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चुनाव लड़ने के लिए चुमावन में मिले थे 85 हजार रुपये

केदार प्रसाद,.पूर्व विधायक, लालगंज वैशाली जिले के लालगंज विधानसभा से 1990 में विधायक चुने गये केदार प्रसाद बदले राजनीतिक परिदृश्य से आहत हैं. कहते हैं कि अब तो राजनीतिक दल का टिकट लेने के लिए भी लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि पहले समाजसेवा का फल मिलता था. वे तो मंगनी में ही चुनाव […]

केदार प्रसाद,.पूर्व विधायक, लालगंज

वैशाली जिले के लालगंज विधानसभा से 1990 में विधायक चुने गये केदार प्रसाद बदले राजनीतिक परिदृश्य से आहत हैं. कहते हैं कि अब तो राजनीतिक दल का टिकट लेने के लिए भी लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि पहले समाजसेवा का फल मिलता था. वे तो मंगनी में ही चुनाव जीत गये थे. जब चुनाव लड़ने की बात तय हुई तो गांव के लोगों ने चुमावन के रूप में उन्हें 90 हजार रुपये दिये थे. तब नेताओं के साथ ही कार्यकर्ताओं का भी बहुत सम्मान होता था. दिन ढलने पर किसी गांव में पहुंचते तो लोग बिना खाना खिलाये नहीं जाने देते. मुजफ्फरपुर नगर पालिका का 1977 से 1986 तक आयुक्त रहने के दौरान शहरवासियों ने भी पूरा स्नेह दिया था. राजनीति से अलग समाजसेवा का उद्देश्य था. 1990 में लालगंज विधानसभा क्षेत्र से जनता दल ने टिकट दिया. पहली बार चुनाव लड़ने को लेकर मेरा हौसला तो बढ़ा था, लेकिन जेब खाली थी.

प्रचार अभियान में कार्यकर्ता जुटने लगे तो मन में यही बात आती कि उनका खर्च कहां से आयेगा. लेकिन पूरे क्षेत्र में एक लहर दौड़ गयी. तब कई पुराने साथी नौकरी से छुट्टी लेकर प्रचार करने के लिए आ गये थे. यहां के बड़े नेता भी धीरे-धीरे समर्थन में आ गये. अब के जैसा माहौल भी नहीं था. जब हम लोग गांवों में जाते तो लोग खूब सम्मान देते. नेता और मतदाता, तब दिल से मिलते थे. कहीं कोई दिखावा नहीं था. न ही किसी तरह का लालच था. धीरे-धीरे पूरे विधानसभा क्षेत्र में यह बात साफ हो गयी थी कि मैं समाजसेवा के जरिए ही चुनाव मैदान में उतरा हूं. बीच में आर्थिक संकट ने मेरी परीक्षा भी ली. आखिर जो साथ चल रहे हैं, उनके प्रति मेरा भी कुछ कर्तव्य था. फिर लोगों ने मेरी यह चिंता भी दूर कर दी. मुङो चुनाव लड़ाने के लिए गांवों में लोगों ने चंदा जुटाना शुरू किया. कुछ ही दिनों में 90 हजार रुपये जुट गये. इससे मुङो किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई. ग्रामीणों ने ही खाने का भी इंतजाम कर दिया. अब की राजनीति बदल गयी है. पिछले डेढ़ दशक में यह बदलाव आया. नतीजा, नेताओं के साथ कार्यकर्ता नहीं रह गये हैं. या फिर नेताओं ने ही कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया है.

अब नेता के साथ अभिकर्ता घूम रहे हैं. अर्थतंत्र हावी होता जा रहा है. इसके चलते शासन तंत्र कमजोर पड़ रहा है. ठेकेदार नेता बनकर रातों-रात करोड़पति-अरबपति बन रहे हैं. इसके लिए अच्छे लोग जिम्मेदार हैं. लोहिया ने कहा था-जुल्म सहने की आदत जुल्मी को बढ़ाती है. यह सही बात है. ठेकेदार राजनीति में आ गये हैं और अच्छे नेता पार्टी में किसी कोने में बैठे दिख रहे हैं.

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