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केवल विकास के मुद्दों पर ही लड़ें चुनाव

निखिल कुमार कर्नाटक से सी कवि ने ठीक ही लिखा है, लोकतंत्र का रथ समता के पहियों पर चलता है. मंदिर कोई भी हो, सब में दीप वही जलता है. दुनिया का परिचय लोकतांत्रिक व्यवस्था से करानेवाली धरती पर एक बार फिर से जब विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं, तो ऐसे समय में […]

निखिल कुमार
कर्नाटक से
सी कवि ने ठीक ही लिखा है, लोकतंत्र का रथ समता के पहियों पर चलता है. मंदिर कोई भी हो, सब में दीप वही जलता है. दुनिया का परिचय लोकतांत्रिक व्यवस्था से करानेवाली धरती पर एक बार फिर से जब विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं, तो ऐसे समय में जनता की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण हो गयी है. आखिर किसकी सरकार बनेगी, यह तो जनता ही तय करेगी.
जब जनता ही लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है, तो जाहिर-सी बात है कि जनता के हितों की अनदेखी करनेवाले चुनाव में कहीं नहीं टिकेंगे और शासन चलाने का दायित्व उन्हीं को मिलेगा, जो जनता की सुविधाओं का ख्याल रखेंगे. बिहार इस समय बदलाव के दौर से गुजर रहा है, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बदलाव की इस रफ्तार पर जैसे अचानक से रोक लग गयी है. जिन सड़कों के लिए बिहार की देश भर में सराहना हो रही थी कि अब राज्य में सड़कें चकाचक दिखने लगी हैं, वहीं एक बार फिर से सड़कों के बुरे दिन लौट आये हैं. क्या जनता ने यही दिन देखने के लिए जन प्रतिनिधियों का चुनाव किया था.
बिहार के ज्यादातर इलाकों में इस समय सड़कों की स्थिति बदतर हो गयी है. राजधानी पटना में ही यदि गांधी मैदान, फुलवारीशरीफ, नौबतपुर रोड या फिर ज्यादातर इलाकों की अंदरुनी सड़कों की बात करें, तो उनकी हालत ऐसी हो गयी है कि इन पर वाहन चलाना मुश्किल हो गया है. यहां तक कि पदयात्रियों का भी इन पर चलना आसान नहीं रह गया है. ऐसे में यदि जन प्रतिनिधि जनता के पास दोबारा वोट मांगने आते हैं, तो जाहिर-सी बात है कि उन्हें जनता के गुस्से का सामना करना पड़ेगा. आखिर लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान की व्यवस्था इसलिए तो की गयी है कि जनता के लिए काम करनेवाले शासन में रहें और न करनेवाले शासन से बाहर निकल जाएं.
अब जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ने इतनी ज्यादा प्रगति की है और पिछले दस वर्षो में यहां हर जगह बदलाव-ही-बदलाव देखने को मिला है, तो चुनाव के नजदीक आते-आते इस बदलाव का विलुप्त हो जाना कहीं-न-कहीं पहले से चुने गये जन प्रतिनिधियों के खतरे की घंटी से कम नहीं है. जो लोग चुनाव लड़ने जा रहे हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता की सोच भी विकसित हुई है. जनता को अच्छी तरह से मालूम है कि उन्हें किन्हें वोट देना चाहिए.
जाति और धर्म आधारित राजनीति एवं आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से जनता कोई सरोकार नहीं रखती. जनता तो बस इतना जानती है कि राजनीति विकास के मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए.
इसलिए इस विधान सभा चुनाव के दौरान जो उम्मीदवार या जो राजनीतिक दल विकास के मुद्दों जैसे सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा आदि के आधार पर चुनाव लड़ेंगे, जनता भी वोट उन्हीं को देगी. बिहार ने ऐसे ही दुनिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चेहरा नहीं दिखाया है, यहां के लोगों के रग-रग में लोकतंत्र बसा हुआ है और यदि लोग अपने रंग में आ गये, तो बड़े-बड़े साम्राज्य को उलटते और इतिहास पलटते देर नहीं लगेगी.

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