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क्रांति और प्रेम का कवि पुश्किन
– हरिवंश – लोकसभा चुनाव के पूर्व इतिहास के अनोखे नायकों, पात्रों के संबंध में हमने कुछ चीजें प्रकाशित की थीं. इस उद्देश्य से कि युवा इतिहास में चर्चित रहे, इन पात्रों को जानें और सीखें. इसी क्रम में पुश्किन पर यह सामग्री.मास्को से हम सेंट पीट्सबर्ग ट्रेन से पहुंचे थे. रात में. खून को […]
– हरिवंश –
लोकसभा चुनाव के पूर्व इतिहास के अनोखे नायकों, पात्रों के संबंध में हमने कुछ चीजें प्रकाशित की थीं. इस उद्देश्य से कि युवा इतिहास में चर्चित रहे, इन पात्रों को जानें और सीखें. इसी क्रम में पुश्किन पर यह सामग्री.मास्को से हम सेंट पीट्सबर्ग ट्रेन से पहुंचे थे. रात में. खून को बर्फ बना देनेवाली ठंड. थकान ऊपर से. पर इस ऐतिहासिक शहर में आने का रोमांच था. रात में ही चीजों को देखने की उत्सुकता. तीन वर्ष पूर्व की वह रात अब भी याद है, जब सेंट पीट्सबर्ग उतरते ही एलेक्जेंडर पुश्किन की याद आयी.
पुश्किन रोमांटिक कविताओं का नायक. रूस के ‘पोएट हीरो’ (कवि नायक) के रूप में पूज्य. जीनियस कवि. उल्लास, बहलता, मार्मिकता और तीक्ष्ण बुद्धि का कवि. स्वच्छंद प्रेमी के रूप में चर्चित. पर जारशाही के आतंक का शिकार, जो अंत-अंत तक अपनी कला से बंधा रहा.
रूस की नौकरशाही के खौफनाक पंजों में कैद होने पर भी पुश्किन, सृजन और सौंदर्य का उपासक रहा. रूस को आधुनिक रूप देनेवाले के रूप में चर्चित. इसकी संस्कृति, भाषा और छवि को गढ़ने और तराशनेवाले के रूप में याद किये जानेवाले पुश्किन, जिसने इतिहास पर भी लिखा. छोटी कहानियां भी.
इसी पुश्किन का अंत सेंट पीट्सबर्ग में हुआ था. बर्फ गिरने के बीच अपने प्रतिद्वंद्वी से द्वंद्व युद्ध करने के दौरान. विरोधी एथेंस ने बचाव में गोली चला दी. दो दिनों बाद पुश्किन का अंत हो गया. हाल में हिस्ट्री या डिस्कवरी चैनल पर पुश्किन की मौत पर चर्चित इतिहासकारों द्वारा निर्मित फिल्म देखी थी. रहस्य, रोमांच, षडयंत्र और उन्मुक्त प्रेम से भरा.
पुश्किन, आमतौर से रूस के सबसे बड़े कवि माने जाते हैं. रूस की भाषा और इसकी कला को मांजनेवाले. पुरातन भावों, शब्दों के साथ नये संदर्भ के भाव और भाषा गढ़नेवाले. देशज और औपचारिक शब्दों के अन्वेषक भी. पुश्किन की सरल और सहज कविताओं ने रूसी भाषा में प्रयोग का नया मानक बनाया.
कौन थे पुश्किन? अत्यंत मेधावी, तेजस्वी, पर अपरिपक्व किशोर. वह एक संपन्न और सम्मानित परिवार में जन्मे. 14 वर्ष की उम्र में (जब वह स्कूल के छात्र थे), उनका पहला कविता संकलन छपा. इसके बाद उनकी रोमांटिक कविता ‘रूसलन एंड लुडामिला’ छह वर्षों बाद छप कर आयी. इस किताब ने बिक्री, चर्चा और सफलता के सारे मानक तोड़ दिये.
तब रूस की पुरानी कविता के सबसे बुजुर्ग नायक वेस्ली जूकोवास्की जिंदा थे. उन्होंने अपने एक चित्र (पोट्रेट) पर यह लिख कर पुश्किन को भेजा ‘टू द विक्टोरियस प्यूपिल फ्रॉम द डिफिटेड मास्टर’ (विजयी शिष्य को पराजित अध्यापक की भेंट). पुश्किन ने 19 की उम्र पार नहीं की थी, पर वह रूस के घर-घर में पहुंच गये थे. अपने कृति के बल.
पुश्किन विस्मयकारी ऊर्जा से भरे थे. उनकी पहल और प्रतिभा ने रूसी साहित्य को बदल डाला. उन्होंने धर्म और शासकों के सेंसरशीप के जुए को उतार फेंका. मौलिक रचनाकार के रूप में वह छा गये. रूस की आधुनिक साहित्यिक परंपरा की नींव उन्होंने रखी. उनका चर्चित उपन्यास ‘यूजिन वनजिन’ (1825-32) के बीच आया. अनेक रूसी रचनाकार इसे अब तक का सबसे महान रूसी उपन्यास मानते हैं. यह प्रतीक कथा है. रूसी पात्र हैं. परंपरा से यथार्थ की ओर ले जानेवाली रूसी रचना. इस तरह रूसी साहित्यकार कहते हैं कि टालस्टाय, दोतोवोस्की, नावोकोव और बुल्गाको जैसे रचनाकारों ने इसी नींव पर अपनी महान रचनाएं खड़ी कीं.
इस क्रांतिकारी कवि की छवि रोमांटिक हीरो की थी. पुश्किन क्रांतिकारी गुट के सदस्य थे, जो जारशाही या आभिजात्यों के खिलाफ बगावत का सपना पाल रहा था. पुश्किन इसके सक्रिय सदस्य नहीं, पर इसके पक्षधर थे. सहानुभूति रखनेवाले. इस ग्रुप ने जारों की निरंकुशता के खिलाफ आवाज उठायी. बदलाव की गुपचुप योजना बनायी. यह ग्रुप बाद में ‘दिसंबराइटस्’ कह कर पुकारा गया. इस ग्रुप की चर्चा शराबी, जुआरी और स्वच्छंद औरत प्रेमी के रूप में भी हुई. क्योंकि रूढ़िवाद और परंपरा के खिलाफ इन्होंने विद्रोह की बात की. अनुशासन के खिलाफ बगावत और स्वच्छंदता की चर्चा की.
पुश्किन की रचनाओं ने रूसियों की चिंतन परंपरा या दृष्टि में क्रांतिकारी बदलाव लाया. पुश्किन की मौत के वर्ष भर के अंदर ही उनके एक आलोचक ने माना, हर पढ़े-लिखे रूसी के घर पुश्किन की रचनाओं का संपूर्ण संग्रह होना ही चाहिए, अन्यथा उसे शिक्षित या रूसी कहलाने का हक ही नहीं है.
रूस के निरंकुश जारों ने इस कवि के संकल्प को तोड़ना चाहा. पुश्किन के ही शब्दों में, लगातार छह वर्षों तक वह सताये गये. नौकरी से बरखास्तगी. फिर निर्वासन. पर उस निर्वासन में भी इस कवि ने अनेक प्रेम किये. तब की एक शासक रानी को भी वह दिल दे बैठे. इस प्रेम से उन्हें एक बच्चा भी हुआ. अपनी इस प्रेमिका के लिए उन्होंने एक कविता भी लिखी, ‘द टेल्समैन’ .
दिसंबराइटस् ग्रुप ने 1885 में तख्ता पलट की कोशिश की. पर विफल रहे. पुश्किन ने निरंकुश जार द्वारा इस आंदोलन के खिलाफ क्रूरता भी देखी. आजादी और मुक्ति के गीत गाने में लगे साथियों को खत्म होते देखा. लगातार एक दशक तक सेंसरशीप, निर्वासन के बाद जारशाही ने उन्हें पुचकारा. नौकरी का प्रलोभन देकर. व्यवस्था में सुधार का लोभ दिखा कर. जार ने उन्हें अपना निजी मददगार बनाया.
बादशाह की इस अयाचित कृपा ने पुश्किन को अंदर से तोड़ डाला. पुश्किन ने माना कि बादशाह की नाराजगी ने उन्हें ताकत, ऊर्जा और जीने का मकसद दिया. जार खुद पुश्किन की चीजों को सेंसर करते थे. पुश्किन लगभग गूंगेपन की स्थिति में पहुं च गये. धीरे-धीरे यह क्रांतिकारी कवि जार की अदालत का कोपभाजन बना. वह एकांत निर्वासन के लिए तड़पने लगे. पर उन्हें इजाजत नहीं मिली.
शासकों ने माना कि अब भी पुश्किन की लोकप्रियता, बारूद रहित तोप जैसी है. बारूद मिलते ही विस्फोट संभव है. इसके अलावा जार और उनके दरबार की जानी-मानी हस्तियां, पुश्किन की सुंदर पत्नी नाताल्या से सम्मोहित थे. उधर, निराश पुश्किन शराब की शरण ले रहे थे. जुए में दिल बहला रहे थे.
पुश्किन की मौत रोमांटिक मौत मानी जाती है. ‘रोमांटिक क्राइसिस’ की उपज, जो अब एक किंवदंती बन गयी है. फरवरी 1837 में फ्रांस का एक कथित आभिजात्य, नाताल्या से संबंध बढ़ाने की कोशिश कर रहा था. पर नाताल्या ने उसे नकारा, झिड़का और दुत्कारा. उसने सार्वजनिक ढंग से नाताल्या का अपमान किया. पुश्किन द्वंद्व युद्ध में कूद पड़े. एथेंस ने गोली चला दी. 38 वर्ष की उम्र में पुश्किन की मौत भी इतिहास की घटना बन गयी.
यह करिश्माई कवि, क्रांतिकारी कवि, बेचैन कवि, जो आजादी और मुक्ति के लिए लड़ा और प्रेम के लिए शहीद हुआ, रूस में ईश्वर जैसा पूज्य और चर्चित है.
मास्को के पुश्किन स्क्वायर में, पुश्किन की मूर्ति खड़ी है. जाड़े और बर्फ के दिनों में भी, टहकते और ताजे फूलों से आच्छादित. पुश्किन ने अपनी एक कविता में लिखा था, जिसका आशय है, मेरे गीत समस्त रूस में गूंजेंगे. मेरा भस्म युगों तक दमकेगा. वह फीका नहीं होगा, पीला नहीं पड़ेगा, उसका क्षय नहीं होगा. कड़कड़ाती ठंड में, मास्को के इस पुश्किन स्क्वायर से गुजरते हुए , पुश्किन की मूर्ति देखते हुए, वर्षों पहले पढ़ा यह अंश याद आया.
दिनांक : 07-06-09
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