जिलादर राम,पूर्व विधायक, बेतिया
कांग्रेस की लहर में 1962 में स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर ग्राम सेवक की नौकरी छोड़ बेतिया विधानसभा से जिलदार राम विधायक चुने गये थे. अब राजनीति से इन्हें कोई मतलब नहीं है. जीविका चलाने के लिए 95 वर्ष की उम्र में भी वह सिलाई करते हैं. मझौलिया थाना के महोदीपुर गांव के रहने वाले पूर्व विधायक जिलदार राम बताते है कि आज कोई एक बार विधायक-सांसद तो छोड़िए मुखिया व प्रमुख बन जाता है तब उसका रुतबा ही बदल जाता है. चारपहिया से उनके पैर जमीन पर नहीं उतरते हैं. लेकिन, उस वक्त का जमाना ही कुछ और था. जनता व नेता दोनों स्वार्थी नहीं थे. नेता बस देश व क्षेत्र की जनता के विकास के बारे में सोचते थे. पैसा कमाना उनका लक्ष्य नहीं होता था. जिलादर बताते हैं कि वह जब ग्राम सेवक के पद पर नौकरी कर रहे थे, तब उसी वक्त स्वतंत्र पार्टी के नेताओं ने टिकट दिया. टिकट मिलने पर कभी भी पैसे की कमी सामने नहीं आयी. पैदल ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव प्रचार करते थे.
जिस गांव में जाते थे खाने की व्यवस्था उसी गांव के लोग कर देते थे. इस लिए कभी पैसे की चिंता नहीं करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि आज तो एक बार विधायक बनने के बाद पेंशन की सुविधा तुरंत चालू हो जाती है, लेकिन इसके लिए मुङो काफी दिन तक संघर्ष करना पड़ा था. जगन्नाथ मिश्र जब राज्य के मुख्यमंत्री बने, तब पेंशन शुरू हुई. वह बताते हैं कि जब मेरा कार्यकाल खत्म हुआ तब जीवनयापन के लिए सिलाई शुरू कर दिया. आज भी मैं यही कर रहा हूं. इससे ज्यादा की जरूरत महसूस नहीं हुई. आज सुनता हूं कि प्रचार में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. गाड़ियों का काफिला निकलता है. प्रत्याशी एक जगह बहुत कम रुकते हैं. उनके चारोंओर सुरक्षा का मजबूत घेरा भी रहता है. आम आदमी की पहुंच नेताओं तक संभव नहीं है. पहले ऐसा नहीं था. पैदल या साइकिल से घूमा करते थे. कार्यकर्ता तो ज्यादातर पैदल ही चलते थे. मोटरसाइकिल या गाड़ी बहुत कम लोगों के पास था. प्रत्याशी या विधायक से कोई भी मिल सकता था. पब्लिक ही सुरक्षा घेरा का काम करती थी.