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उम्मीद पूरा नहीं होना बड़ी वजह
डीएम दिवाकर निदेशक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट विधायकों के दोबारा नहीं जीत पाने की वजह कई हो सकते हैं. फिर भी, उम्मीदों का पूरा नहीं होना, समाजिक समीकरण में बदलाव और स्थानीय नये नेतृत्व के उभार इसके कारण हो सकते हैं. आमतौर पर लोगों की अपने जनप्रतिनिधियों से बड़ी उम्मीद होती है. उन उम्मीदों के पूरा […]
डीएम दिवाकर
निदेशक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट
विधायकों के दोबारा नहीं जीत पाने की वजह कई हो सकते हैं. फिर भी, उम्मीदों का पूरा नहीं होना, समाजिक समीकरण में बदलाव और स्थानीय नये नेतृत्व के उभार इसके कारण हो सकते हैं. आमतौर पर लोगों की अपने जनप्रतिनिधियों से बड़ी उम्मीद होती है. उन उम्मीदों के पूरा नहीं होने के चलते लोग दूसरे विकल्प को आजमाते हैं. राजनीति में विकल्प एक निरंतर प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया से नये विकल्प का उदय होता है और लोग उसे भी एकबार आजमाते हैं.
तीसरी बात, स्थानीय स्तर पर प्रभावी लोगों के हितों को पूरा नहीं करना भी हो सकती है. प्रभावी लोग उम्मीदवारों को हराने के लिए काम करते हैं. यह धनबल और दूसरे तरह के मदद के जरिय होता है. कई बार ऐसे प्रभावी छद्म उम्मीदवार भी उतार देते हैं. एक और कारण यह भी है कि राजनीति में आने की आकांक्षा बढ़ी है. पांच सालों के भीतर कई पार्टियां आ जाती हैं. वे अपना उम्मीदवार देती हैं और ऐसे में वोटों का बिखराव हो जाता है.
वोटों के बिखराव का असर अलग-अलग रूपों में पड़ता है. विधायकों की हार-जीत के पीछे दूसरे उम्मीदवारों के सामाजिक समीकरण की भी भूमिका होती है. इस हार-जीत के पीछे राजनीतिक चेतना अथवा समझ की कमी का भी एक हद तक हाथ माना जा सकता है.
होता क्या है कि लोग विपक्ष को मजबूत करने के बारे में विचार नहीं करते जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष का होना उतना ही जरूरी है. मसलन, लोकसभा के चुनाव में लोगों ने विपक्ष को ताकत नहीं दी. आम धारणा रहती है कि जिताऊ उम्मीदवार को ही वोट दो, वरना उसका वोट निर्थक हो जायेगा.
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