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सोलह साल बाद भी नहीं खुला

बरौनी खाद कारखाना अभी सुर्खियों में है. इसकी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह घोषणा है, जिसमें उन्होंने इस कारखाने को चालू करने की बात कही है. यह कारखाना 16 सालों से बंद पड़ा है. यहां के उत्पादन से बिहार के किसानों की खाद की किल्लत काफी हद तक दूर हो गयी थी. बाद में […]

बरौनी खाद कारखाना अभी सुर्खियों में है. इसकी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह घोषणा है, जिसमें उन्होंने इस कारखाने को चालू करने की बात कही है. यह कारखाना 16 सालों से बंद पड़ा है. यहां के उत्पादन से बिहार के किसानों की खाद की किल्लत काफी हद तक दूर हो गयी थी.
बाद में केंद्र सरकार ने इस कारखाने को बंद करने का फैसला ले लिया. इस कारखाने से बेगूसराय जिले के किसानों की उम्मीदें तो जुड़ी हैं ही, राज्य के औद्योगिक विकास का यह प्रतीक भी है. जिले के हजारों लोगों के रोजगार का यह जरिया भी है. इस बार के विधानसभा चुनाव में यह कारखाना फिर मुद्दा बनेगा, यह तय है.
बकाया है 4500 करोड़
31 मार्च, 2006 तक बरौनी खाद कारखाना पर बिहार राज्य बिजली बोर्ड का 88.63 करोड़, आरसीएफ से ऋण तथा उस पर ब्याज 3752 करोड़ रुपये तथा इसके अलावा 300 करोड़ रुपये यानि 2006 तक बरौनी खाद कारखाने के पर 4500 करोड़ का बकाया है.
कामगारों ने छोड़ा उर्वरकनगर को
वर्ष 2001 में बरौनी खाद कारखाने की बंदी के साथ उर्वरकनगर से कामगार चले गये. उस समय यहां 1200 कामगार कार्यरत थे. कार्यरत कर्मचारियों एवं अधिकारियों को वीआरएस के तहत छुट्टी दे दी गयी.
बंदी के बाद से ही राजनीति शुरू
बरौनी खाद कारखाने की बंदी के बाद यह राजनीतिक मसला बना रहा. राजनीतिज्ञों की पहल से लोगों में इसके चालू होने को लेकर उम्मीदें भी जगती रहीं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान ने एक साथ 12 नवंबर 2008 को बरौनी उर्वरक नगरी के मैदान में कारखाना के पुनरूद्धार को लेकर शिलान्यास किया था. पर कुछ हुआ नहीं. कारखाने की मशीनें जंग खा चुकी हैं.
फिर शिलान्यास, पर भरोसा नहीं
केंद्र सरकार ने बरौनी खाद कारखाने को 6 हजार करोड़ की लागत से चालू करने की घोषणा एवं गैस पाइप लाइन का शिलान्यास के बाद उम्मीद तो जगी है. पर लोगों को डर है कि कहीं इसका हस्र पुरानी घोषणाओं-आश्वासनों की तरह न हो जाये.
बदल गयी थी तसवीर
बरौनी खाद कारखाना के शुरू होते ही क्षेत्र की तसवीर बदल गयी थी. इसने इस क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि भी लायी. बरौनी कारखाने में रात-दिन काम होने से पूरा इलाका गुलजार रहा करता था. यूनिट के अमोनिया प्लांट की क्षमता 600 टन प्रतिदिन थी.
1999 में हुआ था बंद
अचानक जनवरी 1999 में प्लांट को बंद कर दिया गया. कारखाने पर बिजली सहित अन्य मदों में बकाया करीब 4500 करोड़ रुपये है. तब कारखाने में 1200 कामगार थे.
ऐसे पूरा हुआ था सपना
बरौनी खाद कारखाना के निर्माण की स्वीकृति जनवरी 1967 में थी. तब इसकी लागत राशि 48 करोड़ की थी. जो निर्माण कार्य पूरा होते-होते 92 करोड़ तक पहुंच गयी थी. इसमें लगभग 24 करोड़ विदेशी मुद्रा विनिवेश किया गया था.
जिसका शिलान्यास तत्कालीन राज्यपाल नित्यानंद कानूनगो ने मई 1970 में किया था. 350 एकड़ में फैले बरौनी खाद कारखाना से एक नवंबर 1976 से 1.84 लाख टन मोती यूरिया का उत्पादन प्रति वर्ष शुरू हुआ. जिससे 280 एकड़ में फैला उर्वरकनगर उपनगरी में तब्दील हुआ था.

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