पाकिस्तान की पहली महिला फाइटर पायलट बनने के बाद से आयशा फारूक वहां की लाखों लड़कियों के लिए रोल मॉडल बन गयी हैं. आयशा उन छह महिला लड़ाकू पायलटों में से पहली हैं, जिन्होंने जंग में शामिल होने के लिए जरूरी परीक्षा को पास कर लिया है.
पाकिस्तान विंडो:रविवार डेस्क
माथे पर जैतूनी स्कार्फ लपेटे, हाथ में हेलमेट लिये आयशा फारूख उत्तरी पाकिस्तान के मुशफ एयरफोर्स बेस में जंगी विमान के सामने खड़ी हैं. उनके खूबसूरत चेहरे पर एक गर्व और आसमान हासिल करने की हसरत है. उनके चेहरे का यह गर्व लाजिमी है, आखिर उनका नाम पाकिस्तान के इतिहास में देश की पहली महिला फाइटर पायलट के तौर पर दर्ज जो हो गया है. 26 साल की फ्लाइट लेफ्टिनेंट आयशा फारूक, उन छह महिला लड़ाकू पायलटों में से पहली हैं, जिन्होंने जंग में शामिल होने के लिए जरूरी परीक्षा को पास कर लिया है. अब वह ‘वार रेडी’ हैं, यानी आनेवाले समय में अगर पाकिस्तान के जंगी हवाई बेड़े को युद्ध में शामिल होने का आदेश दिया जायेगा, तो उड़ान भरनेवाले पायलटों में फारूख का नाम भी शामिल होगा. आयशा ने इसी साल एफ-7 पीजी, जो कि चीनी मिग-21 जेट का पाकिस्तानी अवतार है, को चला कर अपनी ट्रेनिंग पूरी की.
पाकिस्तान के पंजाब के बहावलपुर की आयशा कहती हैं कि हमारे समाज में ज्यादातर लड़कियां एयरक्राफ्ट चलाने जैसी किसी चीज की कल्पना तक नहीं करतीं. पाकिस्तान जैसे सामंती और पुरुष प्रधान समाज में फाइटर एयर पायलट बनने का आयशा का सफर आसान नहीं रहा. आयशा बताती हैं कि सात साल पहले उनकी मां इस बात पर रजामंद नहीं थीं कि वह एयर फोर्स ज्वॉइन करें. आयशा जब सिर्फ तीन वर्ष की थीं, उनके पिता जो कि पेशे से डॉक्टर थे, का देहांत हो गया था. इस अनुभव ने आगे चल कर उन्हें चुनौतियों से मुकाबला करना सिखाया. एक साक्षात्कार में आयशा कहती हैं, ‘परिवार में मैं, हमेशा एक ‘पुरुष’ की तरह थी. बचपन में ही मुझे अपनी मां और छोटी बहन की हिफाजत की जिम्मेदारी का एहसास हो गया था. मैं एक यंग सोल्जर थी.’
17 साल की उम्र में आयशा ने एयरफोर्स ट्रेनिंग ज्वॉइन की, तब से अब तक उन्होंने कई कठिन परीक्षाओं को पास किया है. उनके साथ जिन 40 लड़कियों ने ट्रेनिंग ज्वॉइन की थी, वे आधे रास्ते तक भी नहीं पहुंच पायीं. आखिरी तीन में सिर्फ वे ही फाइटर पायलट ट्रेनिंग को पूरा कर सकीं. आयशा का शरीर दुबला-पतला है, जो कि आम तौर पर फाइटर पायलटों के लिए मुफीद नहीं माना जाता. वह कहती हैं,‘मेरा फ्रेम पतला होने के कारण मुझे जिम में घंटों मेहनत करनी पड़ी ताकि मैं जेट को संभाल सकूं.’ आयशा को हर स्तर पर पुरुषों की बराबरी करनी थी. उनसे बेहतर करना था. उन्हें जब भारत की सीमा से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर पंजाब के रफीक बेस के ट्वेंटी एयर सुपिरियरिटी स्क्वाड्रन में तैनात किया गया था, महिला अफसर होने के लिहाज से उन्हें कोई सुविधा नहीं मिली थी.
पाकिस्तान में लाखों ऐसी लड़कियां हैं, जो आयशा के कदमों के निशान के पीछे-पीछे चलना चाहती हैं. पाकिस्तानी युवा लड़कियों के लिए आयशा आज एक रोल मॉडल हैं. उनके पास पाकिस्तान के कोने-कोने से रोज दर्जनों फोन कॉल आते हैं. आयशा कहती हैं, ‘महिलाओं को फाइटर पायलट के तौर पर देखना समाज के लिए नया है. इसलिए मैं अपने देश की सेवा के साथ-साथ लोगों की सोच को भी बदलने का काम कर रही हूं. यह एक बड़ी जिम्मेवारी है, लेकिन मुझे इसमें मजा आ रहा है.’
यह पूछे जाने पर कि पुरुषों की दुनिया में उन्हें अकेलापन महसूस नहीं होता? आयशा कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि मैं उनसे अलग हूं. हम सब एक ही काम करते हैं.’ उनके साथी पायलटों से जब पूछा गया कि एक महिला के साथ फाइटर प्लेन चलाने का अनुभव कैसा रहा, तो उनका जवाब था, कौन महिला?’ फारूख कहती हैं,‘अगर कभी जंग हुई, तो मैं अपने सीनियर के साथ विंग मैन, अरे नहीं, विंग वुमन के तौर पर उड़ान भरूंगी.’ वह युद्ध की परिस्थितियों में अपनी काबिलियत साबित करना चाहती हैं और दिखाना चाहती हैं कि वे अपने देश के लिए कुछ कर सकती हैं. हालांकि इतिहास रचनेवाली आयशा आज भी कई मायनों में पारंपरिक पाकिस्तानी लड़की हैं. हाल ही में उनकी शादी प्रचलित तरीके से कर दी गयी.
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स्नेत : यूके टेलीग्राफ, न्यूयॉर्क टाइम्स