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21 हजार रुपये खर्च कर बन गया विधायक
डॉ एसएम ईशा पूर्व विधायक, आरा आज राजनीति में पैसे और पावर का बोलबाला है. अभी एमएलए का चुनाव लड़ना हो तो कम से कम तीन करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. 1980 में जब मैं पहली बार चुनाव लड़ा था तो मात्र 21 हजार रुपया खर्च हुआ था और मैं विधायक बन गया था. प्रचार […]
डॉ एसएम ईशा
पूर्व विधायक, आरा
आज राजनीति में पैसे और पावर का बोलबाला है. अभी एमएलए का चुनाव लड़ना हो तो कम से कम तीन करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. 1980 में जब मैं पहली बार चुनाव लड़ा था तो मात्र 21 हजार रुपया खर्च हुआ था और मैं विधायक बन गया था. प्रचार करने का तरीका भी आज के जैसा नही था. प्रत्याशी, समर्थक या कार्यकर्ता डोर टू डोर जाकर प्रचार करते थे. 1980 में मैने प्रचार के लिए तीन जीप ली थी. उनमें दो बिगड़ गयी थी.
पहले चुनाव में कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिए कहते थे. रात 10 बजे सलेमपुर से चल कर तीन बजे सुबह आरा पहुंचते थे. फिर भी डर नहीं था. पहले भी एक दूसरे पर कटाक्ष होते थे, लेकिन नैतिकता का पूरा ख्याल रखा जाता था. आज यह सब खत्म हो चुका है.
पहले की तुलना में चुनाव पद्धति में भी काफी बदलाव आया है. पहले बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता था. अब इवीएम ने इसकी जगह ले ली है. उस समय चुनाव प्रचार इतना हाइटेक नहीं था. प्रचार के नाम पर सिर्फ पंपलेट और पोस्टर बनवाये जाते थे, वह भी सीमित मात्र में. आज नेता पेड न्यूज से लेकर विज्ञापन का सहारा ले रहे हैं. इसके अलावा होर्डिग, बैनर, पोस्टर, मैसेज और टीवी के माध्यम से प्रचार किया जा रहा है. यही कारण है कि अब चुनाव पहले के मुकाबले खर्चीला हो गया है.
आज विधायकों को क्षेत्र के विकास के नाम पर प्रत्येक वर्ष दो करोड़ रुपये मिलते हैं. पहले एक-एक लाख रुपये पूरे पांच साल के कार्यकाल के दौरान मिलता था. हम लोग पीपी मोड के तहत काम करते थे. इसमें लोगों से चंदा इकट्ठा किया जाता था और विधायक मद से विकास का कार्य होता था.
मैं जब पीएचइडी मंत्री था, तो मैंने शहर में ड्रेनेज की व्यवस्था की थी जिसमें पूरे शहर में रिंग रोड के तर्ज पर आउट फॉल नाले बनाये गये थे. वह बरसात में भी नहीं भरता था. आज जरूरत देश और प्रदेश के विकास की भावना से राजनीति करने की है. हर आदमी को जीवन का एक हिस्सा ईमानदारी और पूरी क्षमता के साथ देश की सेवा में लगाना चाहिए.
(बातचीत पर आधारित)
परमानंद शर्मा हैदराबाद से
कानून व्यवस्था बेहतर करना चुनौती
या के परैया के रहने वाले हैं परमानंद शर्मा. 1994 में एक अटैची लेकर हैदराबाद गये और अपना कारोबार शुरू किया. करीब दो दशक में उन्होंने अपना ठीक-ठाक कारोबार जमा लिया.
उनकी पढ़ाई गया कॉलेज से हुई. जूलॉजी में ऑनर्स शर्मा से जब बिहार चुनाव के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, विकास होगा तो तमाम बुराइयां खत्म हो जायेंगी. बेशक बीते कुछ सालों में बिहार में बदलाव हुए हैं. पर इसकी रफ्तार तेज करने की जरूरत है. अगली सरकार चाहे जिसकी भी बने, हम चाहते हैं कि विकास के मामले को वह सर्वोच्च प्राथमिकता दे.
दूसरे राज्यों की तरह बिहार भी प्रगति का प्रतीक बने, हम यह चाहते हैं.
शर्मा बताते हैं कि करीब दो दशक पहले वह महज एक अटैची लेकर यहां आये थे और आज अपना अच्छा काम कर रहे हैं. यह कैसे संभव हुआ? इसे समझने की जरूरत है. अगर हम वहीं रह जाते तो मेरा, मेरे बच्चों को कैसा भविष्य मिलता? उनका कहना था कि वहां हम छोटे-मोटे ठेकेदार होते या नेताओं के आगे-पीछे घूम रहे होते. लेकिन हमने देखा कि यहां का माहौल कुछ अलग है.
लोग मदद करने वाले हैं. हिंदीभाषा-भाषी लोगों के प्रति किसी जमाने में दुराग्रह होगा. पर अब तो नहीं है. यहां की तरह हमारे बिहार में माहौल क्यों नहीं बन सकता? ऐसा माहौल बनाने का काम राजनीति के जरिये ही हो सकता है. सभी पार्टी के राजनीतिज्ञों को विकास के प्रति सकारात्मक सोच रखने की जरूरत है तभी राज्य का भला होगा.
शर्मा मानते हैं कि तमाम बदलावों के बावजूद अब भी जातिवाद बना हुआ है. यह विकास में बड़ा अवरोध है. मुङो लगता है कि विकास का चौतरफा माहौल बनेगा, तो जातिवाद भी खत्म होगा. मुङो हैरानी होती है, यह सुनकर कर अपने यहां अब भी जाति के आधार पर विभाजन कम नहीं हुआ है.
उनका कहना था कि जाति तो पूरे देश में है, पर उसका असर बिहार की तरह नहीं दिखता. यह बड़ी बात है. इसी तरह भ्रष्टाचार का मामला है. यह हमारे यहां भी है. लेकिन यहां इसका रूप कुछ दूसरा है. बिहार में कोई काम कराने जाओ, तो वहां काम करने वाला आपको निचोड़ लेने के जुगाड़ में रहता है. भ्रष्टाचार की बीमारी पूरे देश में है. लेकिन बिहार में इसका स्वरूप कुछ ‘दूसरा’ ही है और इसे ही बदलने की जरूरत है.
राजनीतिक दलों को इस बात की गारंटी करनी होगी कि उनकी सरकार कानून-व्यवस्था की हालत और बेहतर करेगी. मेरे मन में भी इच्छा होती है, कि मैं अपने घर लौट जांऊ. पर आप बतायें कि वहां जाकर मैं करूंगा क्या? मेरे जैसे दूसरे लोगों के मन में ऐसे ही खयाल आते हैं और वे लौट नहीं पाते. कानून-व्यवस्था के प्रति लोगों में भरोसा जगाना होगा.
मैं मानता हूं कि तुलनात्मक रूप से इस मोरचे पर मौजूदा सरकार ने काफी मेहनत की है. लेकिन आदर्श माहौल का बनना अभी बाकी है. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाली नयी सरकार विकास, कानून-व्यवस्था और शिक्षा के मोरचे पर बढ़िया काम करेगी.
(बातचीत पर आधारित)
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