मिल सके. बिहार भी विधानसभा चुनाव के दौर से गुजर रहा है. चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के साथ ही जनता को रिझाने के काम शुरू हो गया है.
यह चुनाव इसलिए दिलचस्प होनेवाला है, क्योंकि इस बार समीकरण पिछली बार के एकदम विपरीत है. दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन चुके हैं. खैर कोई कुछ भी बने, जनता को अंतत: केवल इस बात से मतलब है कि जो भी सरकार बने, वह उसके लिए काम करे.
राज्य की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यदि बात की जाये, तो असल में ऐसे सरकार की जरूरत है, जो स्मार्ट हो. यह स्मार्टनेस हर चीज में झलकनी चाहिए. सबसे बड़ी समस्या जो हर सरकार के सामने आ रही है, वह है केंद्र सरकार के साथ उसके संबंधों का मधुर नहीं होना.
यही वजह है कि हर बार बिहार उपेक्षित रह जा रहा है. विकास के लिए यदि राज्य को केंद्र के साथ थोड़ा समझौता करना भी पड़े, तो उसमें कुछ गलत नहीं है. इसलिए यह जरूरी है कि सरकार अपने काम करने के तरीके में स्मार्ट हो. वह यह तय कर पाने की स्थिति में हो कि किन मुद्दों पर केंद्र के साथ किस तरह से पेश आना है.
हर मुद्दे पर हम अड़ियल रवैया नहीं अख्तियार कर सकते. इसमें कोई संदेह नहीं कि केंद्र में अपनी पार्टी की सरकार नहीं होने से समस्या आती है, लेकिन हमारी सरकार को भी इतना स्मार्ट होना चाहिए कि ह उसी में ऐसा रास्ता ढूंढ़ निकाले, जिससे केंद्र की ओर से राज्य को हर वह मदद मिलती रहे, जिसकी राज्य को दरकार है. स्मार्ट सरकार के काम करने का तरीका ऐसा होना चाहिए कि विरोधी भी उसके कायल बन जाये.
सही मायने में बिहार को ऐसी ही सरकार की जरूरत है, जो विभिन्न मुद्दों पर बहस करने को तैयार रहे, अच्छे सुझावों को स्वीकार करे. एक बार राज्य ने यदि ठीक तरीके से विकास की रफ्तार पकड़ ली, तो केंद्र सरकार को भी उसकी मदद जारी रखनी ही पड़ेगी. हां यह बात जरूरी है कि केंद्र सरकार को भी राजनीति से ऊपर उठ कर राज्यों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए और राज्यों को उनका हक देना चाहिए, लेकिन राज्य का भी यह दायित्व है कि वह समय-समय पर केंद्र से अपने हक की मांग करता रहे और वहां से मिलनेवाली मदद से राज्य में विकास योजनाओं को संचालित करता रहे.
एक और सबसे अहम बात यह है कि चुनाव जीतने के बाद जिस पार्टी की सरकार बन रही है, वह इस बात को भूल जाये कि किसने उसके खिलाफ चुनाव लड़ा था. वह इस बात को भी भूल जाये कि किसने उसे वोट दिया और किसने नहीं. अब हमें एक स्मार्ट सरकार की जरूरत है, जिसकी सोच भी स्मार्ट हो. वह निष्पक्ष होकर काम करे और किसी को टारगेट करके उसे नुकसान न पहुंचाये.
बदलते वक्त के साथ राजनीति के स्वरूप में भी परिवर्तन की दरकार है. चुनाव की महत्ता चुनाव तक ही खत्म नहीं हो जानी चाहिए, बल्कि यह चुनाव के बाद भी जारी रहनी चाहिए. राज्य के विकास के लिए आगामी सरकार को जरूरत पड़े तो विपक्षी दलों का भी सहयोग लेना चाहिए और केवल वही काम करने चाहिए, जिनसे सीधे जनता को लाभ मिलनेवाला हो. तभी मतदान की महत्ता बरकरार रह पायेगी.
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