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सिस्टर निर्मला : एक दिव्यात्मा का हमारे बीच से चले जाना..

सिस्टर निर्मला ने मदर टेरेसा के प्रेम, सहृदयता व निर्धनतम की सेवा की विरासत को उम्र भर आगे बढ़ाया मदर टेरसा की उत्तराधिकारी और मिशनरीज ऑफ चैरिटी की पूर्व सुपीरियर जेनरल, पद्म विभूषण सिस्टर निर्मला के निधन से झारखंड के लोग मर्माहत हैं. उनका जन्म डोरंडा के एक नेपाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. यहीं […]

सिस्टर निर्मला ने मदर टेरेसा के प्रेम, सहृदयता व निर्धनतम की सेवा की विरासत को उम्र भर आगे बढ़ाया
मदर टेरसा की उत्तराधिकारी और मिशनरीज ऑफ चैरिटी की पूर्व सुपीरियर जेनरल, पद्म विभूषण सिस्टर निर्मला के निधन से झारखंड के लोग मर्माहत हैं. उनका जन्म डोरंडा के एक नेपाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. यहीं 10 साल की उम्र में उनके भीतर ईसा मसीह के साथ जुड़ने की प्रेरणा जगी.
मदर टेरेसा के बाद उन्होंने 133 देशों में वृद्ध, नि:शक्त, परित्यक्त बच्चे, अविवाहित माताएं, कुष्ठ रोगियों और अन्य जरूरतमंदों के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सेवा कार्यो को मजबूती के साथ आगे बढ़ाया. मनोज लकड़ा की रिपोर्ट.
कुसुम से कैथोलिक नन का सफर
सिस्टर निर्मला का जन्म डोरंडा में एक नेपाली ब्राrाण परिवार में 23 मार्च 1934 को हुआ था. ब्रिटिश सेना में कार्यरत पिता ने उनका नाम कुसुम जोशी रखा था. जब दस साल की थी, तब अपने घर लौटते समय निकट के एक कैथोलिक चर्च चली गयीं, जहां यीशु के पवित्र हृदय की प्रतिमा लगी थी. उसके सामने कुछ मसीही बच्चे प्रार्थना कर रहे थे.
तब अपनी बाहें फैलाये यीशु की उस प्रतिमा ने उन्हें भयभीत किया था, पर बाद में वही प्रतिमा उन्हें अपने पास बुलाती लगी. संत मार्गेट स्कूल में स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पटना वीमेंस कॉलेज में दाखिला लिया. वहां उनकी रूममेट प्रार्थना की घंटी बजने पर घुटने टेक कर प्रार्थना करती थी, तब उन्हें अपने अंदर कुछ महसूस होता था. लगता था कि ईश्वर उन्हें बुला रहे हैं. यीशु उनके पास साक्षात आये हैं. कोलकाता जाने पर उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई, तब उन्होंने स्वेच्छा से नन बनने का निर्णय लिया. पांच अप्रैल 1958 को उनका बपतिस्मा हुआ. उनका बपतिस्मा नाम ‘निर्मला’ रखा गया. सिस्टर निर्मला मार्च 1997 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जेनरल (प्रमुख) बनीं.
लुटेरों को सिस्टर ने कर दिया था क्षमा
सिस्टर निर्मला फरवरी 2004 में रांची आयीं थीं. उस समय उन्होंने रांची रीजन (बिहार- झारखंड) में मिशनरीज ऑफ चैरिटी के 15 केंद्रों का निरीक्षण किया था. डालटनगंज से हिनू लौटते समय लूटपाट करते हथियारबंद लुटेरों ने अन्य वाहनों के साथ उनकी गाड़ी भी रोक ली थी.
फादर टोनी से एक हजार रुपये छीन लिये. उनके पास कोई पैसे नहीं थे, यह जान कर लुटेरे ने उनकी गाड़ी पर डंडे से वार किया और आगे निकल गये. उस घटना के बाद जब पत्रकारों ने उनसे इस बाबत पूछा, तब सिस्टर ने कहा था कि वे गरीब लोग थे, जिनके पास खाने के लिए पैसे नहीं थे. इसलिए मांग रहे थे. उनके प्रति मन में कोई बुरे भाव नहीं हैं. उनके उस प्रवास के दौरान ही राधारानी कुष्ठ केंद्र की महिला शाखा का उदघाटन हुआ था.
‘ईश्वर के लिए झारखंड के लोग बहुमूल्य’
सिस्टर निर्मला चाहती थीं कि झारखंड के लोग आपस में प्रेम रखें. अपने प्रवास के दौरान उन्होंने डोरंडा स्थित रीजनल हाउस में कहा था कि ईश्वर के लिए झारखंड के लोग बहुमूल्य हैं. ईश्वर सभी से प्रेम करते हैं और सबकी चिंता करते हैं.
वह चाहते हैं कि यहां के लोग आपस में प्रेम भाव से रहें. प्रसन्न रहें. यहां के लोग इस राज्य को ऐसा स्थान बनायें, जहां सिर्फ शांति का निवास हो. एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सहानुभूति की भावना हो. असहाय और कमजोर के दर्द व तकलीफ को समझ पायें. उन्होंने कहा था कि ईश्वर को खुश करने के लिए मात्र देखने के लिए आंखें और सेवा भाव से भरे सच्चे हृदय की जरूरत है.
2009 में पद्म विभूषण से हुईं सम्मानित
सिस्टर निर्मला का जन्म 1934 को डोरंडा व मृत्यु 23 जून 2015 को कोलकाता में 81 वर्ष की उम्र में हुई. वर्ष 1934 से 1947 तक उनकी राष्ट्रीयता ब्रिटिश इंडियन की थी. 1947 में उन्हें भारतीय नागरिकता मिली. उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में मास्टर डिग्री हासिल की, साथ ही विधिक शिक्षा भी ग्रहण की. वे मिशनरीज ऑफ चैरिटी की उन प्रथम सिस्टर्स में थीं, जिन्होंने विदेश में मिशन का नेतृत्व किया.
उन्होंने पनामा में अपनी सेवा दी थी. गणतंत्र दिवस के मौके पर 26 जनवरी 2009 को उन्हें राष्ट्र की सेवा के लिए पद्म विभूषण से नवाजा
गया.
झारखंड की कलीसिया की गर्व थीं
कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो ने कहा कि सिस्टर निर्मला झारखंड की कलीसिया की गर्व थीं. उनकी आध्यात्मिकता और पवित्रता बिल्कुल मदर टेरेसा जैसी थी. वे चमत्कृत करती थीं.
अपने कार्यो के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध थीं. यह ईश्वर की इच्छा थी कि वे मदर टेरेसा की प्रथम उत्तराधिकारी बनीं. उनके परिवार में सिर्फ दो बहनें कैथोलिक बनी हैं. उनकी दूसरी बहन मारीटेरेस, अपोस्तोलिक कार्मेल धर्मसमाज से संबद्ध हैं और कानपुर में फातिमा कॉवेंट की सुपीरियर हैं.
ईश्वर ने सिस्टर निर्मला को हमारे लिए दिया था और अब अपने पास बुला लिया है. कोलकाता के आर्चबिशप थॉमस डिसूजा ने कहा कि मृत्यु के समय वह शांत थीं. अपने आसपास प्रार्थना करती धर्मबहनों से घिरी थीं. पिछले कुछ से हृदय रोग से पीड़ित थीं, पर उन्होंने कभी भी अपनी मुस्कान नहीं खोयी. उन्होंने मदर टेरेसा के प्रेम, सहृदयता व निर्धनतम की सेवा की विरासत को आगे बढ़ाया.
अंतिम मिस्सा आज शाम चार बजे
रांची रीजन की रीजनल सुपीरियर सिस्टर सेबेस्टिनो ने बताया कि वे सोमवार को सियालदाह (कोलकाता) स्थित संत जॉन मठ में सिस्टर निर्मला के साथ थीं. उनके लिए प्रार्थना करती रहीं.
सिस्टर निर्मला का अंतिम संस्कार 24 जून को होगा. अंतिम मिस्सा शाम चार बजे से कोलकाता के एजेसी बोस रोड स्थित मदर हाउस में चढ़ायी जायेगी. कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो मुख्य अनुष्ठाता होंगे. सिस्टर के साथ अपने संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि सिस्टर निर्मला में मदर टेरेसा की छवि थी. जो मदर ने सिखाया, वह उन्होंने कर दिखाया. वे विनम्र थीं और सबको खुले हृदय से स्वीकार करती थीं. उन्हें अपने झारखंडी होने पर गर्व था.
सदैव अच्छे कार्यो के लिए सभी को करती थीं प्रेरित
छोटी बहन सिस्टर मॉरी टेरेसा से बातचीत
मिशनरीज के प्रति उनका लगाव उन्हें कैथोलिक धर्म अपनाने पर मजबूर कर दिया
अनुपम
पटना : सिस्टर निर्मला आज हमारे बीच नहीं हैं. उनको खोने का अफसोस पूरी दुनिया को है. गरीबों की मसीहा मदर टेरेसा की उत्तराधिकारी सिस्टर निर्मला का एक खास रिश्ता बिहार की राजधानी पटना से भी रहा है.
मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सुपीरिअर जनरल निर्मला जोशी पटना वीमेंस कॉलेज की छात्र रही हैं. यहां से पढ़ाई खत्म करने के बाद मिशनरीज के प्रति उनका लगाव उन्हें कैथोलिक धर्म अपनाने पर मजबूर कर दिया.
मदर टेरेसा के बाद उनके पद भार को संभालने वाली निर्मला जोशी क ी छोटी बहन सिस्टर मॉरी टेरेसा बताती हैं कि 81 वर्ष बाद भी बड़ी बहन की यादें 24 वर्ष की यादों जैसी है. वे उनके 24 वर्ष की उम्र में मदर टेरेसा के कार्यो को जानने की ललक के बारे बताते हुए कहती हैं, कि वे भी निर्मला जैसी ही बनना चाहती थीं. इसी सोच के साथ निर्मला के बाद वे भी कै थोलिक धर्म को अपनायीं और उनके नक्शे कदम पर चलने लगी.
वे बताती हैं कि निर्मला 1954 में पटना वीमेंस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की. वे कॉलेज परिसर में स्थित छात्रवास में ही रहा करती थीं. वीमेंस कॉलेज के बाद वे पटना विश्वविद्यालय से ही राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कीं. उनका वकालत से भी विशेष लगाव रहा. इसके लिए वे इसका प्रशिक्षण भी लीं. वे बताती हैं कि निर्मला उन सिस्टरों में एक थी, जिन्हें मिशन के लिए विदेश में पनामा भेजा गया.
वे बचपन से शांत स्वभाव की थीं. सदैव लोगों को अच्छे कार्यो को लिए प्रेरित करती थीं. हम सभी भाई-बहनों ने भी उनसे अच्छे कार्यो की सीख ली. गरीबों के प्रति झुकाव ही उन्हें इस ओर लाया और आजीवन वे इसके लिए समर्पित रहीं. उन्होंने बताया कि 24 मार्च 2009 को जब वे वह अपने पद से सेवानिवृत्त हो रही थीं, तब भी वे खुद को उससे अलग नहीं समझ रही थीं.
वे सदैव कहती थीं, आत्मा कभी नहीं मरती और मेरी आत्मा सदैव उनके पास मौजूद रहेगी, जो लोगों को अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित करती रहेगी. पटना के डानबास्को स्कूल से जुड़ी 61 वर्षीया स्टेला शाह बताती हैं कि जब वे माउंट कार्मेल स्कूल की छात्र थीं, तो उन दिनों सिस्टर निर्मला पटना वीमेंस कालेज में शिक्षक के रूप में कार्यरत थीं.
सीएम ने जताया शोक
रांची. सिस्टर निर्मला के निधन पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शोक जताया है. उन्होंने कहा कि सिस्टर निर्मला ने अपना पूरा जीवन गरीब और दुखियों की सेवा में बिता दिया. उनके निधन से सभी दुखी हैं. उनकी कमी कभी पूरी नहीं की जा सकती.
मुंडा ने जताया शोक
रांची. मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टर निर्मला के निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने शोक जताया है. उन्होंने कहा कि सिस्टर निर्मला ने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में बिताया. सिस्टर के निधन से हम सभी शोकाकुल हैं.
कॉलेज के दिनों में भी करती थी धर्म पर बातें
सिस्टर की रूममेट रहीं पत्थलकुदवा बेक लेन (रांची) की फिलोमिना बेक से बातचीत
पटना वीमेंस कॉलेज में एनसीसी हेड थी कुसुम
रांची : पटना वीमेंस कॉलेज में 1953-1959 के दरम्यान सिस्टर निर्मला की रूममेट रहीं पत्थलकुदवा बेक लेन (रांची) की फिलोमिना बेक ने बताया कि कुसुम (सिस्टर निर्मला) उन्हें दीदी कह कर बुलाती थीं, क्योंकि वे उनसे दो महीने बड़ी थीं. कुसुम का जन्म 23 मार्च 1934 को और उनका 21 जनवरी 1934 को हुआ था.
उस रूम में उन दोनों के अतिरिक्त मटिल्डा, टेरेसा मिस्किट व एक अन्य छात्र रहती थी. कुसुम उस कॉलेज की एनसीसी हेड गर्ल थी. वह लाइब्रेरियन भी बनी. मटिल्डा और वह स्वयं कार्मेल कॉन्वेंट (पटना) की छात्राओं को पढ़ाती थीं.
मटिल्डा और टेरेसा बाद में सिस्टर्स बन गयीं. उन्होंने बताया कि सिस्टर निर्मला ने उन्हें दो रोजरी माला भी दी थीं. कॉलेज के दिनों में कुसुम धर्म संबंधी बातों पर अक्सर उनसे चर्चा करती थीं. बाद में वे इन बातों पर फादर ब्रेनन व फादर लायस से चर्चा करने लगी और बाद में ईसाई बनीं, पर उनसे ज्यादा मसीही साबित हुईं. मैडागास्कर में यौन रोग से पीड़ित युवाओं की सेवा भी की. सड़ते-गलते शरीर की साफ-सफाई करती थीं. मदर टेरेसा ने पोप से कहा था कि अपनी उत्तराधिकारी के रूप में वह एक जीवित संत देंगी. सिस्टर निर्मला वही जीवित संत थी.
निर्मल हृदय, संत मार्गेट्र व अन्य जगहों पर प्रार्थना : मंगलवार को डोरंडा स्थित रीजनल हाउस, जेल रोड स्थित निर्मल हृदय (नि:शक्त केंद्र), हिनू स्थित निर्मला शिशु भवन (अनाथ आश्रम), इटकी रोड स्थित राधा रानी कुष्ठ केंद्र, मिशनरीज ऑफ चैरिटी ब्रदर्स हरमू और कंटंप्लेटिव हाउस डिबडीह में विशेष प्रार्थना की गयी. बहुबाजार स्थित संत मार्गेट स्कूल, जहां सिस्टर निर्मला ने अपनी स्कूली पढ़ायी की थी, उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना हुई. शिक्षिका ग्लोरिया आइंद ने सिस्टर निर्मला के बारे में जानकारी दी.
अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए सिस्टर सेल्सा, सिस्टर जूलियाना व सिस्टर आंद्रे सहित कई धर्मबहनें कोलकाता रवाना हो गयीं हैं.

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