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2000 में लोकतंत्र से गरीबों को अलग करने की हवा बही

कैलाश बैठा पूर्व विधायक, बगहा बगहा विधानसभा (सुरक्षित) क्षेत्र से विधायक रह चुके 75 वर्षीय कैलाश बैठा का कहना है कि 25 वर्ष पहले विधानसभा का चुनाव ऐसा नहीं था, जैसा आज होता है. पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं, आम जनता भी अपने चहेते उम्मीदवार को चुनाव लड़ाती थी.कोई कार्यकर्ता या समर्थक यह प्रतीक्षा नहीं […]

कैलाश बैठा
पूर्व विधायक, बगहा
बगहा विधानसभा (सुरक्षित) क्षेत्र से विधायक रह चुके 75 वर्षीय कैलाश बैठा का कहना है कि 25 वर्ष पहले विधानसभा का चुनाव ऐसा नहीं था, जैसा आज होता है. पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं, आम जनता भी अपने चहेते उम्मीदवार को चुनाव लड़ाती थी.कोई कार्यकर्ता या समर्थक यह प्रतीक्षा नहीं करता था कि उसे उम्मीदवार की ओर से सवारी मुहैया करायी जायेगी. साइकिल या पैदल लोग गांव-देहात में चुनाव का प्रचार करने के लिए निकल जाते थे.
लेकिन अभी हालात बदल गये हैं. समर्थक की बात कौन करे, पार्टी के कार्यकर्ता भी इस इंतजार में उम्मीदवार के कैंप में बैठे रहते हैं कि उन्हें लग्जरी गाड़ी मिलेगी. उसमें तेल डालने के लिए कूपन और नाश्ता – पानी के लिए नगद मिलेगा. एक तरह से लोकतंत्र पर अर्थतंत्र हावी हो गया है.
इस अर्थयुग में कोई भी गरीब चुनाव नहीं लड़ सकता, क्योंकि चुनाव जीतना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. हमारे जमाने में राजनीतिक दलों में टिकट देने के लिए ग्रास रूट पर काम करने वाले कार्यकर्ता की तलाश होती थी. आम लोगों के बीच काम करने वाले कार्यकर्ता को तरजीह दी जाती थी. लेकिन, अभी हालात बदल गये हैं. सबसे पहले टिकट के दावेदार की जातीय आधार पर छंटनी होती है. फिर उसकी हैसियत को देख कर टिकट का वितरण किया जाता है.
श्री बैठा ने 1990 में भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. वह बताते हैं, उस वक्त मेरे पास पैसे नहीं थे. आम जनता की ओर से चंदा देकर मुङो चुनाव लड़ाया गया था. 1995 में समता पार्टी से चुनाव लड़ा. तब भी चंदा मिला था. वर्ष 2000 में लोकतंत्र से गरीबों को अलग करने की हवा बही. मैं गरीब था, तो पिछड़ गया. लेकिन, जनता का अपार स्नेह मेरे साथ था. निर्दलीय खड़ा हुआ, लेकिन धन -बल की लड़ाई में मैं हार गया. 2004 में बगहा से सांसद चुना गया. प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक-एक जीप की व्यवस्था कर पाया था और चुनाव जीत गया था.
फिर 2010 में बगहा से विधानसभा के उप चुनाव में विधायक बने. उस वक्त महसूस हुआ कि चुनाव गरीब के बूते की बात नहीं है. अब तो लोग फेसबुक और ट्यूटर के माध्यम से वोट मांग रहे हैं. चुनाव में करोड़ों रुपये पानी की तरह बह रहे हैं.

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