– हरिवंश –
यह ब्लेमगेम (एक दूसरे पर दोषारोपण) का वक्त नहीं है. पर हकीकत जानने का जरूरी अवसर है. मुंबई में हुए आंतकवादी हमले के बारे में कुछ तथ्य, सिर्फ हमें जानना ही नहीं चाहिए, बल्कि याद रखना चाहिए एक भारतीय होने के नाते.अपनी ताकत : 111 करोड़ की आबादी का देश है भारत. पर 26 आतंकवादियों ने देश और सिस्टम को हाइजैक कर लिया.
अब तक (27 नवंबर, समय रात के 10 बजे) मिली सूचना के अनुसार 120 निर्दोष लोग मारे गये हैं. 307 जख्मी हैं. 24 घंटे हो गये. अभी तक जंग जारी है. आतंकवादियों से लड़ने के लिए बनी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) के तीन बड़े अफसर या सवेसर्वा भी मार डाले गये.
बहादुर एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने खुद एनकाउंटर लीड किया. वह सच्चे अर्थों में पुलिस की अगुवाई करनेवाले अफसर थे. बैकग्राउंड या बैकरूम में रह कर उन्होंने आदेश जारी नहीं किया. अपने साथियों को खुद लीड किया. सीने में गोली खायी.
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर भी मारे गये. डीआइजी अशोक कामते भी शहीद हुए. इस तरह देश ने कुल पांच बहादुर अधिकारियों को खोया. कुल 16 पुलिसकम मारे गये. आतंकवादियों के बारे में आरंभिक सूचना थी कि वे 26 लोग थे. 4 मारे गये, 9 गिरफ्तार हुए और 13 गाड़ी में बैठ कर चंपत हो गये.
सच यह है कि मुंबई पुलिस 26 लोगों को टैकल (निबट) नहीं कर सकी. एलीट एटीएस फोर्स लगायी गयी. उसकी टॉप टीम मारी गयी. मुंबई में 11 जगहों पर हमला करने और यह सब करने के बाद कुछ आतंकवादी भाग भी गये. अंतत: टॉप एलीट फोर्स एनएसजी (नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स) बुलायी गयी. फिर सेना बुलायी गयी.
सेना, जो बाहरी हमलों के लिए बनी है. सेना के जीओसी (जनरल अॅाफिसर कमांडिंग) को आना पड़ा.
पर अब तक आतंकवादी बेकाबू हैं. इतना ही नहीं, आतंकवादियों ने मुंबई पुलिस की पीली बत्ती गाड़ी अगवा किया. उसमें बैठे और गोली चलाते हुए गये. यह दृश्य देख कर वहां के एक जाबांज मंत्री की बात याद आयी.
गोली का जवाब गोली से देंगे. पर आतंकवादियों के सामने मुंबई पुलिस की गोली गायब थी. साफ है कि एक आतंकवादी हमले में पुलिस, एटीएस, एनएसजी, मिलिट्री सबको उतरना पड़ा.
इससे भारतीय राज्य व्यवस्था (स्टेट पावर) अपनी ताकत समझ सकता है. कम से कम जनता के मन में यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि हमारा सिस्टम कैसा है? हमारी ताकत कितनी है? हममें कितनी इफीसियेंसी है? 111 करोड़ के देश की कितनी अंदरुनी ताकत है?
अत्यंत दयनीय हाल में है, हमारा पूरा तंत्र, व्यवस्था और राजकाज. सिर्फ 11 महीनों में ही (1 जनवरी से 26 नवंबर, 08 तक) सवा तीन सौ निर्दोष लोग आतंकवादियों द्वारा मारे गये हैं.
पिछले चार वर्षों में लगभग 18 से अधिक बड़ी घटनाएं हुई हैं, पर एक आतंकवादी को अब तक सजा नहीं मिली? पिछले चार-पांच वर्षों में हजारों बेकसूर मारे गये. मुंबई पर यह तीसरा हमला हुआ. बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से लेकर भारत के अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों पर हमले हुए. पर अब मुंबई की ताजा घटना के बाद सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का बयान आता है कि लोगों की सुरक्षा सबसे ऊपर है?
क्या यह मजाक नहीं लगता? इन लोगों को यह भी धमकी देने में शर्म नहीं आती है कि आतंकवादियों को सबक सिखायेंगे. आखिर कितने हजार लोगों की कुरबानी के बाद यह सबक सिखाया जायेगा? देश के भाग्य विधाता बने लोग जब कहते हैं, मुंबई में शहीदों की शहादत बेकार नहीं जायेगी, तो यह सुन कर अजीब लगता है.
यही लोग जो स्टेट पावर को कमजोर, अराजक और लुंजपुंज बनाने के जिम्मेदार हैं, वे मुंबई घटना के बाद कहते हैं, शहीद पुलिसवालों को सलाम, तो उनकी बात पर यकीन नहीं होता. ऐसी दयनीय स्थिति क्यों? इसका उत्तर भारत के नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजर ने मई, 2008 के आरंभ में दिया था. कैबिनेट के सामने. वह इंटेलीजेंस जार के रूप में जाने जाते हैं.
अत्यंत दक्ष और कुशल अफसर. उन्होंने जो कुछ कहा, उसका आशय है. यह सब गवर्नेस कोलैप्स (शासन के ध्वस्त) होने के कारण है. बड़े अफसरों में तालमेल नहीं है. सूचनाएं नहीं मिलती.
वगैरह-वगैरह. मुंबई घटना के बाद आज देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति कह रहे हैं कि खुफिया तंत्र मजबूत करेंगे. कैबिनेट के सामने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जब अप्रैल-मई में यह जानकारी दी, तो क्या कदम उठाये गये?
शायद पहली बार आजाद भारत में इस तरह पूरी कैबिनेट के सामने यह स्थिति बतायी गयी और उसके बाद भी हमले पर हमले हो रहे हैं? क्या जवाबदेही है, राजकाज चलानेवालों की? यह सब इंटेलिजेंस जार ने जयपुर विस्फोट के बाद कहा था.
पर क्या कार्रवाई हुई? यह कोई नहीं जानता. इसके बाद अनेक विस्फोट हुए. एक विस्फोट के बाद सूचना आयी. गृह मंत्री ने दो घंटे में तीन बार सूट बदला. अमेरिका में 9/11 हुआ. ब्रिटेन में भी धमाके हुए. पर उसके बाद उग्रवादी वहां दोबारा कुछ नहीं कर सके. पर भारत की स्थिति? लगातार और लगातार विस्फोट. न डर, न भय, न किसी का खौफ.
इस बार हुए मुंबई विस्फोटों में भी राजसत्ता की कमजोरी जाहिर हो गयी है. सूचना है कि पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते आये आतंकवादियों की सूचना मछुआरों ने पुलिस को दे दी थी. इस सूचना के बाद इतना बड़ा हादसा हो गया. आखिर कौन जिम्मेदार है?
सूचना मिलने के बाद इतनी बड़ी घटना? यही प्रमाण है स्टेट के कोलैप्स (ध्वस्त) हो जाने का. यह है भारत की अंदरुनी स्थिति. कम से कम एक-एक नागरिक को यह हकीकत जान लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे हमलों में बड़े नेता नहीं मारे जाते. इस बार तो मुंबई में आतंकवादियों ने हद कर दी. अस्पताल जाकर मरीजों को मारा.
घूम-घूम कर बेगुनाहों को भूना. टीवी पर कुछ आतंकवादियों के चेहरे बार-बार दिखाये गये. उनके चेहरे और भाव बता रहे थे कि वे कितने क्रूर हैं? खौफनाक मुस्कान और चेहरे पर चिढ़ाने का भाव? जो आतंकवादी जिंदा पकड़े गये हैं, उन्हें सजा न मिले, यह मांग उठ सकती है. यह इस देश में ही संभव है?
भारत की इतनी दयनीय स्थिति क्यों?
भ्रष्टाचार : इसने भारत को खोखला कर दिया है. भारत का शासक वर्ग बेचू और कमाऊ हो गया है. वह बिकता है और उसने भारत की राज्य व्यवस्था (स्टेट पावर) को बिकाऊ बना दिया है. 1993 में मुंबई में हुए बम विस्फोट. मकसद था, भारत की आर्थिक राजधानी को तबाह करना. जांच कमेटी बनी. पता चला कि बाहर से जो विस्फोटक आरडीएक्स आये, वे कस्टम और पुलिस के बिके हुए अफसरों के संरक्षण में आये.
यानी बाड़ खेत खाने लगे जैसी स्थिति. जिन पर सुरक्षा और राजकाज चलाने का दायित्व है, वे ही राज्य हित को बेचने लगें, तो क्या होगा? पर यह पुलिस या कस्टम या सरकारी विभागों का दोष नहीं है. दोष है, नेतृत्व का.
याद करिए, नरसिंह राव कार्यकाल में हुए आतंकवादी विस्फोटों के लिए जांच कमेटी बनी. तत्कालीन गृह सचिव एनएन बोरा के नेतृत्व में. बोरा कमिटी की क्लासिक रिपोर्ट आयी, जिसका आशय था, नेताओं, भ्रष्ट अफसरों, दलालों और अपराधियों के गंठजोड़ से बनी स्थिति बेकाबू हो गयी है. यह रिपोर्ट इतनी विस्फोटक थी कि इसे दबा दिया गया.
और आज हालत यह है कि देश का नेतृत्व, अब लोगों को इंस्पायर (प्रेरित) नहीं करता. चाहे शासन किसी दल का हो. ऐसी घटनाओं के बाद जब प्रधानमंत्री या बड़े नेता कहते हैं कि यह धैर्य रखने का वक्त है. एकजुट रहने की घड़ी है, तो जनता के पास मौन आक्रोश और गुस्से की प्रतिक्रिया ही हो सकती है.
दरअसल राजनीतिक नेतृत्व ही देश की रहनुमाई करता है. वह संकट की घड़ी में देश को ताकत देता है. पर आज रहनुमाई करनेवालों का चाल-चरित्र बदल गया है. इन्होंने भारत को सॉफ्ट स्टेट बना दिया है. आज पंजाब में क्या हो रहा है? प्रधानमंत्री के साथ चार दिनों पहले पुलिस महानिदेशकों की बैठक हुई.
पंजाब के पुलिस महानिदेशक ने सवाल उठाया कि आज पंजाब में अमन चैन है. पर अमन चैन कायम करनेवाले 300 पुलिस जवान जेलों में हैं और 3000 पुलिसकर्मियों पर मुकदमे चल रहे हैं. कोई उनकी पीड़ा सुननेवाला है? क्या देश के लिए लड़नेवाले और पंजाब को बचानेवालों के साथ यही सलूक होना चाहिए?
धर्म और आतंकवाद : अब स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं है. कुछेक लोग इसे एक कौम या धर्म से जोड़ कर देखते हैं.
निजी राजनीतिक लाभ के लिए. यह गलत है. जानिए कि अफगानिस्तान या पाकिस्तान इस आतंकवाद से कितने और कैसे परेशान हैं? वे खुद यह जंग लड़ रहे हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान से लेकर सेंट्रल एशिया के देशों तक मुसलमानों का बहुसंख्यक तबका आतंकवादियों से त्रस्त है. रोजमर्रा की जिंदगी में वे भी ऐसी ही जंग लड़ रहे हैं.
मुंबई के भारतीयों ने (मुसलमान, हिंदू, क्रिश्चियन, पारसी सभी) जिस तरह विभिन्न चैनलों पर आकर आतंकवाद के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया, यही भारत की ताकत है. आतंकवाद सबके लिए खतरा है. इसलिए अनावश्यक आपसी मतभेद की जगह एकजुट होकर आतंकवाद से लड़ने का समय है यह.
विश्व प्रभाव : भारत पर इन आतंकवादी हमलों के क्या असर होंगे? इसके तात्कालिक और दूरगामी गहरे परिणाम होंगे. यह सुनियोजित हमला था. भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर. यह हमला तीसरी बार हुआ है. पहली बार 1993 में मुंबई बम विस्फोट हुए. सैकड़ों लोग मारे गये. जांच से स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते विस्फोटक आये. दाऊद इब्राहीम की मुख्य भूमिका रही.
दूसर बड़ा हमला मुंबई की लोकल ट्रेनों में बम विस्फोट द्वारा हुआ. बमुश्किल दो वर्ष पहले. यह तीसरा बड़ा हमला है. मुंबई, सिर्फ आर्थिक राजधानी ही नहीं है. कभी न सोनेवाला यह शहर आधुनिक भारत का प्रतीक भी है. लाख राज ठाकरे हों, पर धर्म, जाति, क्षेत्र से ऊपर उठ कर मुंबइया लोग एक भिन्न जीवन जीते हैं.
मुंबई की इस स्प्रिट (ओज) को लोग ‘सलाम मुंबई’ कहते हैं. बाहर से गये लोग भी कुछ ही दिनों बाद ‘मुंबई मेरी जान’ कहने लगते हैं. दरअसल यह आधुनिक भारत के उस स्प्रिट पर हमला है. मुंबई के बहाने. मुंबई पर इस हमले से बाहरी पूंजी का प्रवाह थमेगा. ब्रिटेन की क्रिकेट टीम ने गुवाहाटी जाने से इनकार कर दिया है. पहली बार कोई टीम दौरा छोड़ कर बीच में लौट रही है.
चैंपियंस लीग रद्द हो गया है. आस्ट्रेलिया ने भारत में वीसा देने के खिलाफ पहल की है, यानी वह अपने लोगों को भारत नहीं आने देना चाहता. मुंबई के सबसे बड़े दो होटलों ताज और ओबेराय में हमले के पीछे मकसद साफ है. विदेशी पर्यटक भारत न आये.
कुछ ही दिनों में आप पायेंगे, अमेरिका, यूरोप या इस्राइल के देश, अपने-अपने नागरिकों को भारत आने से बरज रहे हैं, मना कर रहे हैं. अगर भारत खुद यह युद्ध नहीं लड़ सकता, तो वह दुनिया में अलग-थलग पड़ जायेगा.
पाकिस्तान : आरंभिक सूचनाओं के अनुसार सभी आतंकवादी पाकिस्तान से आये हैं. स्पष्ट है उन्हें काफी समय से प्रशिक्षण दिया गया होगा.
यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तानी सरकार की इसमें क्या भूमिका है? पर हालात के अनुसार निष्कर्ष यह है कि उग्रवादी वहां की सरकार की नहीं सुन रहे. वे बेकाबू हैं. उन्हें उग्रवादियों का अंतरराष्ट्रीय गिरोह संरक्षण दे रहा है. उन्हें सुरक्षित मुंबई तक पहुंचाया गया होगा. एक आतंकवादी के पास सैटेलाइट फोन होने की सूचना भी आयी. यह भी कहा गया कि सीमा पार से सैटेलाइट फोन से वह बात कर रहा था.
प्रधानमंत्री के बयान से भी संकेत स्पष्ट है. इतने स्पष्ट प्रमाण के बाद क्या फिर भी भारत चुप बैठेगा? असहाय बना रहेगा? कश्मीर में पाक प्रशिक्षित उग्रवाद की भूमिका साफ है. 1993 में मुंबई धमाके में पाकिस्तान की भूमिका प्रमाणित हो चुकी है. दाऊद वहीं रह रहा है.
एनडीए शासन काल में जहाज अपहरण में आतंकवादियों को छोड़ कर भारत ने अपनी कमजोरी का परिचय दिया. इसके पहले वीपी सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में सईद रूबिया प्रकरण हुआ. वह तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं. आतंकवादियों से उन्हें छुड़ाने के लिए सरकार ने घुटने टेके. बड़े पदों पर बैठे लोग अगर इस तरह कमजोर और लाचार दिखाई देंगे, तो आम जनता का यही हाल होगा.
क्या हो सकता है? : दो स्तर पर तत्काल कदम उठाये जा सकते हैं. समयबद्ध.
1) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर –
1. भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान सरकारी स्तर पर आपसी सहमति बनायें. उग्रवादियों के खिलाफ युद्ध स्तर पर कार्रवाई शुरू करें.
2. आतंकवादियों से लड़ने में पटु, माहिर और दक्ष पश्चिमी देशों से मदद ले.
3. हाल ही में चीन ने अपने उत्तरी प्रांतों में सख्ती से ऐसी चीजों को कुचल डाला. इन देशों से हम सीख सकते हैं.
2) देश में जो चीजें हो सकती हैं.
1. कश्मीर में सीमा पर उग्रवादियों के खिलाफ समयबद्ध ठोस अभियान.
2. आतंकवाद पर राजनीति बंद हो. इस पर ठोस अभियान शुरू हो. भाषण, प्रवचन या आरोप-प्रत्यारोप का दौर गया.
3. सख्त कानून बने. विलासराव देशमुख आज फेडरल एजेंसी की बात कह रहे हैं. 2003 के बाद हुए दर्जनों हमलों के बाद फेडरल एजेंसी बनाने की बात होती रहती है. अब बात नहीं, काम हो. कदम उठाये जायें.
4. दीर्घकालीन रणनीति बननी चाहिए. वह संभव है. सिस्टम को चुस्त-दुरूस्त कर. ईमानदार, इफिसियेंट अफसरों को बढ़ावा देकर. उन्हें सुविधाएं देकर.
6. सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त अभियान चले. अपराधियों का प्रश्रय बंद हो. वरना बेइमानों की राजनीति चली, खरीदारों की राजनीति चली, चरित्र और अनुशासन की कीमत पर दलालों की राजनीति चली, तो भारत बंट जायेगा. टूट जायेगा. बिखर जायेगा.
दिनांक : 28-11-08