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फिर इतिहास बनाते जापानी

– हरिवंश – हम भारतीयों के लिए जापान के सबक क्या हैं? अनेक और असंख्य. सब कुछ सरकार भरोसे. माई-बाप सरकार. उधर विपक्ष ऐसी स्थिति में, सरकार को ऐसी प्राकृतिक तबाही के लिए जिम्मेवार बताने में सारी ऊर्जा लगा देगा. प्रभावित लोग छाती पीट-पीट कर राहत-मदद की बात करेंगे. केंद्र, राहत पर नयी राजनीति शुरू […]

– हरिवंश –
हम भारतीयों के लिए जापान के सबक क्या हैं? अनेक और असंख्य. सब कुछ सरकार भरोसे. माई-बाप सरकार. उधर विपक्ष ऐसी स्थिति में, सरकार को ऐसी प्राकृतिक तबाही के लिए जिम्मेवार बताने में सारी ऊर्जा लगा देगा. प्रभावित लोग छाती पीट-पीट कर राहत-मदद की बात करेंगे.
केंद्र, राहत पर नयी राजनीति शुरू कर देगा. राज्य सरकारें, केंद्र को कठघरे में खड़ा करने का अभियान चलायेंगी. लाश पर राजनीति. जापान के इस दुर्भाग्य में कहीं आपने यह सब सुना?
संचार-सूचना, टीवी और प्रिंट मीडिया के विस्तार-विस्फोट ने दुनिया को एकसूत्र में बांध दिया है. यह ग्लोबलाइजेशन का सकारात्मक पक्ष है. संसार के एक कोने के दृश्य, दूसरे कोने को स्पर्श करते हैं. छूते हैं.
25 मार्च को कोलकाता प्रभात खबर में छपी एक तसवीर को देख कर एक मित्र ने फोन किया. पूछा, आपने तसवीर देखी? फिर कहा, यह देख कर लगता है कि जापान का आत्मबल और स्वाभिमान क्या है? तसवीर जापान से जुड़ी थी. दो तसवीरें एक साथ छपीं थीं. एक 17 मार्च 2011 की. ठीक उसके साथ, उसी जगह की 23 मार्च 2011 की दूसरी तसवीर. पहली तसवीर में दृश्य था, 11 मार्च को जापान में आये भूकंप और सुनामी के बाद जापान के नाका में तबाह राष्ट्रीय राजमार्ग का. खंडहर में तब्दील सड़क. दरारें. धरती फटी हुई. बड़े-बड़े गड्ढे.
इस तसवीर के बगल में इसी सड़क की तसवीर छपी है, 23 मार्च की. राष्ट्रीय विपदा की इस घड़ी में जापान ने 17 मार्च से इस सड़क का पुनर्निर्माण शुरू किया. 23 मार्च तक वहां सड़क सुंदर, साफ-सुथरी दिखती है. मानो कुछ हुआ ही नहीं था. जिन बाहरी दर्शकों ने देखा, उन्हें यकीन नहीं हुआ कि 10 दिनों पहले यह सड़क किस रूप में थी? प्रकृति के कहर-कोप पर मानव विजय का प्रतीक व साक्षात उदाहरण.
देश के पूर्वी छोर (कोलकाता) से जापान पर यह टिप्पणी थी, तो दूसरे छोर पश्चिम (गुजरात) से एक मित्र ने एक सप्ताह पहले एक एस एम एस भेजा. टीवी पर जापान के दृश्यों को देख कर और अखबारों में पढ़ कर. संदेश था, कि पूरी दुनिया, टीवी और अखबारों में जापानी जनता का धैर्य-संयम और साहस देख रही है. दुनिया की सबसे प्रलयकारी प्राकृतिक विपत्ति के बावजूद कोई हाहाकार नहीं, न छाती पीटते या आत्मरुदन करते जापानी. न क्रोध, न लूट पाट, न दया भाव, न याचना. कतारों में धैर्य के साथ खड़े जापानी, जिनका सब कुछ लुट गया है.
जो भी थोड़ी-बहुत राहत या सामग्री मिलती है, उसे ही आपस में धैर्यपूवर्क बांटते हैं, लोग. चेहरे पर संतोष के भाव. पर भविष्य की चुनौतियों से निबटने के लिए संकल्प से परिपूर्ण. यह राष्ट्रीय चरित्र है, जापान का. इस संदेश के बाद इस मित्र का सुझाव था कि ईश्वर से चुपचाप प्रार्थना करिए कि वह दुनिया में इस चरित्र, स्वाभिमान, धैर्य और संकल्प वाली जापानी कौम के प्रति दया-ममता दिखायें. धैर्य, बल और साहस दें. ऐसे लोगों की तादाद संसार में बढ़े.
25 मार्च की ही दूसरी खबर है. जापान के स्टाक एक्सचेंज के माध्यम से दुनिया के निवेशकों ने एक सप्ताह में 1.2 बिलियन डॉलर जापान में निवेश किया है. सात दिनों में विदेशी निवेश का यह रिकार्ड है. दुनिया के निवेशक इस बात पर सहमत हैं कि जापान का यह संकट, महज एक विराम है. जापानी इस संकट से और मजबूत हो कर उबरेंगे. मशहूर कहावत है कि हर संकट-विपत्ति में एक अवसर भी छुपा होता है. दुनिया के निवेशक मान रहे हैं कि जापानी लोगों ने बड़ी-बड़ी बातों या घोषणाओं से नहीं, अपने कर्म, फर्ज और धीरज से साबित कर दिया है कि वे खंडहर से भी उठ खड़े होंगे.
भारत में मशहूर लोक कहावत है, संकट में ही चरित्र और धैर्य की परख होती है. जापान ने यह साबित कर दिया है. जापान की इस विपत्ति पर मशहूर पत्रिका टाइम (28 मार्च,2011) ने विशेष अंक निकाला है. इस खास अंक में एक विशेष रिपोर्ट है ‘हाऊ जापान विल रिअवेकेन'(जापान कैसे पुन: उभरेगा?). इस रपट में कई मार्मिक प्रसंग हैं. मथने और बेचैन करने वाले.
कोजी हागा नामक जापानी से टाइम के पत्रकार मिलते हैं. मछली मारने वाले जहाज के कैप्टन हैं, वह. उनके गांव, घर और शहर (10,000 आबादी) के निशान मिट गये हैं. उस समय वह सागर की लहरों पर थे. अपने जहाज पर. लौटे, तो तुरंत अपने घर गये, टाइम के पत्रकार भी साथ थे. कुछ भी नहीं बचा था. परिवार के एलबम और बेटी के गुलाबी खिलौने बिखरे थे. पर कोजी बचे-खुचे अनाज ढूंढ़ रहे थे. जो मिला, लेकर वह जीवित लोगों को खिलाने गये. खाने की जो चीजें मिलीं, वह वहां आये लोगों में बांटा.
अगले दिन वह बचे लोगों के साथ गांव की सफाई-पुनर्निर्माण में लग गये. उस गांव को आबाद करने-बसाने में, जिसे प्रकृति ने नक्शे से ही मिटा दिया है. टाइम के पत्रकार को कहा, हम फिर अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश करेंगे, चीजों को यथावत बनाने की. यही जापान की जीवन पद्धति है. बिना किसी दया, याचना या अहंकार के कोजी हागा के ये शब्द निकले.
फुकुशिमा शहर स्थित परमाणु संचालित पावर प्लांट में विस्फोट पर दुनिया की नजर थी. पर कैसे इस प्लांट में काम करने वाले तकरीबन 150 लोगों ने इस विस्फोट को काबू करने के लिए काम किया, वह मानव इतिहास में साहस, वीरता और उद्देश्य परक जीवन का अमर अध्याय बनेगा. वहां जो भी काम करने गया, वह यह जान कर गया कि लौटने की कोई संभावना नहीं? बच भी गये, तो परमाणु विकिरणों से तबाह या अपाहिज जिंदगी की संभावना.
यह सब जान कर भी इस विस्फोट पर काबू करने के लिए जो काम पर गये, उनके परिवार वालों ने भी उन्हें साहस और धैर्य के साथ विदा किया. यह जानते हुए कि यह मृत्यु द्वार में प्रवेश की घड़ी है.
फिर मिलने की संभावना नहीं. यह पढ़ते हुए राजस्थान के उन राजाओं का इतिहास स्मरण आया, जहां वीरांगनाएं अपने पुत्रों या पति को तिलक लगा कर विदा करती थीं और कामना करती थीं कि विजय श्री (आजादी) मिले या मौत?
यह मानस समझने की जरूरत है. जापानी मानते हैं कि ऐसी प्राकृतिक आपदाओं में आप क्या कर सकते हैं? कुछ नहीं कर सकते. बचने की तरकीब के प्रति सजगता हो. पुनर्निर्माण का साहस और निजी व सामाजिक संकल्प हो. यही मनुष्य, समाज व देशों की असल ताकत है
पहचान भी. दूसरे विश्वयुद्ध में तबाह जापान को लोगों ने देखा, धूल और राख से चोटी की यात्रा. उस पीढ़ी के एक जापानी ने कहा कि हम उस युद्ध में हारे लोग थे. तबाह और बरबाद. पर वही मुल्क दो पीढ़ियों में दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला लोकतांत्रिक मुल्क बना. विषमता और गरीबी को पछाड़ कर हमने अपने लोगों के लिए दुनिया की श्रेष्ठ सुख-सुविधाएं और जीवन स्तर हासिल किये. एक 24 वर्षीय जापानी युवा ने टाइम से कहा कि अब हमारी पीढ़ी का समय है. हम जापान का पुनर्निर्माण करेंगे. यह आत्मविश्वास.
हम भारतीयों के लिए जापान के सबक क्या हैं? अनेक और असंख्य. सब कुछ सरकार भरोसे. माई-बाप सरकार. उधर विपक्ष ऐसी स्थिति में, सरकार को ऐसी प्राकृतिक तबाही के लिए जिम्मेवार बताने में सारी ऊर्जा लगा देगा. प्रभावित लोग छाती पीट-पीट कर राहत-मदद की बात करेंगे.
केंद्र, राहत पर नयी राजनीति शुरू कर देगा. राज्य सरकारें, केंद्र को कठघरे में खड़ा करने का अभियान चलायेंगी. लाश पर राजनीति. जापान के इस दुर्भाग्य में कहीं आपने यह सब सुना? हर जापानी चुपचाप सड़कों पर उतर आया, एक दूसरे की खामोश मदद में. उदास चेहरे, भरी आंखें. पर मदद और फर्ज के लिए तैयार हाथ. किसी से न कोई शिकायत-गिला. अपने कर्म पर विश्वास. गीता की मन:स्थिति.
जापान में एक कहावत है. कायर, सिपाही नहीं होते. हर जापानी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में मुल्क का सिपाही है. बहादुर और दुनिया के लिए प्रेरक उदाहरण के रूप में.
दिनांक : 27.03.2011

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