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आज राजनीति उद्योग बन गयी है
सगीर अहमद पूर्व विधायक, रक्सौल रक्सौल विधानसभा क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके पुरानी पीढ़ी के नेताओं में से एक पूर्व मंत्री सगीर अहमद अभी सक्रिय राजनीति में नहीं है, लेकिन वे इस बात से इनकार भी नहीं करते हैं, अगर मौका मिले तो देश और समाज के लिए चुनाव में नहीं उतरेंगे. राजनीति […]
सगीर अहमद
पूर्व विधायक, रक्सौल
रक्सौल विधानसभा क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके पुरानी पीढ़ी के नेताओं में से एक पूर्व मंत्री सगीर अहमद अभी सक्रिय राजनीति में नहीं है, लेकिन वे इस बात से इनकार भी नहीं करते हैं, अगर मौका मिले तो देश और समाज के लिए चुनाव में नहीं उतरेंगे. राजनीति में उनकी रूचि पहले की तरह अब भी है.
वर्तमान राजनीतिक परिवेश को देखकर वह दुखी हैं. उन्होंने बताया कि आज के समय में राजनीति उद्योग बन कर रह गयी है. दलों की स्थिति अजीब सी हो गयी है.
पूर्व मंत्री श्री अहमद ने बताया कि सबसे पहली बार उन्होंने 1972 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और तब से 1990 तक रक्सौल विधानसभा से लगातार चार बार जीत दर्ज की. 1980 के समय मंत्री भी बने और पहली बार गठित हुये अल्पसंख्यक वित निगम के चेयरमैन भी बने.
उन्होंने बताया कि पहले के दौर में जात-पात, धर्म-मजहब जैसे शब्दों का कोई वजूद नहीं था. ऐसी सोच लोगों में नहीं थी. इंसानियत और शराफत पर चुनाव में लड़ाई होती है.
जनता अपने हितैषी को बिना किसी जात-पात की तुलना किये हुए जीत दिलाती थी. उन्होंने बताया कि 1977 के समय जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ हवा थी, उस परिस्थिति में भी अपने कार्यों के बल मैंने 1972 से अधिक मतों से चुनाव में जीत दर्ज की.
आज के समय में राजनीति दिशाहीन हो गयी है. 1990 के बाद राजनीति का दूसरा दौर शुरू हुआ और जाति-पांति, धर्म-मजहब, मंडल-कमंडल की राजनीति के कारण इंसानियत पटरी से उतरती चली गयी.
जाति व धर्म की हवा के कारण आज विकास का मुद्दा समाप्त हो गया है. लोग विकास का नहीं, जाति और धर्म का नारा लगाते है और चुनाव में जीत हासिल करते हैं.
जीत के बाद राजनीति को व्यवसाय की तरह चलाते हैं. उन्होंने कहा कि 1972 के समय केवल जनता की सेवा करना मुद्दा होता था. कम संसाधनों के साथ जनता के बीच हमलोग जाते थे. जनता हमलोगों को अपना हितैषी मान कर हमारा समर्थन करती थी. स्वागत करती थी.
प्रचार के दौरान जनता ही हमलोगों का ख्याल रखती थी. जब चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे तब इसकी चिंता नहीं रहती थी कि क्या खाएंगे, कहां रुकेंगे. जहां रुके वहीं के लोगों ने सभी के लिए खाने और सोने की व्यवस्था कर दी. इसलिए पहले के प्रत्याशी और जीतने के बाद विधायक भी आम जनता से जुड़े होते थे.
आज प्रचार के लिए प्रत्याशी गाड़ियों में बैठकर निकलते हैं. जनता प्रत्याशी काम और उसकी गाड़ी को ज्यादा देखती है. प्रत्याशी की पहचान उसकी गाड़ी से हो जाती है. दोनों के बीच दूरी बहुत बढ़ गयी है. आम आदमी के लिए विधायक से मिलना अब टेढ़ी खीर हो गयी है.
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