28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

करेले की खेती से बदली किसानों की दशा

मणिचयन, रामगढ़ करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों किसानों की जिंदगी में करेले ने मिठास घोल रहा है. इन दिनों इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर करेले का निर्यात हो रहा है. हो भी क्यों नहीं, इस क्षेत्र के किसान पूरी मेहनत से इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते […]

मणिचयन, रामगढ़

करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों किसानों की जिंदगी में करेले ने मिठास घोल रहा है. इन दिनों इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर करेले का निर्यात हो रहा है. हो भी क्यों नहीं, इस क्षेत्र के किसान पूरी मेहनत से इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. इससे इनकी आमदनी भी खूब होती है. हंसडीहा के पास रामगढ़ मोड़ पर दिन भर करेले का निर्यात किया जाता है. यहां रोजाना दर्जनों टन करेला बिहार, झारखंड व बंगाल के विभिन्न शहरों में भेजा जाता है.

इन गांवों में होती है खेती

सिलठा, सिलफर, परमा, कपाटी, भालसुमर, पहाड़पुर, सूड़ी गम्हरिया, भाटीन, मजडीह, विशनपुर, सिमरा जैसे कई गांव हैं, जहां करेले की खूब खेती होती है.

सुबह से जुट जाते हैं व्यवसायी

करेला खरीदने के लिए इन गांवों में छोटे बड़े ट्रकों के साथ व्यवसायी अहले सुबह ही पहुंच जाते हैं. हंसडीहा के पास रामगढ़ मोड़ इन दिनों इसकी सबसे बड़ी मंडी बन गयी है.

सावन से होता है उत्पादन

करेले की फसल देने का सबसे सुंदर समय है सावन. इसी महीने से किसान करेला तोड़ना शुरू कर देते हैं. यह सिलसिला दुर्गा पूजा तक निरंतर जारी रहता है. एक मौसम में एक-एक किसान करीब एक-एक लाख रुपये का करेला बेचता हैं. करेले की खेती वर्तमान समय में यहां के किसानों के लिए आमदनी का बड़ा जरिया बन गयी है.

मई से शुरू होती है खेती

मई महीने से ही किसान करेले की खेती करना शुरू कर देते हैं. पौधा लगने के एक से डेढ़ महीने बाद ही वह फसल देना शुरू कर देता है. इसके बाद शुरू हो जाता है इसका व्यवसाय.

जीवन स्तर में आया सुधार

एक समय था जब यहां के किसान जागरूकता की कमी के कारण साल में एक ही फसल लगाया करते थे. लेकिन जब वर्षा जल के अभाव के कारण उनकी खेती बिगड़ने लगी तो जागरूक हुए और सब्जी की खेती करनी शुरू की. मौसमी खेती कर यहां के किसान साल में तीन फसल लगा कर कमाई कर लेते हैं, जो धान की खेती से तीन गुनी होती है. इससे क्षेत्र के किसानों का जीवन स्तर भी सुधरा है. काफी हद तक लोग जागरूक हुए हैं. शिक्षा के प्रति भी इनका झुकाव बढ़ा है. मजडीहा के किसान दिलीप मंडल, मनोज मंडल, भिखारी मरीक, श्रवण मंडल, इटबंधा के प्रदीप यादव, सिलठा के लोबिन मंडल बताते हैं कि मेहनत की कमाई हम खाते हैं. सब्जी की खेती में मेहनत की लागत लेते हैं. हालांकि जिस अंदाज से कमाई होनी चाहिए नहीं हो पाती है.

बंजर जमीन पर ला रहे हरियाली

जब से किसानों का झुकाव मौसमी खेती की ओर हुआ है तब से यहां की जमीन भी हरियाली को गोद लिये हुए है. जो जमीन कुछ साल पहले बंजर थी, वहां अब हरियाली आ गयी है. आय बढ़ने से शिक्षा का स्तर भी बढ़ा है. यहां के बच्चे बड़े शहरों में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं और ऊंचे पदों पर आसीन भी हो रहे हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें