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गया से दिल्ली तक कोई नहीं सुनता
नौवीं पंचवर्र्षीय योजना में स्वीकृत गया की तिलैया-ढांढ़र सिंचाई परियोजना अब तक अधूरी है. इस महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोना पर तब 20 करोड़ रुपये खर्च होने थे, मगर अब तक तीन सौ करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुका है. यह परियोजना पूरी हो गयी होती, तो गया, नालंदा और नवादा जिलों की करीब 60 लाख […]
नौवीं पंचवर्र्षीय योजना में स्वीकृत गया की तिलैया-ढांढ़र सिंचाई परियोजना अब तक अधूरी है. इस महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोना पर तब 20 करोड़ रुपये खर्च होने थे, मगर अब तक तीन सौ करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुका है.
यह परियोजना पूरी हो गयी होती, तो गया, नालंदा और नवादा जिलों की करीब 60 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो पाती और लगभग 10 लाख की आबादी लाभान्वित होती, पर आज कोई इस पर बात करने तक को तैयार नहीं है. तिलैया-ढांढ़र परियोजना को लेकर करीब 15 वर्षो से आंदोलन कर रहे महेंद्र सिंह कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट का काम पूरा हो, इसके लिए गया, पटना और दिल्ली तक का चक्कर बार-बार काटे. पूर्व केंद्रीय सिंचाई मंत्री हरीश रावत से बार-बार बात-मुलाकात हुई, पर अब तक स्थिति ज्यों की त्यों है.
इस परियोजना का बीजारोपण 1960 के दशक में हुआ था. तब यहां की सांसद सत्यभामा देवी थीं. उन्होंने इलाके की सिंचाई की समस्या उठायी थी. बाद में मामला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक पहुंचा. उन्होंने तब के कृषि मंत्री केएल राव को इलाके का दौरा कर योजना बनाने को कहा. राव का दौरा हुआ.
तय हुआ कि एक नहर बने और तिलैया डैम से सुरंग के जरिये पानी लाकर फतेहपुर के पास ढांढ़र नदी में गिराया जाए तथा गौहरा व दोनैया के बीच बराज बना कर नहर के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाए. इससे लाखों किसानों का भला होगा. परियोजना के लिए फतेहपुर, वजीरगंज और अतरी आदि इलाकों में करीब 1700 एकड़ जमीन का अधिग्रहण हुआ. लगभग 30 किलोमीटर लंबी नहर खोदी गयी. दोनैया तथा गौहरा के बीच बराज बना.
गेट लगे, मगर आगे काम नहीं हुआ. महेंद्र सिंह कहते हैं कि अब तक करीब दो अरब रुपये खर्च हो चुके हैं. केवल वजीरगंज एक्जीक्यूटिव इंजीनियर कार्यालय ने वर्ष 2011 में दिसंबर तक लगभग 79 करोड़ रुपये खर्च कर दिये थे. खर्च का सिलसिला जारी है, जबकि खेतों तक एक बूंद पानी आज तक नहीं पहुंचा.
जमीन गयी, आंदोलन हुए, पर बहुतों को पैसे भी नहीं मिले
अदोलनकारी महेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि इलाके की तसवीर बदलने के लिए तैयार की गयी इस परियोजना पर हुए कामकाज और उसकी गति ने पूरे इलाके की तसवीर खराब कर दी. लोगबाग मुश्किल में हैं.
जमीन तो चली ही गयी, कई लोगों को पैसे भी नहीं मिले. कई लोग बेघर भी हुए. सरकारें हैं कि सुनतीं नहीं. परियोजनास्थल से लेकर गया-पटना होते हुए दिल्ली तक आवाज पहुंचायी गयी. मंत्री और मंत्रलयों के चक्कर लगाये गये. केवल बात होती है. सभी कहते हैं, ‘देखते हैं’. बस, इससे आगे कोई नहीं देखता. अब तक कहीं कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी है.
तिलैया ढांढ़र सिंचाई परियोजना : सिर्फ आश्वासन
आंदोलनकारियों का आरोप है कि इस मामले में उन्हें राज्य सरकार का भी सहयोग नहीं मिला. मंत्री और अफसर केवल बात बनाते हैं. 27 दिसंबर, 2014 को राज्य के सिंचाई मंत्री विजय चौधरी से मुलाकात करने पर उन्हें केंद्रीय ट्रिब्यूनल के गठन के लिए केंद्र सरकार को लिखने की बात कही गयी.
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी इस आंदोलन से जुड़े बताये जाते हैं. इस मामले में एक बड़ा अड़चन झारखंड सरकार का रुख है. जब परियोजना का ब्लू प्रिंट बना था, तब बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था. तिलैया के भरोसे परियोजना बनी और उस पर अरबों रुपये खर्च हो गये.अब झारखंड सरकार कहती है कि तिलैया से वह पानी नहीं देगी.
इस पर बिहार सरकार कोई दबाव नहीं बनाती. केंद्र भी कुछ नहीं कर रहा. इससे एक तरफ जहां अरबों रुपये दावं पर लग गये हैं, वहीं लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का संकट बरकरार है. आंदोलनकारी सिंह कहते हैं कि समझना मुश्किल कि सरकारें आखिर चाहती क्या हैं?
(इनपुट : गया से रौशन कुमार).
दर-दर गये, सब से कहा
इस परियोजना को लेकर दर-दर गये. मुख्यमंत्री रबड़ी देवी, नीतीश कुमार व जीतनराम मांझी से भी इस मुद्दे पर बात की. लिखित दिया. विधानसभा में प्रश्न उठाया. हर बार आश्वासन मिला, पर काम नहीं हो सका.
श्यामदेव पासवान, विधायक
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