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नया समीकरण, नयी चुनौतियां
गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट पर इसलिए सबकी निगाह होगी, क्योंकि विधानसभाध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की यह सीट है. वह यहां से लगातार चार चुनावों में जीत दर्ज कराते रहे हैं. इसके पहले उन्होंने इस सीट से 1990 में जीत हासिल की थी. दिलचस्प है कि बीते चार चुनावों में उनका मुकाबला राजद के […]
गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट पर इसलिए सबकी निगाह होगी, क्योंकि विधानसभाध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की यह सीट है. वह यहां से लगातार चार चुनावों में जीत दर्ज कराते रहे हैं.
इसके पहले उन्होंने इस सीट से 1990 में जीत हासिल की थी. दिलचस्प है कि बीते चार चुनावों में उनका मुकाबला राजद के साथ होता रहा. यह आमने-सामने की टक्कर का संकेत है. अतीत की तरह इस चुनाव में भी लड़ाई इसी पैटर्न पर मानी जा रही है. लेकिन सामने कौन होगा, यह बड़ा सवाल इसलिए बना हुआ है कि राजद का जदयू के साथ गंठबंधन है.
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के नेतृत्ववाले हम की मौजूदगी से चुनाव का परिदृश्य दिलचस्प हो सकता है. लेकिन एनडीए की ओर से इसके बारे में अब तक पत्ते नहीं खोले गये हैं.चौधरी के निकट रहे जिला पार्षद अनुज सिंह जदयू छोड़ भाजपा में शामिल हो गये हैं. चुनिंदा सीटों की कड़ी में आज पढ़िए इमामगंज विधानसभा क्षेत्र का हाल-हवाल.
इमामगंज विधानसभा क्षेत्र पर वर्ष 2000 से अब तक लगातार जदयू का कब्जा है. पार्टी उम्मीदवार उदय नारायण चौधरी तब से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वैसे, 1990 में भी वह यहां से चुनाव जीते थे.
पिछली बार का जो राजनीतिक समीकरण था, इस बार बदल गया है. इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में मतों की बहुलता की दृष्टि से महादलित वोट सबसे अधिक है. इसके बाद अतिपिछड़ा व पिछड़ी जातियों के वोट हैं. अगड़ी जातियों का वोट यहां काफी कम है. 1980 के दशक से इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में एमसीसी (अब भाकपा-माओवादी संगठन) के प्रभाववाला क्षेत्र रहा है.
इसके बावजूद इस इलाके से लोगों का पलायन नहीं हुआ है, जैसा जिले के कई दूसरे क्षेत्रों में देखा गया है. वैसे, उग्रवाद के असर का लाभ चुनावी मैदान में उतरे प्रत्याशी भी उठाते रहे हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में अगड़ी-पिछड़ी जातियां अपनी आबादी के अनुसार भूमिकय तय करती हैं. इलाके में मुसलमानों का वोट अच्छी संख्या में है. मतदान में मुसलमानों का रोल बहुत अहम होता है.
लगातार चार बार दूसरे स्थान पर रहा है राजद
2000 से 2010 तक हुए चारों विधानसभा चुनावों में राजद प्रत्याशियों ने यहां के मौजूदा विधायक चौधरी को जबरदस्त टक्कर दी है. 2000, फरवरी 2005 व अक्तूबर 2005 के चुनाव में पूर्व विधायक रामस्वरूप पासवान दूसरे स्थान पर रहे. 2010 के चुनाव में रामस्वरूप पासवान की जगह पार्टी ने जिला पर्षद के पूर्व उपाध्यक्ष रोशन मांझी को मैदान में उतारा था.
लेकिन, रोशन मांझी भी उदय नारायण चौधरी को नहीं हरा सके. इन चुनावों में राजद को कांग्रेस का भी समर्थन था. लेकिन, इस बार महागंठबंधन होने से राजद व कांग्रेस के साथ-साथ जदयू भी है. तय माना जा रहा है कि इस बार भी महागंठबंधन का उम्मीदवार जदयू के उदय नारायण चौधरी ही होंगे.
मांझी फैक्टर को नजरअंदाज करना मुश्किल
पिछले चार विधानसभा चुनावों में जदयू व राजद प्रत्याशियों को मिले वोटों को अगर जोड़ दिया जाये, तो कोई भी कह सकता है कि इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से जदयू महागंठबंधन के प्रत्याशी का राजतिलक नामांकन के साथ ही हो जायेगा. लेकिन, यह हिसाब टिक पायेगा, यह कहना मुश्किल. खास कर तब, जब पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी इमामगंज में रुचि लेने लगें. दरअसल, मौजूदा समीकरणों पर पूर्व मुख्यमंत्री मांझी के असर को महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
मगध क्षेत्र में टिकट बंटवारे के दौरान एनडीए में हम के नेता पूर्व सीएम मांझी का हस्तक्षेप सबसे अधिक हो सकता है. मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने से लेकर हटने तक का सबसे अधिक टकराव विधानसभाध्यक्ष उदय नारायण चौधरी से ही था. चौधरी के विरुद्ध पूर्व सीएम मांझी कई बार अपनी बातें जगजाहिर कर चुके हैं.
इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में उनके अब तक हो चुके कई दौरों के खास मायने निकाले जा रहे हैं. हालांकि चुनाव लड़ने से वह मना कर चुके हैं, पर उनके समर्थकों का दावा है कि मांझी इमामगंज से भाग्य आजमा सकते हैं.
समीकरण का दिया जा रहा हवाला
1980 से जीतनराम मांझी कई विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ चुके हैं. अपने लंबे राजनीति करियर मांझी का दांगी व कुशवाहा जैसी जातियों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं. इन जातियों के साथ उदय नारायण चौधरी के भी अच्छे रिश्ते रहे हैं और उनकी चुनावी कामयाबी के पीछे यह बड़ा कारण भी रहा है.
अगर इस बार पूर्व सीएम मांझी इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे, तो कोयरी मतदाताओं से बेहतर संबंध होने का लाभ उन्हें मिल सकता है. स्थानीय राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि अगर मांझी इमामगंज के चुनाव मैदान में आये, तो चौधरी को अपनी जीत के लिए नये सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी.
विस अध्यक्ष के सामने हनुमान भी
एक सामान्य व्यक्ति से ठेकेदार और ठेकेदार से जिला पर्षद तथा आगे चल कर विधान परिषद तक का सफर तय करनेवाले अनुज कुमार सिंह के बारे में लोग कहते हैं कि वह उदय नारायण चौधरी के हनुमान हैं. सिंह के राजनीतिक गुरु के रूप में जाने जाने वाले चौधरी को इस बार विधानसभा चुनाव में चेले से भी परेशान होना पड़ सकता है.
जीतनराम मांझी को सीएम पद मिलने के बाद सिंह उनके काफी नजदीक हो गये और सीएम मांझी के सहयोग से अपने गांव बोधिबिगहा (डुमरिया) में थाना, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र, पुस्तकालय सहित अन्य योजनाओं को उन्होंने पास करा लिया. बताते हैं कि सिंह की मांझी से ये नजदीकी चौधरी को अच्छी नहीं लगी. मांझी के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद बोधिबिगहा गांव में थाना व अस्पताल खुलने का मामला लटक गया.
नाराज अनुज सिंह जदयू से किनारा कर भाजपा में शामिल हो गये. भाजपा प्रत्याशी के रूप में उन्होंने विधान परिषद का चुनाव भी लड़ा. लेकिन, चौधरी ने उनकी पुरानी प्रतिद्वद्वी मनोरमा देवी को समर्थन दिया. वह चुनाव जीत भी गयीं. इस हार का बदला लेने के लिए अनुज सिंह इस बार विधानसभा चुनाव में उदय नारायण चौधरी के खिलाफ कमर कस कर तैयार रहेंगे.
(इनपुट : गया से कंचन)
2,66,043 मतदाता
इस बार के विधानसभा चुनाव में सरायरंज सीट पर 2,66,043 वोटर अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करेंगे. इनमें 1,40,079 पुरु ष हैं और करीब 1,25,955 लाख महिला वोटर हैं.
बना स्टेट हाइ-वे
डुमरिया से रानीतालाब होते हुए पटना तक जानेवाले स्टेट हाइवे, 69 का निर्माण होने से लोगों को काफी राहत मिली है. इससे पटना जाना आसान हुआ है. इमामगंज इलाके में कई जगह पुल बनने से नदी-नालों के दो किनारे बसे ढेर सारे गांव एक-दूसरे से जुड़ गये हैं. सैफगंज,दुबहल, कुंडलपुर, कालीदह व कोठी आदि गांवों में ऐसे पुल बने हैं, जिनसे हजारों की आबादी इस वक्त राहत महसूस कर रही है.
कई पुल फिलहाल बन भी रहे हैं. रोशनगंज में स्टेडियम का निर्माण हुआ है. इससे लोक जीवन में खेल की जगह बन पायी है. इस बीच इमामगंज पुलिस अनुमंडल भी बन चुका है. अब डीएसपी स्तर का एक पुलिस अधिकारी वहीं बैठने लगा है. इससे इलाके की अहमियत काफी बढ़ गयी है.
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