ब्रिटिश काल में भारत में सबसे पहले प्रान्तीय चुनाव फरवरी, 1937 में कराये गये थे. 1935 में ब्रिटिश संसद से पारित भारत सरकार अधिनियम के द्वारा भारतीयों को प्रांतीय शासन के प्रबंध का अधिकार मिला था.
इसी आधार पर पहली बार भारत में चुनाव कराये गये. कांग्रेस को संयुक्त प्रांत, मद्रास, मध्य प्रदेश, बरार, उड़ीसा तथा बिहार में पूर्ण बहुतमत प्राप्त हुआ, जबकि केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा में वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. कांग्रेस को अंगरेजों की ओर से यह भरोसा मिला हुआ था कि जो सरकार वह गठित करेगी, उसमें गवर्नर जनरल बिना वजह हस्तक्षेप नहीं करेंगें. इसके बाद कांग्रेस ने आठ प्रांतों में अपनी सरकार बनायी.
सिंध, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत तथा असम में मिला-जुला मंत्रिमंडल गठित हुआ. पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी ने और बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग ने मिलकर सरकार बनायी.
1937 में प्रांतीय विधानसभा चुनावों के साथ ही विधान परिषदों के लिए भी चुनाव संपन्न कराये गये. पांच प्रांतों, बम्बई, मद्रास, बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के विधान परिषदों के लिए संपन्न चुनाव में कांग्रेस को आंशिक सफलता प्राप्त हुई.
तब बिहार में विधान परिषद की 26 सीटें थीं, जिनमें से आठ पर कांग्रेस को सफलता मिली थी. सबसे ज्यादा मद्रास की 46 सीटों में से 26 कांग्रेस के पक्ष में गयी थीं. चुनाव के दो साल बाद ही 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया. भारतीय विधान मंडल की सहमति के बिना ब्रिटिश सरकार ने भारत को युद्ध में झोंक दिया.
देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी. कांग्रेस ने मांग रखी कि युद्ध के बाद भारत को स्वतंत्र कर दिया जाये. सरकार ने इस मांग की उपेक्षा की. लिहाजा कांग्रेस कार्यकारिणी के निर्देश पर 15 नवम्बर, 1939 को प्रांतीय कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने इस्तीफा दे दिया.