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इंजीनियरिंग कॉलेज व उद्योग जरूरी

इं. प्रत्यूष सिंह अमेरिका से हार में लंबे समय तक मैं ने कोई विकास नहीं देखा. दस साल पहले नयी सरकार बनी, तो काफी काम हुआ. विकास को लेकर वह जड़ता टूटी, तो दस साल पहले बनी थी, लेकिन पिछले पांच साल में विकास की रफ्तार बहुत धीमी रही. इससे भी खराब यह है कि […]

इं. प्रत्यूष सिंह
अमेरिका से
हार में लंबे समय तक मैं ने कोई विकास नहीं देखा. दस साल पहले नयी सरकार बनी, तो काफी काम हुआ. विकास को लेकर वह जड़ता टूटी, तो दस साल पहले बनी थी, लेकिन पिछले पांच साल में विकास की रफ्तार बहुत धीमी रही. इससे भी खराब यह है कि पिछले कुछ दिनों से लग रहा है कि बिहार फिर से अपने पुराने दिनों की तरफ बढ़ रहा है.
सत्तारूढ़ और विपक्षी, सभी पार्टियां कास्ट पॉलिटिक्स पर ज्यादा ध्यान देने लगी हैं. चुनाव का मुद्दा विकास होना चाहिए, लेकिन इसकी जगह कास्ट मुद्दा है. नेताओं और पार्टियों का जो समय विकास की बात करने, उसके अनुकूल सोच विकसित करने और विकास का मॉडल तैयार करने में लगा चाहिए वह एस-दूसरे पर आरोप लगाने में बरबाद हो रहा है.पहले भी ऐसा ही होता रहा है और यही वजह है कि बिहार पिछड़ा राज्य बन कर रह गया.
अगर अब भी हम, हमारे नेता और राजनीतिक पार्टियां वहीं करती रहेंगी, तो तय है कि बिहार की तरक्की नहीं होगी. इस सच को सभी जानते हैं, लेकिन राजनीति के पुराने तौर-तरीकों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, जबकि दुनिया तेजी से बदल रही है. बहुत कुछ बदल चुका है. वहां विकास की प्रतिस्पर्धा है. कौन किस जाति का है, यह न तो कोई पूछता है, न इसकी कोई अहमियत है. बिहार की राजनीतिक सोच को बदलने की जरूरत है.
यह समझाने की जरूरत है कि वहां के युवा क्यों बाहर भाग रहे हैं? उनकी क्या परेशानियां और मजबूरियां हैं? इससे राज्य को कितना नुकसान है? अगर इन सब बातों पर चिंतन नहीं किया जायेगा और इन्हें चुनाव का मुद्दा नहीं बनाया जायेगा, तब तक बिहार की परिस्थितियां नहीं बदलेंगी. मेरा खुद का अनुभव है.
12वीं तक की पढ़ाई पटना में रह कर पूरी की, लेकिन इंजीनियरिंग करने के लिए पुणो जाना पड़ा था, क्योंकि तक बिहार में इंजीनियरिंग कॉलेज कम थे. सेशन लेट चल रहा था. बिहार छोड़ना मेरी मजबूरी थी. पेट्रोलियम इंजीनियरिंग करने के बाद मैंने मुंबई में नौकरी की. फिर मलेशिया चला गया. कुछ समय दुबई में भी रहा.
अब अमेरिका में बस गया हूं. यहीं लुब्रिजॉल ऑयलफिल्ड सोलुशंस में ग्लोबल सीनियर टेक्निकल एडवाइजर हूं, लेकिन बिहार छोड़ने का दर्द मुझ में हैं. बिहार के चुनाव को लेकर मैं बहुत उत्सुक हूं. मुङो उम्मीद है कि हम इस बार अच्छे प्रतिनिधि चुनेंगे और अच्छी सरकार को अवसर देंगे, जो राज्य की तरक्की पर ज्यादा ध्यान दे सके, न कि जातीय राजनीति पर. अभी जो राजनीति हो रही है, उसमें विकास मुद्दा नहीं है.
यह बेहद दुखद है. बिहार को अभी अच्छे तकनीकी शिक्षण संस्थान और बड़े-बड़े उद्योगों की जरूरत है. तब तक बेहतर तकनीकी शिक्षण संस्थान नहीं होंगे, तब तक वहां के युवाओं को दुनिया के अंदर हो रही तकनीकी प्रगति से मुकाबला करने के लायक खुद को बनाने का मौका नहीं मिलेगा.
ऐसे में या तो वे बाहर जायेंगे या फिर राज्य में रह कर अपनी प्रतिभा की हत्या करेंगे. दुनिया तेजी से बदल रही है. चारों ओर काफी तरक्की हुई है. राज्य में तब बड़े-बड़े उद्योग लेंगे, तभी वहां के युवाओं को रोजगार मिल सकेगा और उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल हो सकेगा.

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