24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भारत बनाम पाकिस्तान : बातचीत, समझौते और खींचतान, मोदी सरकार और पाकिस्तान

पाकिस्तान के गैरजिम्मेवाराना रवैये के कारण दक्षिण एशिया में शांति की कोशिशों को हमेशा झटका लगता रहा है.अब दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक से पूर्व पाकिस्तानी उच्चायुक्त द्वारा कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को बातचीत के लिए बुलाना विवादों को बरकरार रखने के इरादे का ही संकेत है. मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया […]

पाकिस्तान के गैरजिम्मेवाराना रवैये के कारण दक्षिण एशिया में शांति की कोशिशों को हमेशा झटका लगता रहा है.अब दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक से पूर्व पाकिस्तानी उच्चायुक्त द्वारा कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को बातचीत के लिए बुलाना विवादों को बरकरार रखने के इरादे का ही संकेत है.
मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अलगाववादियों के साथ वार्ता दोनों देशों के रिश्तों की बेहतरी की राह में बाधक है. हाल के वर्षो में पहली बार भारत ने ऐसी कठोर प्रतिक्रिया दी है. यह अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर भारत के बढ़ते कूटनीतिक आत्मविश्वास का सूचक भी है. भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवाद और कश्मीर से जुड़े विवादों पर एकनजर आज समय में..
जब मोदी के शपथ-ग्रहण में पहुंचे नवाज शरीफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ-ग्रहण में दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी पधारे थे. हालांकि दोनों नेताओं की बैठक के बाद कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं किया गया था, पर दोनों देशों के आधिकारिक बयानों में कहा गया था कि सद्भावनापूर्ण माहौल में हुई बैठक में शांति-वार्ताएं जारी रखने और आर्थिक संबंधों की बेहतरी की कोशिश करने पर सहमति हुई थी.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने नयी दिल्ली और इसलामाबाद में पत्रकारों से बातचीत में कश्मीर मुद्दे की चर्चा नहीं की थी. तत्कालीन भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह ने कहा था कि इस बैठक का मुख्य पहलू आतंकवाद पर नियंत्रण के उपायों से संबंधित था. तब प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा पाकिस्तान आने के आमंत्रण को भी स्वीकार किया था.
काठमांडू में सार्क सम्मेलन के दौरान मोदी-नवाज मुलाकात
अगस्त, 2014 में कश्मीरी अलगाववादियों के साथ पाकिस्तानी उच्चायुक्त की बैठक के कारण भारत ने दोनों देशों के बीच होनेवाली विदेशी सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी थी.
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव-भरे माहौल में काठमांडू में दक्षेस शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने दो दिन तक एक-दूसरे से बातचीत नहीं की थी, पर 28 नवंबर को समापन सत्र में अन्य नेताओं की उपस्थिति में एक-दूसरे से हाथ मिलाया और मुस्कुराते हुए एक-दूसरे का अभिवादन किया था. इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा था कि अगर हाथ मिलाने से अर्थपूर्ण बातचीत का रास्ता निकलता है, तो हम इसका स्वागत करते हैं.
रूस के उफा शहर में मिले मोदी और नवाज
उफा में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के मौके पर दोनों प्रधानमंत्रियों ने अलग से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर और पाकिस्तानी विदेश सचिव ऐजाज अहमद चौधरी ने एक साझा बयान जारी किया था. बयान के अनुसार, सद्भावपूर्ण वातावरण में हुई बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय और क्षेत्रीय महत्व के मसलों पर बातचीत की थी और शांति तथा विकास के लिए साझा जिम्मेवारी को स्वीकार किया था.
इस बैठक में आतंकवाद से संबंधित मसलों पर दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की वार्ता तथा सीमा सुरक्षा बल तथा पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों के बीच बैठक पर सहमति भी बनी थी. साथ ही, मुंबई हमले के मुकदमे की त्वरित सुनवाई पर भी दोनों देश तैयार हुए थे.
गुरदासपुर में आतंकी हमला
पंजाब के गुरदासपुर में 27 जुलाई, 2015 को हुआ आतंकी हमला मोदी सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा आतंकी हमला है. जांच एजेंसियों ने इस बात के पुख्ता सबूत जुटाये हैं कि हमलावर पाकिस्तान से घुसपैठ कर भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे.
माना जा रहा है कि उधमपुर हमले से जुड़े दस्तावेजों के साथ गुरदासपुर हमले पर तैयार 113 पन्नों की रिपोर्ट भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल पाकिस्तानी सुरक्षा और विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज के सामने प्रस्तुत करेंगे.
जिंदा पकड़ा गया आतंकी
जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में बीएसएफ के काफिले पर इसी माह की 5 तारीख को आतंकी हमला हुआ. इस हमले में नावेद नामक पाकिस्तानी आतंकी को जीवित पकड़ लिया गया था. नावेद ने भारतीय जांच एजेंसियों को पाक सेना द्वारा दिये जा रहे प्रशिक्षण और भारत में घुसपैठ के बारे में अहम जानकारियां दी है.
उसने यह भी बताया है कि प्रशिक्षण के दौरान मुंबई हमले के मुख्य साजिशकर्ता और लश्करे-तैयबा के मुखिया हाफिज सईद के अतिवादी भारत-विरोधी भाषणो को दिखा कर युवाओं को भड़काया और बरगलाया जाता है. इन शिविरों में सईद और अन्य चरमपंथी सरगना अक्सर दौरा भी करते हैं.
कश्मीर मसला : भारत का रुख
– भारत जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा द्वारा 25 अक्तूबर, 1947 को हस्ताक्षरित राज्य के भारतीय संघ में विलय के दस्तावेज को पूरी तरह वैध मानता है.
– संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव (संख्या 1172) विवादों पर भारतीय राय को स्वीकार करता है तथा बिना जनमत-संग्रह की जरूरत के, विवादों को बातचीत से हल पर जोर देता है.
जनमत-संग्रह कराने का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव (संख्या 47) लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर से अपनी सेना नहीं हटायी है, जो इस प्रस्ताव के लागू करने का पहला चरण है. भारत का कहना है कि जनमत-संग्रह का प्रस्ताव अप्रभावी हो गया है. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय छह के तहत पारित यह प्रस्ताव बाध्यकारी भी नहीं है.
– भारत द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को नहीं मानता है और उसने राज्य को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता दी है.
– दोनों देशों के बीच दो जुलाई, 1972 को हस्ताक्षरित शिमला समझौते के तहत कश्मीर समेत सभी द्विपक्षीय विवाद परस्पर बातचीत और समझौते से हल किये जाने चाहिए.
– भारत का लंबे समय से आरोप रहा है कि पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवादी गुटों और गतिविधियों को शह दे रहा है.
– भारत ने पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन, आर्थिक पिछड़ेपन, राजनीतिक मान्यता का अभाव जैसे मामलों को बार-बार उठाया है.
कश्मीर मसला : पाकिस्तान का रुख
– पाकिस्तान कहता रहा है कि कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को कश्मीरियों का समर्थन सबूत है कि वे भारत के साथ नहीं रहना चाहते. द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के अनुसार, मुसलिम बहुसंख्यक राज्य होने के नाते कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए था.
– भारत ने राज्य में जनमत-संग्रह नहीं कराकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और दोनों देशों में संयुक्त राष्ट्र कमीशन की अवहेलना की है.
– जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा को भारतीय सेना बुलाने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि वे वंशानुगत राजा नहीं थे और उन्हें अंग्रेजों ने नियुक्त किया था.
– 1960 के दशक में पाकिस्तान ने सुझाव दिया था कि कश्मीर घाटी और चेनाब नदी के उत्तर में बसे मुसलिम बहुसंख्यक क्षेत्र पाकिस्तान में और चेनाब के दूसरी ओर के हिंदू-बहुल इलाके भारत को दिये जाएं.
– पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जेनरल परवेज मुशर्रफ ने 16 अक्तूबर, 2014 को बयान दिया था कि पाकिस्तान को कश्मीर के भारत-विरोधी गुटों को प्रोत्साहित करना चाहिए. उन्होंने कश्मीर पर पाकिस्तानी दावे को दुहराया भी था.
अपने बुने जाल में उलझता पाक
पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, इयू एशिया न्यूज
प्रधानमंत्री मोदी की हालिया संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) यात्रा के बाद पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी है. दुनिया जानती है कि यूएइ के बरास्ते डी कंपनी और दूसरे अलगाववादी पाकिस्तान में अपनी जड़ें फैला चुके हैं. उन्हें लगता है कि जिस तरह से यूएइ, आतंकवाद के खिलाफ अभियान में भारत का साथ दे रहा है, उससे उसका सारा खेल बिगड़ सकता है. यह अच्छी बात है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दृढ़ता से कहा कि शिमला समझौते के तहत थर्ड पार्टी को बातचीत में शामिल नहीं होने देंगे..
दिल्ली दिल्ली हवाई अड्डे पर शब्बीर शाह को हिरासत में लेने के आधे घंटे बाद इसलामाबाद में पत्रकारों से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने कहा, ‘हम यह जान कर डिस्टर्ब हैं कि हुर्रियत नेताओं को हिरासत में लिया जा रहा है. हमसे मिलना उनका लोकतांत्रिक अधिकार था.
कोई उनके हुकूक से इनकार नहीं कर सकता. पिछले 15-20 साल से हम हुर्रियत नेताओं से मिलते रहे हैं. उनसे मिलना हमारे एजेंडे में था. हम जब भी भारत जाते हैं, सभी नेताओं से मिलते हैं.
किसी से पूछ लें, कौन सा इश्यू जरूरी है, तो वह है, कश्मीर!’ सरताज अजीज कहते हैं, ‘उफा में जो कुछ तय हुआ, उसकी जड़ में तो कश्मीर इश्यू है. आतंक समाप्त करने के लिए कश्मीर मुद्दे पर बात करनी ही होगी. 6 सितंबर, 2015 को डीजीएमओ के स्तर पर बात होनी है. एक महीने में सीमा पर 70 बार अशांति पैदा की गयी. जब से मोदी साहब आये हैं, बातचीत अपनी शर्तों पर चाहते हैं. यह मुमकिन नहीं कि कश्मीर को खामोश करके उनके ‘टर्म्स’ पर बात की जाये.’
भारत इस बार दृढ़ है, इसलिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सरताज अजीज को दो टूक कहा, ‘केवल आतंकवाद पर बात करने आइये, आपका स्वागत है.’
सरताज अजीज के प्रेस कॉन्फ्रेंस में तीन बातें प्रमुख रूप से निकल कर आयी हैं. एक, पाकिस्तान का सत्ता प्रतिष्ठान प्रधानमंत्री मोदी से परेशान है. दूसरा, पाकिस्तान हुर्रियत को अपने कार्ड के रूप में इस्तेमाल करते हुए कश्मीर को जिंदा रखेगा.
और तीसरा, पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र महासभा की सितंबर बैठक में कश्मीर मुद्दे को प्रमुखता से रखेगा. इसी हफ्ते संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने महासचिव बान की मून से ऐसे शब्द निकलवा लिये, जिसे भारत के हित में नहीं कहा जा सकता. संयुक्त राष्ट्र की ओर से पहली बार यह नसीहत दी गयी है कि कश्मीर सीमा पर भारत-पाक शांति बनाये रखें.
यह नसीहत कोई और नहीं, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने दी है. 10 अगस्त, 2013 को यही बान की मून जब इसलामाबाद में थे, तब उन पर दबाव बनाया गया था कि वह कहें कि संयुक्त राष्ट्र कश्मीर पर पंचायत चाहता है. तब बान की मून ने बड़ी सफाई से उसे टालते हुए बयान दिया था कि यदि भारत और पाकिस्तान दोनों चाहें, तो हम इसमें पहल कर सकते हैं.
उस समय इस बयान से मुराद यह था कि संयुक्त राष्ट्र ‘मसला-ए-कश्मीर’ से दूरी बनाये रखना चाहता है. अब यही संयुक्त राष्ट्र महासचिव शांति की नसीहत दोनों पक्षों को दे रहे हैं. बॉन की मून दो साल में क्यों बदल गये, इस प्रश्न की पड़ताल करनी होगी. सवाल यह है कि संयुक्त राष्ट्र में बान की मून को भारत का पक्ष पुरजोर तरीके रखने में हम संकोच क्यों कर रहे हैं?
पाकिस्तान जिस तरह से हुर्रियत के कंधे पर बंदूक चला रहा है, उसे यूएन में ‘एक्सपोज’ करने की जरूरत है.
दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरते ही शब्बीर शाह को हिरासत में लेना सरकार का सही कदम था. देश ऐसा ही चाह रहा था. बल्कि यह काम तो ‘एनएसए’ वार्ता से बहुत पहले हो जाना चाहिए था. शब्बीर शाह नयी दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन स्थित अपने निवास पर ले जाये गये, जहां से उन्हें निकलने नहीं दिया जायेगा. यह केंद्र सरकार की पहली कार्रवाई थी, जिसे दिल्ली पुलिस ने अंजाम दिया.
केंद्र की ओर से यह साफ संदेश था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक को अलगाववादियों की तरफ से बाधा पहुंचाने नहीं देंगे. केंद्र सरकार ने जिस तरह से अलगाववादियों के मामले में नयी दिल्ली में सख्ती दिखायी है, यदि सचमुच उस पर कायम रही तो इससे देश का मनोबल ऊंचा रह सकता है.
अलगाववादियों की नजरबंदी का जिस तरह मजाक कश्मीर में बना, लगता है केंद्र सरकार उससे अलग संदेश देने के मूड में आ गयी है. यह मजाक 14 अगस्त को चरम पर था, उस दिन लाहौर में जमातउल दावा ने रैली की, और उस रैली को श्रीनगर से फोन पर सैयद अली शाह गिलानी संबोधित कर रहे थे.
मुफ्ती सरकार से पूछा जाना चाहिए कि यह किस तरह की नजरबंदी थी कि एक अलगाववादी नेता, पाकिस्तान दिवस पर लाहौर की रैली को फोन और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा संबोधित कर रहा था. एक बार फिर 20 अगस्त को नजरबंदी को राज्य सरकार ने मजाक बनाया था, जब डेढ़ घंटे के लिए मीरवाइज उमर फारूक, शब्बीर शाह, मौलवी अब्बास अंसारी, मोहम्मद अशरफ सेहराई, अयाज अकबर जैसे हुर्रियत नेता और जेकेएलएफ के यासीन मलिक नजरबंद किये गये, और महबूबा मुफ्ती के कहने पर उनपर से पाबंदी हटायी गयी.
हुर्रियत कार्ड को खेल कर पाकिस्तान अपने बिछाये जाल में खुद फंस गया है. उफा में जो कुछ तय हुआ, वह कहीं से इसकी इजाजत नहीं देता कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बैठक से पहले अलगाववादियों से बात की जाये. अलगाववादियों को पाक उच्चायोग ने जिस तरह से निमंत्रित किया है, वह उसकी नीयत को दर्शाता है कि एनएसए स्तर की बातचीत को नेपथ्य में रख कर ये लोग कश्मीर को प्रमुख अजेंडा बनाना चाहते हैं. हुर्रियत के हो-हल्ले में पाकिस्तान उस सच को दबाना चाहता है कि दाउद इब्राहिम परिवार सहित पाकिस्तान में है.
पाकिस्तान को लगता है कि भारत के कब्जे में जिंदा आतंकी नावेद ‘एनएसए’ बैठक में एक ट्रंप कार्ड की तरह काम करेगा, उसकी काट प्रस्तुत करने के लिए पाक गृह मंत्री चौधरी निसार अली खान रॉ के विरुद्ध फर्जी मामलों की फाइल बना कर सरताज अजीज को दे चुके हैं.
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी की हालिया संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) यात्रा के बाद पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी है. दुनिया इसे जानती है कि यूएइ के बरास्ते डी कंपनी और दूसरे अलगाववादी पाकिस्तान में अपनी जड़ें फैला चुके हैं. उन्हें लगता है कि जिस तरह से संयुक्त अरब अमीरात, आतंकवाद के खिलाफ अभियान में भारत का साथ दे रहा है, उससे उसका सारा खेल बिगड़ सकता है.
यह अच्छी बात है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दृढ़ता से कहा कि शिमला समझौते के तहत थर्ड पार्टी को बातचीत में शामिल नहीं होने देंगे. उन्होंने सरताज अजीज को कहा, उफा घोषणापत्र का सम्मान कीजिए, और आतंकवाद से इतर बात होती है, तो एनएसए वार्ता नहीं होगी. अब पाकिस्तान के लिए दुविधा की स्थिति है कि इसे उगले या निगले!
भारत-पाक वार्ता से उम्मीदें बेहद कम
राजिंदर कुमार
आइबी के पूर्व विशेष निदेशक
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री, विदेश मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच होनेवाली बातचीत से कुछ खास हासिल होने की उम्मीद नहीं है.
हालांकि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज है, लेकिन विदेश नीति के निर्धारण, खासकर पाकिस्तान के मामले, में उनका कोई खास रोल नहीं है.
अजीत डोभाल के जरिये प्रधानमंत्री खुद इसका निर्धारण कर रहे हैं. ऐसे में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच की बातचीत को विदेश मंत्रियों के स्तर की बातचीत माना जा सकता है. इस बातचीत को सुरक्षा और आतंकवाद तक सीमित रखना एक दिखावा होगा और इसका कोई परिणाम नहीं निकलनेवाला है.
भारत-पाक के बीच यह बातचीत यदि होती है, तो दो साल के बाद पहली उच्चस्तरीय बैठक होगी. 12 अगस्त, 2014 को विदेश सचिवों की वार्ता विभिन्न कारणों से रद्द कर दी गयी थी.
इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में सीमा पर गोलीबारी एक सामान्य घटना हो गयी है और दोनों देश में नागरिक तथा सुरक्षाकर्मी मारे जा रहे हैं. एक साल की कटुता के बाद मोदी और नवाज शरीफ के बीच ऊफा में फिर मुलाकात हुई और इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत पर सहमति बनी. इसके अलावा डीजी बीएसएफ और डीजी पाक रेंजर्स तथा दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच बातचीत पर भी सहमति बनी.
अगर ये बैठकें आयोजित हुई होतीं, तो डोभाल और अजीज के बीच बातचीत के लिए ठोस आधार तैयार हो सकता था, लेकिन मौजूदा समय में भारत सरकार की पाकिस्तान संबंधी नीति भ्रमित दिख रही है. ऊफा बैठक के बाद डोभाल के बयान से द्विपक्षीय वार्ता पटरी से उतरने लगी और भविष्य में भी इसमें सुधार के संकेत नहीं दिख रहे हैं.
किसी बातचीत के सार्थक परिणाम के लिए भरोसा और आत्मविश्वास जरूरी होता है. पाकिस्तान दावा करता है कि वह आतंकवाद का शिकार है और उसकी आर्मी इसे पूरी तरह खत्म करने का वादा करती है. लेकिन, पिछले दो साल में पाकिस्तान ने आतंकवाद के ढांचे को खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि अपने सामरिक हित के लिए उसे बढ़ावा दे रहा है.
भारत में बहुत से लोग सीमा पार से गोलीबारी को बड़ा मुद्दा न मान कर, पाक समर्थित आतंकवाद को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं. पाकिस्तान आतंकवाद का दायरा जम्मू-कश्मीर से पंजाब और हिमाचल प्रदेश तक ले जाने की कोशिश कर रहा है और भारत में एनडीए सरकार बनने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि हुई है.
जबतक पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार का सेना और आइएसआइ पर नियंत्रण नहीं होगा, तबतक भारत को आतंकवाद से मुक्ति मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. इसलिए एनएसए की वार्ता से खास उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. यदि बैठक हुई तो इसके बाद दोनों देश दावा करेंगे कि उन्होंने अपनी बात दृढ़ता से रखी.
पाकिस्तान दावा करेगा कि कश्मीर मुद्दा भी उठाया गया.
यह दोनों देशों के हित में होगा कि वे सीमा पर पूर्ण युद्धविराम का पालन करें. सीमा पर पूर्ण शांति ही आगे उपयोगी बातचीत का रास्ता तैयार करेगी. यह तर्क सही नहीं है कि जबतक आतंकवाद खत्म नहीं होगा, बातचीत करना बेमानी है. पाकिस्तान की शातिर चाल को वहां के लोगों के सामने लाकर ही भारत उसे बेनकाब कर सकता है.
(‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित लेख का संपादित अंश/ साभार.)
पाकिस्तान की जिद को करारा जवाब
तरुण विजय
रक्षा मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति के सदस्य
कल तक लग रहा था कि भारत-पाक के मध्य राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की वार्ता फिर स्थगित हो जायेगी. लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वार्ता जारी रहने और 23 अगस्त की शाम पाकिस्तानी उच्चयुक्त द्वारा सरताज अजीज के सम्मान में स्वागत-भोज कायम रखने की खबर है. आज पांच बजे पाकिस्तानी उच्चायोग से फोन आया- जनाब आप तशरीफ ला रहे हैं? मैंने कहा- हमने कश्मीरी देशद्रोहियों को बंद कर दिया है, अब आने में क्या आपत्ति है!
रूस के उफा नगर में नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच वार्ता से जो एक अच्छा माहौल बना, उसे पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ ने तुरंत बिगाड़ने का प्रयास किया. एक दिन बाद सरताज मोदी-शरीफ वार्ता में कश्मीर का जिक्र न होने की सफाई पेश करने लगे और कहा कि बिना कश्मीर कोई वार्ता नहीं होगी.
फिर गुरदासपुर और उधमपुर में पाकिस्तानी आतंकियों के हमले हुए. 11 बार सीमा पर युद्ध विराम उल्लंघन हुआ. यानी हर संभव प्रयास हुआ कि किसी तरह भारत अपनी ओर से वार्ता रद्द कर दे और पाक को भारत के विरुद्ध प्रचार का मौका मिल जाये.
पाकिस्तान उधमपुर से पकड़े गये आतंकी नावेद जैसे साक्ष्यों के पेश होने से ही असहज नहीं था, बल्कि दाऊद के पाक में होने के अकाट्य नये प्रमाण भारत के सुरक्षा सलाहकार ने रखे हुए हैं- ऐसा भी उसे अंदेशा था. दिल्ली आकर सिवाय हर आतंकी हमलों में इस्लामाबादी जिहादियों का हाथ होनेवाले साक्ष्य देखने के, सरताज अजीज के पास कुछ था ही नहीं एजेंडे में.
इसलिए आतंकवादी हमलों से भी जब भारत ने वार्ता नहीं टाली, तो पाकिस्तान ने कश्मीर के हुर्रियत से वार्ता का दांव चला. इन देशद्रोही अलगाववादियों से पिछले वर्ष अगस्त में पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने वार्ता की थी, इसके विरोध में भारत ने तब होनेवाली विदेश सचिव स्तरीय वार्ता रद्द कर दी थी. सरताज को लगा होगा अब तो भारत अपनी ओर से वार्ता स्थगित कर ही देगा.
लेकिन मोदी सरकार ने पहले श्रीनगर में हुर्रियत के सरगनाओं को गिरफ्तार कर संकेत दिया कि हमारा इरादा क्या है और आज जब हुर्रियत के पाक परस्त देशद्रोही श्रीनगर से दिल्ली के विमान में चढ़ने में कामयाब हुए, तो हवाई अड्डे पर ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया. यानी पाकिस्तानी जिद को हौले-हौले दो दिन में दो बार कस कर जवाब मिला.यह वार्ता हमारी मजबूत स्थिति विश्व में प्रदर्शित करने का अच्छा अवसर है.
प्रधानमंत्री मोदी की आबू धाबी की सफल यात्रा , अरब देशों के वर्ग में भारत के समर्थन का वातावरण, वहां से पाकिस्तान को चेतावनी जहां नया माहौल दर्शाते हैं, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा द्वारा पाकिस्तान को मदद पर ‘स्थगन’ का निर्देश तथा नवाज शरीफ की अमेरिका यात्रा फिलहाल अनिर्णित रखना इसलामाबाद के गर्दिश वाले दिनों का संकेत है.
दुर्भाग्य से भारत के कुछ राजनीतिक दल तथा अंगरेजी मीडिया का एक वर्ग पाकिस्तानी स्थिति को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से समर्थित कर रहा है. कश्मीर यदि भारत का अभिन्न अंग है, तो वहां ‘आजादी’ मांगनेवालों को सम्मानजनक स्थान देना भारत की अखंडता पर चोट है.
अफगानिस्तान में तालिबान और आइएसआइएस के मध्य युद्ध, चीन द्वारा पाक के ग्वादर को सिंज्यांग के काश्गर तक जोड़नेवाले आर्थिक गलियारे का निर्माण एवं रूस-चीन व पाक में बढ़ते सैन्य-संबंध हमारी राजनयिक परीक्षा लेते दिखते हैं. ऐसी स्थिति भूराजनीतिक सुरक्षा नीति के लिए बड़ी चुनौती है.
ऐसे में पाकिस्तान से वार्ता और सीमा एवं अन्य मंचों पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उसे करारी चोट पहुंचाते हुए आहत करना सर्वोत्तम समर-नीति है. यह दौर प्रत्यक्षत: भारत के पक्ष में गया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें