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पीओके के जरिये भारत को घेरता चीन
नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीरी हिस्से में चीन ने अनेक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भारी मात्रा में निवेश किया है. चीन और पाकिस्तान न सिर्फ उत्तरी कश्मीर के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि इस क्षेत्र के जरिये मध्य एशिया के देशों तक […]
नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीरी हिस्से में चीन ने अनेक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भारी मात्रा में निवेश किया है. चीन और पाकिस्तान न सिर्फ उत्तरी कश्मीर के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि इस क्षेत्र के जरिये मध्य एशिया के देशों तक अपनी सीधी पहुंच के प्रयास भी कर रहे हैं.
ऐसी स्थिति में भारत को पूरी गंभीरता से दोनों देशों पर कूटनीतिक दबाव बनाना होगा. समूचे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते रहने की रस्मी रट से कुछ हासिल नहीं होनेवाला है. पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की लगातार बढ़ती उपस्थिति पर नजर डाल रहा है आज का विशेष…
डॉ रहीस सिंह/ विदेश मामलों के लेखक
1965 के भारत–पाकिस्तान युद्ध की 50वीं वर्षगांठ पर पाकिस्तानी सेना के जनरल राहिल शरीफ ने रावलपिंडी से भारत को यह कह कर चेतावनी दी कि कश्मीर पाकिस्तान का अधूरा एजेंडा है. यदि भारत किसी तरह का दुस्साहस करता है, तो हम उसका माकूल जवाब देंगे. चाहे परंपरागत लड़ाई हो या गैर- परंपरागत, हम हर परिस्थिति के लिए तैयार हैं.
प्रत्युत्तर में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने यह संदेश देने की कोशिश की कि जम्मू–कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस पर कोई संशय नहीं है. यदि इससे जुड़ा कोई मुद्दा है, तो वह यह कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को किस तरह फिर से भारत में शामिल किया जाये. अब हम पीओके के बारे में सोच रहे हैं. यदि सरकार वास्तव में ऐसा सोच रही है, तो अच्छी बात है, लेकिन क्या उसने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन के प्रभुत्व का सही से आकलन कर लिया है? क्या वहां बढ़ती चीनी सैन्य व आर्थिक सक्रियता किसी नये खतरे का संकेत नहीं प्रतीत होती? सवाल ताे यह भी है कि यदि है तो भारत वहां निपटने के कौन से प्रयास कर रहा है?
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर नजर डालें, तो पता चलेगा कि चीन इस क्षेत्र में विकास के नाम पर किस तरह से अपना रणनीतिक प्रभुत्व स्थापित कर रहा है. पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में झेलम और नीलम नदियों के किनारे केसरिया रंग के टेंट तथा मंडारिन भाषा में लगे दिशासूचक बोर्ड इस बात की गवाही देते हैं कि चीन पीओके पर काफी हद तक अपना नियंत्रण जमा चुका है. दरअसल, वर्ष 2005 में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भूकंप आने के बाद से पाकिस्तान सरकार ने यहां विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान कर दी थी.
इसके बाद से अन्य देशों से निवेश तो कम आये, लेकिन चीन ने मेगा प्रोजेक्ट्स के जरिये अपनी सक्रियता बढ़ाने का निर्णय लिया, जिससे वह एक साथ कई उद्देश्य पूरे करने में सफल हो. इसके बाद चीन ने जिन प्रोजेक्ट्स में बड़े पैमाने पर निवेश किया, उनमें कुछ इस प्रकार हैं– 274.88 अरब रुपये नीलम–झेलम हाइड्रोप्रोजेक्ट, जो 969 मेगावॉट बिजली पैदा करेगा.
इससे न केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के सरवर पॉवर स्टोरेज का समाधान निकलेगा, बल्कि इसलामाबाद भी लाभान्वित होगा. कोहला प्रोजेक्ट है, जो 1100 मेगावाट बिजली पैदा करेगा और पाकिस्तान के 2020 तक पीओके में 2569 मेगावाट बिजली पैदा करने के मकसद में काफी हद तक सहायक होगा आदि. ऊपरी तौर पर तो यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में चीनी सहयोग है, लेकिन चीन वास्तव में पीओके में इन परियोजनाओं के जरिये अपने सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास भी कर रहा है, जो भारत के लिए किसी बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.
पाकिस्तान ने चीन के इस प्रसार या फिर यूं कहें कि चीन–पाक की भारत विरोधी संयुक्त रणनीति के लिए गिलगित–बाल्टिस्तान क्षेत्र में स्वायत्त प्रांतीय व्यवस्था कायम करने की शुरुआत की, जिससे वहां एक ऐसा छद्म आवरण तैयार किया जा सके, जो इन दोनों देशों के रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक हो. परिणाम यह हुआ कि चीन और पाकिस्तान इस क्षेत्र को मिल-बांट कर धीरे-धीरे खा रहे हैं.
चीन इस क्षेत्र में न केवल मेगा एनर्जी प्रोजेक्ट्स के जरिये चीनी अर्थव्यवस्था के बुनियादी क्षेत्र के रूप में इसका प्रयोग कर रहा है, बल्कि वह पुराने सिल्क रूट के इस कोर एरिया में 46 बिलियन डॉलर निवेश करके एक ऐसा कॉरिडोर निर्मित करने जा रहा है, जो न केवल चीन–पाकिस्तान के लिए रक्षात्मक दीवार (डिफेंसिव वॉल) का काम करेगा, बल्कि भारत को घेरने का कार्य भी सम्पन्न करेगा. इस निवेश से चीन–पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का निर्माण होगा, जो काश्गर से ग्वादर को जोड़ेगा. गिलगित में ही चीन लगभग 1500 एकड़ जमीन पर इकोनॉमिक एंड इंडस्ट्रियल डोमेन डेवलप करने जा रहा है. पाकिस्तान इस तरह के निवेशों से इस क्षेत्र में पंजाबियों और पख्तूनों को रोजगार देकर अपना आधार मजबूत करना चाहता है, ताकि इस क्षेत्र में उपजने वाले विरोधों को समाप्त किया जा सके.
दरअसल, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आने वाले गिलगित–बाल्टिस्तान क्षेत्र में यूरेनियम, सोना, रूबी के साथ हैवी मैटल मौजूद हैं और यहां के पहाड़ी इलाके में जल विद्युत और पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यह क्षेत्र चीन, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के साथ कश्मीर के लद्दाख से जुड़ा हुआ है. कभी यहीं से सिल्क रूट गुजरता था. इस रास्ते के जरिये पूरा मध्य एशिया भारत से बेहद नजदीक आ जाता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि कारोबार के लिए रास्ता खुलने से यह क्षेत्र एशिया के स्विट्जरलैंड की तरह बन सकता है.
चीन समुद्री रास्ते से पाकिस्तान तक 21 दिन के उलट इस क्षेत्र से महज 14 घंटे में माल पहुंचाने में कामयाब हो सकता है और कुछ हद तक हो भी रहा है. यही कारण है कि चीन अब पुराने सिल्क रूट के इस केंद्रीय क्षेत्र में बड़ा निवेश करना चाहता है. पाकिस्तान और चीन के मध्य हुए समझौते के फलस्वरूप काश्गर से इसलामाबाद के करीब हवेलियां तक रेलवे लाइन बिछाने, बड़े-बड़े बांध बनाने, सोने, तांबे और अन्य खनिजों के खनन के ठेके चीनी कंपनियों को आवंटित किये गये हैं. साथ ही गिलगित के पास 1500 एकड़ जमीन पर औद्योगिक एवं आर्थिक प्रक्षेत्र विकसित करने के लिए चीन के साथ करार हुआ है.
दूरसंचार सेवाएं चीन की हुआवेई कंपनी के हाथ में हैं. यह सब पीओके के विकास के नाम पर हो रहा है, लेकिन इस संपूर्ण क्षेत्र में एक भी बड़ा अस्पताल, पॉलीटेक्निक, मेडिकल कालेज या कोई बड़ा शैक्षणिक संस्थान नहीं विकसित नहीं हुआ है. इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का नव-औपनिवेशीकरण किया जा रहा है, जिसमें पाकिस्तान और चीन के साझा हित निहित हैं.
जो भी हो यह क्षेत्र एशिया के रणनीतिक समीकरणों को बदलने की शक्ति रखता है, इसलिए भारत को पीओके में चीनी सक्रियता को गंभीरता से लेना होगा. हालांकि, भारत के प्रधानमंत्री चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) पर आपत्ति जता चुके हैं, लेकिन चीन ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है, क्योंकि उसका तर्क है कि इससे क्षेत्रीय विकास को मदद मिलेगी. यही नहीं पाकिस्तान इससे पहले भी चीन के साथ आठ करार कर चुका है, जिसमें रणनीतिक लिहाज से अहम पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के उबड़–खाबड़ इलाके से 200 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का 18 अरब डॉलर का भारी भरकम समझौता भी शामिल है.
यही समझौते और इनके जरिये चीन को दी जा रही सहूलियतें पाकिस्तान के पीछे चीन को मजबूती से खड़ा करने का आधार प्रदान करती हैं. यही वजह है कि पाकिस्तान आये दिन भारत के खिलाफ धमकी भरे अल्फाजों का प्रयोग करने में स्वयं को समर्थ पाता है. फिलहाल चीन की पीओके में घुसपैठ भारत की वैदेशिक रणनीति के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है, जिसका समाधान खोजना भारत सरकार की जिम्मेवारी भी है और विवशता भी.
दो राजमार्ग
पाकिस्तान की पिछली सरकार के शासनकाल में जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति जरदारी चीन की यात्रा पर गये थे, उस समय लगभग 52.5 करोड़ डॉलर की लागत से दो राजमार्ग बनाये जाने को लेकर दोनों देशों की सहमति बनी थी. पर्वतीय चोटियों से होकर पहला राजमार्ग जगलोत और स्कर्दू के बीच बनेगा, जिसकी लंबाई 165 किलोमीटर होगी. दूसरा राजमार्ग गिलगिट बाल्टिस्तान के विवादास्पद इलाके में थाकोट और साजिन के बीच बनेगा, जिसकी लंबाई 135 किलोमीटर होगी. इन राजमार्गों से पीओके में पाक को अपनी सैन्य तैनाती को मजबूत करने में मदद मिलेगी. इस स्थिति में भारत के लिए तनाव का बढ़ना निश्चित है.
इसका कारण यह है कि स्कर्दू का इलाका कारगिल से केवल 60 किलोमीटर दूर है, जो 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना के लिए एक महत्वपूर्ण सप्लाई बेस बना था. कुल मिला कर सामरिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र पाकिस्तान के लिए बेहद महत्व का सिद्ध हो सकता है और भारतीय सेना के लिए बेहद चिंता की वजह.
जानकारी के अनुसार, इन राजमार्गों के निर्माण में पाकिस्तान का निवेश केवल 15 प्रतिशत होगा और 85 प्रतिशत चीन का. विचारणीय तथ्य है कि इन राजमार्गों के निर्माण पर चीन इतना भारी निवेश न केवल पाकिस्तानी सैनिक क्षमता मजबूत बनाने के लिए करेगा, बल्कि उसका उद्देश्य होगा कराकोरम क्षेत्र के निकटवर्ती इन राजमार्गों के जरिये अपनी सामरिक स्थिति को और सुदृढ़ करना.
पीओके का भूगोल
पीओके की सीमा पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनवाला से उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान के वखन कॉरिडोर, उत्तर में चीन के शिनझियांग ऑटोनोमस रीजन और पूर्व में जम्मू–कश्मीर और चीन से मिलती है. पीओके को प्रशासनिक तौर पर दो हिस्सों–आजाद कश्मीर और गिलगिट–बाल्टिस्तान में बांटा गया है. भारत इसे पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला क्षेत्र मानता है. यही वजह है कि भारत ने जम्मू–कश्मीर राज्य विधानसभा में पीओके के लिए 25 सीटें और संसद में 7 सीटें आरक्षित रखी हैं.
पीओके और भारत का रवैया
प्रसेनजित चौधरी
जम्मू-कश्मीर के खबरों में छाये रहने की तुलना में पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर पर मीडिया की नजर न के बराबर रहती है. कुछ दिन पहले अपनी सत्ता को वैधानिकता देने के उद्देश्य से पाकिस्तान द्वारा इस इलाके में कराये गये चुनाव पर भारत में कोई चर्चा नहीं हुई. हमारे नक्शे में उसका वजूद जरूर है, पर उसके बरक्स अपनी भूमिका को लेकर हमारी गंभीरता शायद ही कभी दिखती हो. पाक-अधिकृत कश्मीर हमारी कूटनीतिक गतिविधियों में भी कभी गंभीर मसला नहीं रहा है.
हाल में हुए इलाकाई चुनावों में पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज) ने 24 में से 14 सीटें जीतीं. चुनाव लड़नेवाले 272 उम्मीदवारों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सत्ताधारी पार्टी के अलावा पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, इमरान खान की तहरीके-इंसाफ और पूर्व सैनिक तानाशाह परवेज मुशर्रफ की पार्टी के लोग भी शामिल थे. इससे जाहिर है कि पाक की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने उत्तरी कश्मीर के इस हिस्से पर पाकिस्तानी कब्जा यज माना है.
वर्ष 2009 में जब गिलगित-बाल्तिस्तान में विधानसभा बनी, तो कुछ बुदबुदाने के अलावा भारत ने और क्या किया था? इस बार भी विदेश मंत्रालय ने रस्मी बयानबाजी कर अपनी जिम्मेवारी पूरी कर ली. पाक-अधिकृत कश्मीर का सामरिक महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि वह पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान के साथ चीन के झिंझियांग प्रांत से सटा है, बल्कि इसलिए भी कि पाकिस्तान और चीन को इस इलाके से होते हुए जोड़नेवाला काराकोरम हाइवे बन गया है.
पाक-अधिकृत कश्मीर के मध्य एशिया के गणराज्यों से जुड़े होने और उनके बाजार के बढ़ने की स्थिति इस बात को स्पष्ट करती है कि क्यों चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से झिंझियांग को जोड़नेवाले महत्वकांक्षी आर्थिक गलियारे को बनाने की कोशिश जारी रखी है. इस हाइवे को बढ़ाने और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नये सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट परियोजना के तहत रेल पटरी बनाने की भी योजना है.
ये सभी बातें संकेत करती हैं कि मामला भारत के हाथ से दूर निकल गया है- पहले, 1947, फिर 1963 के समझौते के तहत शक्सगाम घाटी को पाक द्वारा चीन को देना या 1970 में पाकिस्तान द्वारा इस क्षेत्र को दो भागों- मीरपुर-मुजफ्फराबाद (कथित रूप से आजाद कश्मीर) और संघ-शासित गिलगित-बाल्तिस्तान में बांट देना.
कहा जा सकता है कि भारत के बेपरवाह और ढीले रवैये ने चीन और पाकिस्तान को उस क्षेत्र में संसाधनों के दोहन तथा अपने प्रभाव-विस्तार की खुली छूट दे दी है. इस रुख के चाहे जो कारण हों, पर यह तय है कि इससे भारत को नुकसान ही हुआ है. समय बीतने के साथ पाक-अधिकृत कश्मीर भारत की हद से बाहर जा रहा है.
(डीएनए में प्रकाशित लेख का संपादित अंश. साभार)
रणनीतिक महत्व की सुरंग
जुलाई, 2013 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने ग्रेट हॉल अॉफ पीपुल में चीन के साथ कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे, जिसमें 200 किलोमीटर की सुरंग का निर्माण भी शामिल था.
यह सुरंग अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को उत्तर–पश्चिम चीन में शिनझियांग में काशगर से जोड़ेगी. उल्लेखनीय है कि रणनीतिक लिहाज से अहम ग्वादर बंदरगाह का नियंत्रण चीन प्राप्त कर चुका है. इससे उसकी अरब सागर तथा पश्चिम एशिया में होरमुज जलडमरूमध्य (स्ट्रैट अाॅफ होरमुज) तक न केवल पहुंच सुगम होगी, जहां से दुनिया के एक–तिहाई तेल का परिवहन होता है, बल्कि वह इसके जरिये एशिया की भू–क्षेत्रीय रणनीति तथा ऊर्जा कूटनीति पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल हो जायेगा, जिसका प्रयोग वह अपने दबदबे को कायम रखने और भारत को कमजोर करने के लिए कर सकता है.
पीओके में चीनी सैनिकों का जमावड़ा
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीनी सेना के अभियंताओं की बढ़ती उपस्थिति भारतीय सेना के लिए सिरदर्द बनती जा रही है. वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के अनुसार, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कितने सिपाही और अभियंता नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बुनियादी ढांचे के निर्माण में लगे हैं, इसके बारे में अभी सही संख्या नहीं बतायी जा सकती, लेकिन पिछले कुछ महीनों में इस संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.
कुछ समय पहले इस संबंध में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि गिलगित और बाल्टिस्तान समेत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 15,000 चीनी सैनिकों का जमावड़ा है. हालांकि, चीन लगातार इसे मानने से इनकार कर रहा है.
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