1977 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने शिवानंद तिवारी को शाहपुर से प्रत्याशी बनाने का फैसला किया. सूची शिवानंद तिवारी के पिता व समाजवादी नेता रामानंद तिवारी के पास पहुंची, जो उन दिनों बक्सर से सांसद थे. उन्होंने शिवानंद को बुलाकर पूछा कि क्या वह चुनाव लड़ना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि सबका फैसला है. इसी दौरान कुछ नेताओं ने परिवारवाद का मसला उछाला.
इसके बाद शिवानंद जी ने तय किया कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे और सिम्बल लौटा दिया. इसके बाद इस सीट से जयनारायण मिश्र को टिकट मिला और वे जीते. यदि शिवानंद ने उस समय चुनाव लड़ा होता, तो उनका विधायक चुना जाना तय था, क्योंकि जनता लहर था. श्री तिवारी ने दूसरी बार 1980 में चुनाव लड़ने से मना किया. तब उन्हें कर्पूरी ठाकुर ने खुद बुलाकर टिकट देने की पेशकश की थी. श्री तिवारी ने कहा कि वह पिता की विरासत के भरोसे राजनीति नहीं करेंगे. 1985 में वह पीरो से चुने गये.