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नहीं बनी किसी दल की सरकार

वर्ष 2005 में बिहार की राजनीति में नया मोड़ आया. फरवरी, 2005 में बिहार विधानसभा का चुनाव तय समय पर हुआ. लेकिन, किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया. वैसे चुनाव के दौरान राजद और एनडीए दोनों को ही उम्मीद थी कि उनकी सरकार बनेगी. लेकिन, राजद 75 सीटों पर सिमट गया, वहीं जद […]

वर्ष 2005 में बिहार की राजनीति में नया मोड़ आया. फरवरी, 2005 में बिहार विधानसभा का चुनाव तय समय पर हुआ. लेकिन, किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया. वैसे चुनाव के दौरान राजद और एनडीए दोनों को ही उम्मीद थी कि उनकी सरकार बनेगी.

लेकिन, राजद 75 सीटों पर सिमट गया, वहीं जद यू को 55 और भाजपा को 37 सीटें मिलीं. कांग्रेस ने दस और लोजपा ने 29 सीटें हासिल की. तब लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा था कि सत्ता की चाबी तो उनके पास है. श्री पासवान ने मुसलिम मुख्यमंत्री का प्रस्ताव रखा.

उनके कई विधायक टूट कर जद यू में शामिल हो गये. इसके बावजूद एनडीए की सरकार गठित नहीं हो पायी. अंतत: सत्ता का समीकरण पूरी तरह उलझ गया. ऐसे में दोबारा चुनाव के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. बिहार में विधानसभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया. तब बूटा सिंह बिहार के राज्यपाल थे.

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