बुजुर्ग यह शिकायत करते हैं कि उनके बच्चों ने उन्हें घर से बेदखल कर दिया है. उनके साथ कोई समय बिताने को तैयार नहीं हैं गौर करें, तो पायेंगे कि इसके लिए वे खुद ही जिम्मेवार हैं. उन्होंने शुरुआत से ही बच्चों को केवल पढ़ो-पढ़ो कह कर ऐसी शिक्षा हासिल करने पर मजबूर कर दिया, जिसने उन्हें एक अच्छा कैरियर बनाने में तो मदद कर दी, लेकिन उन्हें एक आदर्श नागरिक या आदर्श बेटा-बेटी नहीं बना सका. उनमें मानवता और सहिष्णुता जैसे गुण नहीं भर सका.
बुढ़ापा, जिसे जीवन का सांध्यकाल भी कहा जा सकता है. एक ऐसी अवस्था होती है, जब किसी तरह की सुख-समृद्घि से अधिक आवश्यकता अपनों के साथ की होती है.उम्र के इस ढलते पड़ाव में कोई साथ बैठ कर दो बातें करनेवाला मिल जाये, यही बहुत होता है. यह बात जरूर है कि इस उम्र में जब हमारा शरीर जवाब दे देता है, तो देखभाल के लिए लोगों की जरूरत पड़ती है़ यह देखभाल तो ‘ओल्ड एज होम’ में भी मिल जाती है, लेकिन क्या अपनों के साथ की भरपाई कोई कर सकता है? शायद नहीं.
इस उम्र में बहुत से लोग यह शिकायत करते हैं कि उनके बच्चों ने उन्हें घर से बेदखल कर दिया है. उनके साथ कोई समय बिताने को तैयार नहीं है. यदि इस मसले पर गौर करें, तो पायेंगे कि कहीं-न-कहीं इसके लिए वे खुद ही जिम्मेवार हैं. उन्होंने शुरुआत से ही बच्चों को केवल पढ़ो-पढ़ो कह कर ऐसी शिक्षा हासिल करने पर मजबूर कर दिया, जिसने उन्हें एक अच्छा कैरियर बनाने में तो मदद कर दी, लेकिन उन्हें एक आदर्श नागरिक या आदर्श बेटा-बेटी नहीं बना सका. उनमें मानवता व सहिष्णुता जैसे गुण नहीं भर सका.
इसलिए आज के यंग पैरेंट्स को भी चाहिए कि वे अभी से ही बच्चों को सही दिशा में शिक्षा दें. बुढ़ापे में जो चीज सबसे ज्यादा परेशान करती हैं, वह है डिप्रेशऩ इसकी वजह यह होती है कि शरीर के जवाब देने के साथ, करीबी भी जवाब दे देते हैं. वे एकदम अकेले पड़ जाते हैं. अकेलापन उन्हें अंदर-ही-अंदर खाने लगता है. कई बार बुजुर्ग अपनी आदतों की वजह से परेशान होते हैं. यदि वे अपने स्वभाव में चिड़चिड़ापन लाने से बचें और परिवार के सदस्यों के साथ उनकी उम्र के अनुसार उनसे बातें करें, तो पारिवारिक सदस्यों से अच्छा संबंध बना रहेगा. उसी प्रकार बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी से प्यार खोजते हैं. उनके साथ यदि प्यार-दुलार से पेश आयें. उनका ठीक तरह से मार्गदर्शन करें, तो वे बुढ़ापे का सहारा बन जाते हैं.
इससे बच्चों को भी लाभ मिलता है. चिड़चिड़ापन ढलती उम्र में बहुत ज्यादा होता है. इससे बचने का सबसे सरल उपाय है, छोटे-मोटे आसन व व्यायाम करना. ध्यान लगाने से भी मन को बहुत हद तक राहत मिलती है.
पार्क में सैर के लिए जाना, हम उम्र लोगों को ढूंढ़ कर उनके साथ हंसने व ठहाके लगाने से भी मन खुश रहता है. बुजुर्गो को एक बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि वे अनावश्यक अपनी बात बच्चों पर न थोपें. इससे उनका मोल कम होने लगता है. यह स्वीकार करें कि आपके व बच्चों के समय में अंतर है. उनकी जरूरतें व काम करने का तरीका आपसे अलग हो सकता है. बेहतर होगा, बहती धारा के साथ चलें. इससे चेहरे की झुर्रियां मन तक नहीं पहुंचेगी. कहते हैं न कि चलता आदमी और दौड़ता घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता.