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बाबा आमटे की स्मृति-3 : गांवों को स्वायत्त व आत्मनिर्भर बनाने का सपना साकार किया
– हरिवंश – आरंभ से ही बाबा ने कहीं हाथ न फैलाने का निर्णय किया था. अद्भुत बात तो यह है कि साये की तरह गंभीर बीमारियों ने कभी बाबा का पीछा नहीं छोड़ा. देश-विदेश में करीब छोटे-बड़े सोलह ऑपरेशन हो चुके हैं. वह तो लेटे रह सकते हैं या खड़े, बैठ नहीं सकते. फिर […]
– हरिवंश –
आरंभ से ही बाबा ने कहीं हाथ न फैलाने का निर्णय किया था. अद्भुत बात तो यह है कि साये की तरह गंभीर बीमारियों ने कभी बाबा का पीछा नहीं छोड़ा. देश-विदेश में करीब छोटे-बड़े सोलह ऑपरेशन हो चुके हैं. वह तो लेटे रह सकते हैं या खड़े, बैठ नहीं सकते. फिर भी बाबा का संकल्प, मनोबल रत्ती भर भी प्रभावित नहीं हुआ.
वस्तुत: बाबा उत्फुल्ल जीवन के पर्याय हैं. जीवन से निराश और बुझे लोगों में उनकी उपस्थिति ही जीवंतता का एहसास भरती है. हर सुबह वह आनंदवन में रोगियों, उसके बच्चों और निराश बूढ़ों के बीच पहुंचते हैं. उनकी बेलौस, स्नेहभरी पुकार सुन कर सभी रोगी बच्चे आह्वादित हो जाते हैं.
आज आनंदवन में मानवीय संकल्प, श्रम और दृढ़ इच्छा से नयी और स्वस्थ दुनिया बस गयी है. बाबा अक्सर कहते हैं और आगंतुक आश्रम में पैर रखते ही महसूस करते हैं कि आनंदवन में असली संक्रामक रोग आनंद का है.
आनंदवन के वातावरण में अद्भुत ताजगी और प्रसन्नता है. आज भारत के कोने-कोने से करीब 3500 लोग यहां आकर रह रहे हैं. अपनी आवश्यकताओं के लिए वे बाहरी दुनिया पर निर्भर नहीं हैं. नमक और केरोसिन छोड़ कर सभी चीजों के लिए ये आत्मनिर्भर हैं. वस्तुत: बाबा को न यश का लोभ है, न सत्ता की चाह और न भौतिक उपलब्धि की आकांक्षा. वह कर्मयोगी हैं. इस कारण देश में उनके अद्भुत कामों से बहुत लोग वाकिफ नहीं हैं.
बाबा ने महज कुष्ठ रोगियों में ही नयी रोशनी नहीं दी है, बल्कि ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था के कायाकल्प के लिए एक वैकल्पिक व व्यावहारिक विकास तकनीक भी ईजाद की है. गांधी ने गांवों को स्वायत्त और आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा था, बाबा ने यथार्थ के धरातल पर उसे साकार किया है. आनंदवन में बसे कुष्ठ रोगी अलग-अलग उद्योगों में लगे हैं. खेती, राजगीरी, कताई, बुनाई, धुलाई आदि से यह पथरीला जंगली भूखंड साक्षात आनंदवन बन गया है.
समाज के बहिष्कृत, अपंग और रोगी कुल राष्ट्रीय उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान करें, यह आर्यजनक उपलब्धि है. जो समाज पर भार बने रहते थे, वे अस्वस्थ लोग (आर्थिक शब्दावली में सिक सेक्टर) स्वस्थ-समाज को बहुत कुछ दे रहे हैं. बाबा का आदर्श वाक्य है, ‘श्रम से सृजन होता है और दान नष्ट करता है’.
आनंदवन से स्वस्थ होकर लौटेनवाले रोगी कुशल और दक्ष कारीगर बन कर लौटते हैं. बड़े-बड़े भवनों का निर्माण, देसी तकनीक का विकास, छपाई, चप्पल, जूता, कपड़े आदि का निर्माण, सिलाई, बुनाई जैसे असंख्य काम यहां के लोग करते हैं, जिनकी अंगुलियां, हाथ का शरीर साबुत नहीं है.
बाहर की दुनिया में जिन कार्यों के लिए विदेश पलटे दक्ष व्यक्तियों की तलाश होती है, आनंदवन में ये काम बहुत ही कलात्मक व सुरुचिपूर्ण ढंग से तथाकथित सभ्य समाज में घृणास्पद समझे जानेवाले ये लोग करते हैं.
अभागों के भाग्य विधाता के रूप में बाबा की करुणा पूरी ऊर्जा के साथ आज भी क्रियाशील है, जबकि उनका शरीर अनेक व्याधियों से ग्रस्त है और उम्र भी शरीर को सचेत करने लगी है.
1951 में महारोगी सेवा समिति की कुल वार्षिक आय 12,907 रुपये थी. 1981-82 में यह बढ़ कर 7,214,349 रुपये हो गयी. इस आय का बड़ा हिस्सा आश्रम के रोगियों के उपार्जन से आता है. बाहरी और सरकारी सहायता आश्रम की कुल आय की एक तिहाई है.
बाबा आपकी ऊर्जा-संक्रामक आत्मविश्वास का उत्स कहां है? वह खिलखिला कर हंसते हैं और जवाब देते हैं, ‘परसूट अलोन इज माय स्ट्रेंथ’ (अकेले तलाश ही मेरी एकमात्र शक्ति है) आगे कहते हैं- जिसकी प्रतियोगिता स्वयं से है, उसे जीतनेवाला कौन है?
अगर बाहरी आय बंद हो जाये तो. इस सवाल के जवाब में हमेशा उत्फुल रहनेवाले बाबा कहते हैं –
‘पूंजी प्रधान कार्य मसलन, सड़क निर्माण, बड़े भवनों के निर्माण जैसे काम प्रभावित होंगे,’ मुदित बाबा कहते हैं, ‘आनंदवन’ में कुओं की खुदाई के दौरान जो पसीना बहा है, वह उनमें उपलब्ध पानी से अधिक है. खूबसूरत पार्क, करीने से लगी बागवानी, फूलों की खेती, कृत्रिम जंगल, तरह-तरह के गुलाब ‘आनंदवन’ की शोभा बढ़ा रहे हैं.
सब्जी उगाने, डेयरी फॉर्म, फसलों के उत्पादन आदि जैसे अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग खाते हैं. ‘एकाउंटिंग’ के लिए लिए भी यहां चार्टर्ड एकाउंटेंट या प्रबंधन के लिए अहमदाबाद-बेंगलूर से प्रशिक्षित प्रबंधक नहीं हैं. हर यूनिट का अलग खाता है और हिसाब ‘अपटूडेट’.
ये तकनीकी काम करनेवाले भी आश्रम में रह रहे स्वस्थ रोगी ही हैं. ‘आनंदवन’ में रोग के इलाज के साथ ही वह रोगियों में खोये आत्मसम्मान-आत्मविश्वास को लौटाने के काम को तरजीह देते हैं. स्वस्थ रोगियों के लिए, आश्रम में ही अनेक कम्यून बने हैं, एक कम्यून में औसतन पच्चीस परिवार रहते हैं.
यहां हर चीज की व्यवस्था है. खुद कम्यूनवासी अपनी हर आवश्यकता की भरपाई करते हैं. तकरीबन 2000 कुष्ठ रोगी उपचार के लिए आश्रम में हैं. 4000 लूले-लंगड़े, मानसिक रूप से अविकसित लोगों के लिए भी आश्रम में अलग-अलग व्यवस्था है.
अंधों के लिए अलग स्कूल है, कुष्ठ रोगियों ने इसे बनाया और सजाया-संवारा है. इसमें छह शिक्षित अंधे अध्यापक पुराने कुष्ठरोगी हैं, अब स्वस्थ हो गये हैं. विवाहित रोगियों के लिए सुख सदन है.
(जारी)
दिनांक : 04-03-08
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