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कई बड़े बदलावों का वाहक बन रही है मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी

मैग्नेट यानी चुंबक के बारे में आम ज्ञान यही कहता है कि यह एक ऐसा पदार्थ है, जो लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है. लेकिन मैग्नेट की खासियतों को समझते हुए वैज्ञानिक इसके इस्तेमाल से कई ऐसी चीजें विकसित कर रहे हैं, जिनका उपयोग कई उभरती हुई तकनीकों में किया जा रहा है. खासकर […]

मैग्नेट यानी चुंबक के बारे में आम ज्ञान यही कहता है कि यह एक ऐसा पदार्थ है, जो लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है. लेकिन मैग्नेट की खासियतों को समझते हुए वैज्ञानिक इसके इस्तेमाल से कई ऐसी चीजें विकसित कर रहे हैं, जिनका उपयोग कई उभरती हुई तकनीकों में किया जा रहा है.
खासकर ट्रांसपोर्ट और मेडिसिन सेक्टर में मैग्नेट टेक्नोलॉजी व्यापक बदलाव लाने में सक्षम है. तकनीकी बदलाव में मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी की भूमिका पर नजर डाल रहा है नॉलेज..
आम तौर पर हाइ-स्पीड ट्रेन की स्पीड 250 से 300 किमी प्रति घंटा तक होती है. चूंकि इतनी स्पीड से ट्रेन चलने पर व्यापक मात्र में फ्रिक्शन और हीट यानी घर्षण व गरमी पैदा होती है, जिहाजा पटरी पटरी से काफी शोर पैदा होता है और इससे मशीनी रूप से काफी ह्रास होने के साथ ऊर्जा का भी नुकसान होता है.
ठीक इसके विपरीत, मैगलेव ट्रेनें पटरी से कुछ इंच ऊपर उठते हुए 480 किमी प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से दौड़ने में सफल हैं. चूंकि इस तकनीक के इस्तेमाल से चलायी जानेवाली ट्रेनों के संचालन में घर्षण नहीं के बराबर होता है, इसलिए यह ऊर्जा की खपत में कमी लाने के साथ पूरे संचालन लागत को कम कर सकती है.
सुपरकंडक्टिंग मैगलेव ट्रेन्स के सह-आविष्कारक और ‘मैगलेव 2000’ कंपनी के निदेशक जेम्स पॉवेल के हवाले से ‘पोपुलर मैकेनिक्स डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तकनीक से ट्रेनों का संचालन हाइ-स्पीड की अन्य तकनीकों के मुकाबले सस्ता है.
हाइ-स्पीड रेल से यात्री को एक मील की यात्रा के लिए जहां एक डॉलर का भुगतान करना पड़ता है, वहीं मैगलेव से चलने वाली ट्रेनों में यात्राी को महज कुछ सेंट्स में भुगतान करना पड़ता है.
एशिया और यूरोप के कई देशों में इस तकनीक से रेलों का संचालन हो रहा है और कई नयी परियोजनाएं शुरू हो सकती हैं. जापान ने भले ही 2003 में मैगलेव रेलों के मामले में 361 मील प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ा कर रिकॉर्ड बनाया, लेकिन आज चीन उससे काफी आगे निकल चुका है और इससे काफी ज्यादा स्पीड से मैगलेव रेल चला रहा है. माना जा रहा है कि इस रेल को यदि वायुरहित ट्यूब्स के भीतर संचालित किया जाये, तो इसकी स्पीड आश्चर्यजनक तौर पर हवाई जहाज से भी ज्यादा यानी हजार मील प्रति घंटे तक जा सकती है.
मैगलेव यानी मैग्नेटिक लेविटेशन वाली ट्रेन खास सिंगल चुंबकीय ट्रैक पर पटरी से कुछ इंच ऊपर हवा में उठ कर कुछ उड़ते हुए सी भागती है. तूफानी रफ्तार के लिए इस ट्रेन को न तो पहिये की जरूरत होती है, न एक्सल और बियरिंग की. मैगलेव ट्रांसपोर्ट सिस्टम दो प्रकार की होती है- इलैक्ट्रो मैग्नेटिक सस्पेंशन यानी इएमएस और इलैक्ट्रो डाइनेमिक सस्पेंशन यानी इडीएस.
इएमएस प्रणाली में रेलगाड़ी पटरी से ऊपर हवा में रहती है और उसके नीचे लगे विद्युत चुंबक यानी इलैक्ट्रो मैगनेट नीचे पटरी की ओर रहते हैं. इस प्रणाली में फीडबैक लूप का उपयोग करके विद्युत-चुंबकों से बने चुंबकीय क्षेत्र को घटाया या बढ़ाया जा सकता है.
इसलिए इसमें स्थायी रूप से काफी चुंबक लगे रहते हैं. इस प्रणाली की ट्रेन 500 किमी प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ सकती हैं. इडीएस प्रणाली में रेल की पटरी और ट्रेन दोनों ही सुपर कंडक्टिंग चुंबकों से चुंबकीय क्षेत्र बनाते हैं. इन दोनों चुंबकीय क्षेत्रों के रिपल्सिव यानी प्रतिकर्षी बल के कारण ट्रेन हवा में उठ जाती है. चुंबकीय बल से ही ट्रेन भी चलती है.
उभरती तकनीकों को शुरुआत में अक्सर दुर्लभ समझा जाता है, लेकिन गूगल एक्स का आर्सेनल कुछ इस तरह के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, जिसे अपवाद समझा जा सकता है.
इनमें से एक है चुंबक के इस्तेमाल से छोटे-छोटे पिल्स को विकसित करना, जो इंसान के शरीर में घातक रोगों के बारे में पता लगाने में सक्षम होंगे. इसके लिए मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल्स का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें मैग्नेटिक मैटेरियल तो होंगे, लेकिन उनसे शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा. फिलहाल इसे मरीज के ब्लडस्ट्रीम के साथ एटैच किया जायेगा, लेकिन गूगल इसे मुंह से निगले जाने योग्य पिल्स की भांति बनाना चाहता है. नैनोपार्टिकल्स से भरा यह पिल इंसान के शरीर के ब्लडस्ट्रीम में खुद कैंसर कोशिकाओं की खोज करेगा.
यह पिल शरीर के भीतर से आंकड़ों को कलाई में पहनने योग्य सेंसर को भेजेगा, जहां मैग्नेटाइज्ड और कैंसर डिटेक्टिंग नैनोपार्टिकल्स उसे एकत्रित करेंगे. इस प्रक्रिया के माध्यम से डॉक्टर को यह समझने में मदद मिलेगी कि मरीज में कैंसर के प्रारंभिक लक्षण दिख रहे हैं या नहीं.
इसके अलावा, मैग्नेट को कैंसर से लड़ने में सक्षम पाये जाने का दावा भी किया गया है. हाल ही में दक्षिण कोरिया के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि मैग्नेटिक फिल्ड के इस्तेमाल से वे कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सफल रहे हैं. कीमोथेरेपी के लिए भी इसे इस्तेमाल में लाया जा सकता है.
हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे परीक्षण को अंजाम दिया है, जिसमें हीट और साउंड (ताप और ध्वनि) को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने मैग्नेटिक फिल्ड का इस्तेमाल किया है. ‘गिजमोडो डॉट इन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस वर्ष के शुरुआत में यह घोषणा की थी कि उन्होंने मैग्नेटिक फिल्ड के इस्तेमाल से ताप को नियंत्रित किया, लेकिन इससे ध्वनि भी प्रभावित हुई.
दरअसल, वैज्ञानिक फोनोंस के चुंबकीय गुणों की जांच कर रहे थे. फोनोंस एक पार्टिकल्स है, जो ताप और ध्वनि दोनों को ही ट्रांसमिट करता है. एमआरआइ आकार के मैग्नेटिक फिल्ड का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने फोनोंस के व्यवहार को नियंत्रित किया और सेमीकंडक्टर के माध्यम से ताप को 12 फीसदी तक कम करने में कामयाबी हासिल की. उनके इस परीक्षण को एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा गया है, जो यह दर्शाता है कि मैग्नेटिक फिल्ड मैटेरियल्स में ताप को नियंत्रित कर सकता है.
हालांकि, वैज्ञानिकों को यह भी कहना है कि इस प्रयोग को धरातल पर उतारना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इसमें 7-टेसला मैग्नेट का इस्तेमाल किया गया था, जिसे बनाना अपनेआप में मुश्किल काम है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यदि इस प्रयोग को लगातार आगे बढ़ाते रहे, तो इसे हकीकत में बदला जा सकता है.
भूकंप आने पर मजबूत घरों को भी नुकसान पहुंचता है और ज्यादा तीव्र भूकंप आने पर तो मजबूत घर भी ढह जाते हैं. ऐसे में ज्यादा भूकंप आनेवाले इलाकों में ऐसे मकान बनाये जायेंगे, जो भूकंप आने पर ऊपर उठ जायेंगे और बाद में फिर से अपनी जगह पर स्थापित हो जायेंगे.
हाल ही में शोधकर्ताओं ने ऐसी योजना के बारे में खुलासा किया है, जिसमें घर के नीचे ऐसा प्लेटफार्म बनाया जायेगा, जिसमें कई चुंबक जुड़े होंगे. इनसे भूकंप आने पर घर अपने आप ऊपर उठ जायेगा. ‘आर्ट पैक्स’ कंपनी इस योजना पर काफी लंबे समय से काम कर रही है. अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण से मिल रहे फंड की सहायता से एक संगठन ‘शेकअलर्ट’ तकनीक विकसित कर रहा है.
इसके जरिये भूकंप का तुरंत पता लग सकेगा और सुरक्षा अलर्ट भेजा जा सकेगा. आर्ट पैक्स कंपनी ने भूकंप के दौरान घरों को उठाने के लिए पहले पानी या गैस के इस्तेमाल की तकनीक विकसित की थी, लेकिन अब वह ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जिससे तरल पदार्थ के बजाय चुंबक का इस्तेमाल कर भूकंपरोधी घर बनाये जायेंगे. तीन मंजिला घर को औसत 90 सेकेंड के भूकंप के दौरान ऊपर उठाने के लिए इसमें पांच कार की बैट्री की ऊर्जा का इस्तेमाल किया जायेगा.
इस तकनीक में भूकंपरोधी आधार बनाया जायेगा और जमीन के अंदर होवर इंजन लगाये जायेंगे, जिससे घर को ऊपर उठाया जा सके. भूकंप की चेतावनी मिलने की दशा में कंप्यूटर से होवर इंजन को चालू किया जायेगा और यह सब काम तेजी से निबटाया जायेगा, ताकि मकान को भूकंप के संभावित नुकसान से बचाया जा सके.
चालक रहित वाहन आजकल तकनीकी कंपनियों के बीच चर्चा का विषय है और कई ऑटो कंपनियां समेत अनेक स्टार्ट-अप इस होड़ में शामिल होना चाहते हैं. इसे ज्यादा से ज्यादा कारगर बनाने पर काम हो रहा है, लेकिन इसे पूरी तरह से दुर्घटना-मुक्त बनाना आसान नहीं है.
इससे कई सवाल जुड़े हैं. क्या हमारी सड़कें इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं. इसलिए विशेषज्ञ इन वाहनों के लिए खास सड़कों के निर्माण पर जोर दे रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा कारगर तरीका सड़क निर्माण में मैग्नेट का इस्तेमाल करना पाया गया है.
‘वोल्वो’ कंपनी ने पिछले साल एक रिसर्च प्रोजेक्ट को पूरा किया है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि सड़कों पर लगाये गये मैग्नेटिक सेंसर्स इस दिशा में कारगर साबित हो रहे हैं. कंपनी ने इसका इस्तेमाल करते हुए सेल्फ-ड्राइविंग कारों के लिए अलग ट्रैक भी बनाया है.
फिलहाल विशेषज्ञ इसका परीक्षण कर रहे हैं और यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बारिश और बर्फबारी जैसे विपरीत हालातों का इन सड़कों पर क्या असर पड़ सकता है. हालांकि, सेल्फ-ड्राइविंग वाहनों को बिना मैग्नेट चिपकाये गये सड़कों यानी सामान्य सड़कों पर भी चलाया जा सकता है, लेकिन मैग्नेट चिपकाये गये सड़क पर इन्हें चलाना ज्यादा आसान होगा.
इसके अलावा, वोल्वो की योजना स्लाइड होवरबोर्ड की तरह निर्दिष्ट ट्रैक्स तैयार करने की भी है, जो परिवहन के मामले में बेहद एडवांस साबित होंगे. माना जा रहा है कि इससे परिवहन क्षेत्र में एक नयी क्रांति आ सकती है.
वैसे इसकी राह में अभी अनेक बाधाएं हैं, जैसा कि किसी अन्य उभरती तकनीक के शुरुआती दौर में देखा जाता है. लेकिन विशेषज्ञों को उम्मीद है कि एक बार ये उभरती हुई तकनीकें प्रयोगशालाओं से बाहर निकल कर प्रोजेक्ट्स के तौर पर शुरू होंगी, तो अनेक कंपनियों की इसमें दिलचस्पी बढ़ेगी.
आने वाले समय में हम देख पायेंगे कि मैग्नेट में कितनी क्षमता है और मेडिसिन से लेकर ट्रांसपोर्ट समेत अन्य कई क्षेत्रों में यह कितनी सक्षम भूमिका निभा सकता है.
कहानी की किताबों में आपने कुछ ऐसी चीजों के बारे में पढ़ा होगा, जो सतह से कुछ ऊपर उठते हुए तेजी से उड़ने में सक्षम होते हैं. हो सकता है कि इस तरह की कहानी को पढ़ कर आपने यह कल्पना भी की हो कि काश उन्हें अपने पैरों में पहन कर उड़ने की इच्छा पूरी कर सकते.
भले ही उस समय आपकीयह इच्छा पूरी न हुई हो, लेकिन अब ऐसा हो सकता है. दरअसल, हाल ही में इसी से कुछ मिलती-जुलती एक तकनीक का इजाद किया गया है, जिसे होवरबोर्ड के नाम से जाना जाता है. अमेरिका में कैलिफोर्निया की एक तकनीकी फर्म ‘हेंडो’ ने इंसान के हवा में उड़ने जैसे सपने को हकीकत में बदल दिया है.
हालांकि, दुनियाभर में अब तक कई फिल्म निर्माताओं ने जमीन की सतह से सट कर तेजी से उड़ने के इस तरह के कई स्टंट सीन फिल्माये हैं, लेकिन अब तक इन्हें महज कोरी कल्पना ही बतायी जाती रही है. लेकिन होवरबोर्ड महज कोरी कल्पना नहीं है और आने वाले समय में आप भी ऐसा कर सकते हैं. इसके अलावा, ‘लेक्सस’ ने भी होवरबोर्ड स्लाइड का परीक्षण किया है, जो अपने मकसद में कामयाब रहा है. यह होवरबोर्ड जमीन से महज एक इंच की ऊंचाई पर फ्लोट करने में सक्षम है. इसके संचालन में मैगलेव टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है.
लेक्ससबोर्ड की बॉडी में सुपरकंडक्टर्स शामिल है, जिसमें लिक्विड हाइड्रोजन भरा हुआ है. इसके माध्यम से यह बोर्ड सतह पर ठीक उसी प्रकार लिफ्ट होगा, जिस प्रकार मैगलेव ट्रेन चलती है. हालांकि, इस बोर्ड को नेविगेट करना फिलहाल कठिन है, लेकिन विशेषज्ञों ने उम्मीद जतायी है कि भविष्य में यह परिवहन के साधन के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि होवरबोर्ड एक प्रकार का स्टेकबोर्ड है, जो मैजिक कारपेट (जादुइ कालीन) की भांति लेविटेट करता है यानी सतह से करीब एक इंच ऊपर उठ कर उड़ता है. इसमें तांबा और एल्युमिनियम जैसे सुचालक पदार्थो का इस्तेमाल किया गया है. ‘हेंडो’ कंपनी द्वारा बनाये गये इस होवरबोर्ड की बैटरी 15 मिनट तक काम करती है, जो किसी मुश्किल वक्त में किसी खास स्थान से दूर निकलने के लिए काफी है.
हेंडो के संस्थापक जिल और ग्रेग हैंडरसन की योजना ‘मैग्नेटिक होवरिंग’ तकनीक से भूकंपरोधी मकानों के निर्माण की भी है. बताया गया है कि इस तकनीक को विकसित करते हुए उसे इमारतों में इंस्टॉल किया जा सकता है, ताकि भूकंप आने पर उसका असर बेहद कम हो.
हालांकि, कंपनी की ओर से यह भी बताया गया है कि इस दिशा में यह तकनीक अभी आरंभिक चरण में है, लेकिन विभिन्न परीक्षण के दौरान हासिल हुई सफलताओं से यह उम्मीद बढ़ी है कि जल्द ही इसे आम लोगों के बीच लाया जा सकता है.

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