जनकधारी प्रसाद,पूर्व विधायक,मीनापुर
वर्ष 1980 में मीनापुर से विधायक चुने गये जनकधारी प्रसाद कुशवाहा ने चुनाव लड़ने के लिए घर का एक पैसा खर्च नहीं किया था. गरीबों ने चंदा इकट्ठा कर जनकधारी को मीनापुर से विधायक बनाया था. उस वक्त चुनाव में नामांकन के दिन से रिजल्ट तक कुल 21 हजार रु पये खर्च आये थे. 1980 में मीनापुर विधानसभा को लेनिनग्राद कहा जाता था. वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव जीते थे. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के महेंद्र सहनी को सात हजार मतों से हराया था.
उम्र के अंतिम पड़ाव में चल रहे जनकधारी कुशवाहा को 1980 का वह लम्हा अब भी याद है. तब के चुनाव प्रचार व अब के चुनाव प्रचार में जमीन आसमान का अंतर है. उस वक्त वोट मांगने वाले प्रत्याशी को काफी सम्मान मिलता था. लोग रोटी भी खिलाते थे, चंदा भी देते थे. इतना ही नहीं चुनाव प्रचार का खर्च भी वही लोग जुटाते थे. जनकधारी कुशवाहा बताते हैं कि उस समय वह साइकिल में लाल झंडा व कंधे पर भोंपू लटका कर प्रचार करते थे. उनके साथ कार्यकर्ता भी साइकिल से प्रचार करते थे. बड़ी सभाओं में बैलगाड़ी से भीड़ जुटायी जाती थी. 1962 से लेकर 1990 तक जनकधारी कुशवाहा नौ बार चुनाव लड़ चुके हैं.
आठ बार विधानसभा व एक बार लोकसभा का चुनाव लड़े हैं. पहली बार 1985 के चुनाव में उन्हें घर से सात हजार रु पये खर्च करना पड़ा था. उसके पहले एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ. संगठन के साथी ही गांव से चंदा इकट्ठा करते थे. नामांकन का खर्च भी वही जुटाते थे. जनकधारी कुशवाहा बताते हैं कि 1947 में आजादी मिली. किंतु यह सिर्फ कागज पर थी. अंग्रेजों के शासन व कांग्रेस के शासन में कोई फर्क नहीं था. गांवों में गरीबों पर जमींदार, पुलिस, महाजन व नेताओं का जुल्म बरपता था. जमीदारों के रौब के सामने पिछड़ी जाति के अमीर भी उनके सामने पशु के सामान थे. इनके सामने गरीबों की हालत दयनीय थी. नतीजतन 1953 में मीनापुर में भाकपा का जन्म हुआ. लाल झंडा के तले जमींदारों के खिलाफ लड़ाई शुरू हुई. गरीबों की एकजुटता के कारण उन्हें 1980 में जीत मिली.