प्रधानमंत्री बनने के बाद भी चंद्रशेखर अपनी कार्यशैली में न व्यवस्था के बंदी बने हैं और न तामझाम से घिरे हैं. मामूली कार्यकर्ता से वह उसी गर्मजोशी से मिलते हैं और उसकी आवभगत करते हैं. देश के कोने-कोने से मिलने आये लोगों से बातचीत के क्रम में वह उनके दिल्ली प्रवास में ठहरने और कठिनाइयों का भी जायजा लेते हैं और कोई समस्या सामने आने पर तत्काल निबटाने का निर्देश भी देते हैं. असम के मुद्दे पर जिस तरह उनकी सरकार ने निर्णय किया, उसी तरह कश्मीर-पंजाब के संबंध में उनकी सरकार गंभीर ढंग से सोच-विचार रही है. केंद्र सरकार की नजर में कश्मीर में राज्य कर्मचारियों की दो माह से अधिक दिनों से चली आ रही हड़ताल खत्म होने से स्थिति सामान्य हो रही है. लेकिन सरकार की निगाह में इन सभी समस्याओं से भी गंभीर चुनौती है मौजूदा आर्थिक संकट केंद्र के वरिष्ठ नौकरशाह व्यक्तिगत बातचीत के क्रम में यह स्वीकार करते हैं कि सरकारी खजाना खाली है. कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं. प्रधानमंत्री, सरकार के दूसरे मंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों से बातचीत से आभास मिलता है कि सरकार शीघ्र ही इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए कठोर कदम उठायेगी. इन्हीं सूत्रों से बातचीत करने पर यह भी आभास मिला कि सरकार एक तरफ आतंकवादियों से बातचीत के लिए मन बना रही है, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान द्वारा प्रेरित ताकतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की योजना भी बना रही है. मौजूदा समस्याओं पर प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से उनके सरकारी आवास पर हुई हरिवंश की लंबी बातचीत के अंश.
सवाल : सत्ता में आने और अंदरूनी परिस्थितियों को देखने के बाद आपको आज देश के समक्ष मुख्य चुनौती क्या लगती है? उनसे निबटने की आपकी योजनाएं क्या हैं?
जवाब : सबसे बड़ी चुनौती इस देश के सामने आपसी विग्रह और विद्वेष है. अगर हम आपस में लड़ना बंद कर दें, तो सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है. मैं मानता हूं कि आज भी हमारे पास एक ऐसी शक्ति है कि हम अपने संकल्प से भारी कठिनाइयों-चुनौतियों से पार पा सकते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो आज यह है कि हम आपस में मिल कर काम कर सकेंगे या नहीं? यों तो हर समस्या अपने में जटिल है. लेकिन आर्थिक समस्या सबसे भयंकर दिखाई देती है. परिस्थितियां इतनी खराब हैं कि अगर देश के लोगों का मानस पूरे संकल्प के साथ और दृढ़ता के साथ कुरबानी के रास्ते पर जाने के लिए तैयार नहीं होता, तो शायद इस देश के लिए बहुत विषम परिस्थिति पैदा हो सकती है.
आज ऐसी स्थिति है, जिसमें हर आदमी को मितव्ययिता बरतनी होगी, हर आदमी को कठिनाइयों को झेलने के लिए तैयार रहना होगा. जो अल्प वेतनभोगी है उनको भी मदद करनी होगी. लेकिन यह तभी संभव है जब अभिजात्य वर्ग के लोग या वे लोग जिनके पास अधिक संपदा है, कुरबानी के लिए तैयार हों. यह सबसे बड़ी समस्या है कि ऐसे लोगों का मानस कैसे बदला जाये. दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि सबसे अधिक देश की कठिनाइयों की जानकारी उन लोगों को हो, जो आज देश के उद्योगपति या व्यापारी हैं और सबसे कम सहयोग देने के लिए उनके मन में तैयारी जान पड़ती है.
जो परिस्थितियों को सबसे अधिक समझते हैं. यह जो हमारे राष्ट्रीय जीवन की विसंगति है, इसका हल हमें ढूढ़ना होगा. मैं चाहूंगा कि भारत के उद्योगपति-व्यापारी राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को समझें और इस कठिन परिस्थिति में हमें सहयोग करें अन्यथा आज जो कठिनाइयां पैदा हो रही हैं. वे उनके लिए आत्मघाती सिद्ध होंगी और सारा समाज टूट सकता है. क्योंकि मैं कई बार कह चुका हूं कि गरीबी स्वयं अभिशाप है, लेकिन आनुपातिक गरीबी (एक बहुत गरीब दूसरा बहुत अमीर) जब बढ़ती है, तो समाज टूट जाता है. समाज में तनाव पैदा होता है. भारत उसी कगार पर पहुंच गया है. वह परिस्थिति अपने चरम बिंदु पर न पहुंच जाये, इसके लिए हमें तत्काल कुछ करना पड़ेगा.
लेकिन इन सबके लिए मानस तभी तैयार किया जा सकता है, जब हम आपस में लड़ना बंद करें. हम पंजाब में झगड़ रहे हैं. कश्मीर में चुनौती का सामना कर रहे हैं. असम में भी कुछ वैसी ही परिस्थितियां बनती जा रही है. इन सबका हल निकालना होगा. दुर्भाग्य यह है कि सारे काम जाति-धर्म के नाम पर हो रहे हैं. जाति प्रथा एक ऐसी कुरीति है, जिसके कारण समाज को बहुत कुछ भोगना पड़ा है. शायद आगे भी भोगना पड़ेगा. धर्म के नाम पर जो उन्माद खड़ा हो रहा है, उससे और अधिक संकट पैदा हो सकता है. कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि हिंदुत्व की भावना ऊंचा कर वे सत्ता में पहुंच सकते हैं लेकिन वह भूल जाते हैं कि हम दुनिया में आज अकेले नहीं रह सकते. सारी दुनिया की निगाहें आज हिंदुस्तान के ऊपर है.
बड़ी ताकतें भारत को बड़े राष्ट्र के रूप में नहीं देखना चाहतीं. जिस तरह से देश-विदेश में इस बात (उन्माद) की चर्चा हो रही है, उससे भारत की गरिमा गिरी है. भारत के भविष्य के लिए प्रश्नवाचक चिह्न खड़ा हो गया है. ये समस्याएं ऐसी हैं जिन पर हमें तत्काल ध्यान देना है. कभी-कभी हम लोग तात्कालिक लाभ के लिए, जो अत्यंत जघन्य अपराध होते हैं, उनको भी नजरअंदाज कर देते हैं. इस प्रवृत्ति से छुटकारा पाना होगा. किसी को रिझाने के लिए, किसी का मन जीतने क लिए ऐसे नारे देना, जिन्हें हम कभी पूरा न कर पायें, राष्ट्र के साथ विश्वासघात होता है. इसलिए हमें उस ओर भी ध्यान देना चाहिए. राजनीतिक समर्थन पाने के लिए थोड़ी-बहुत ऐसी बातें होती हैं, लेकिन सारी बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज कर महज इसी नजरिये से काम होगा, तो न देश का हित होगा न उनका, जो इस तरह का काम कर रहे हैं.
सवाल : आपका व्यक्तित्व व्यवस्था विद्रोही रहा है. अब सत्ता में आकर कैसा लगता है?
जवाब : असल में सत्ता में आये तो बहुत दिन नहीं हुए, पांच-छह हफ्ते हुए. लेकिन मुझे सत्ता में आने के बाद ऐसा लगता है कि जिन बातों के ऊपर मैं इतनी दृढ़ता-तेजी से बातें करता था, तब शायद मुझे वास्तविक परिस्थितियों का ज्ञान नहीं था. मैं जितना कहता था, वह बहुत कम था. आज जो हालत है और सत्ता में आकर जो मैंने देखा है, उससे मुझे ऐसा लगता है कि हम लोगों ने देश के साथ-राष्ट्र के साथ न्याय नहीं किया है.
जब राष्ट्र के साथ मैं न्याय की बात करता हूं तो मेरी नजर में वे लोग हैं जो मुल्क को चला रहे हैं, परिश्रम कर रहे हैं,मेहनत कर रहे हैं, परिश्रम कर रहे हैं, खेत-खलिहानों, गांवों और कल-कारखानों में काम कर रहे हैं. अगर उनके मन में विश्वास को हम लोग जगाते, जो संभव है और किया जा सकता है, तो शायद देश इस परिस्थिति में नहीं होता. एक ओर दुनिया की बड़ी ताकतें नहीं चाहती थीं और आज भी कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि भारत अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई अहम भूमिका अदा करे और दूसरी ओर हम लोग भी अपनी असावधानी या कमजोरियों के कारण भारत को उस स्थान पर ले जाने की संकल्प शक्ति नहीं रखते. इसलिए लगता है कि भले ही कभी-कभी असमर्थता की ही अभिव्यक्ति हो, लेकिन अपनी बातों को प्रखरता के साथ कहना एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है, जिसे निभाना राष्ट्र के प्रति महत्वपूर्ण कर्तव्य है.
सवाल : आप गांधी, आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश जी के विचारों से गहरे प्रभावित रहे हैं. मौजूदा आर्थिक संकट से निबटने के लिए उनके बताये क्या नुस्खे आप अपनायेंगे?
जवाब : गांधी जी ने ही हमें सीख दी थी, श्रम शक्ति के महत्व को पहचानने की. उन्होंने श्रम शक्ति का उल्लेख किया था और कहा था कि श्रम के द्वारा ही सब संभव है. श्रम ही धन है. उसी से धन पैदा होता है. इसलिए समाज में श्रमवान की पूजा होती है. लेकिन दुर्भाग्य है कि हम गांधी का नाम लेते हैं, लेकिन श्रम शक्ति का आदर-सम्मान करना हमने नहीं सीखा. एक ऐसा समाज हमने बना रखा है, जहां मिहनत करनेवाला अपमानित होता है, लेकिन दूसरों की मिहनत की बदौलत अपनी तिजोरियां भरनेवाला सम्मानित होता है, समाज में प्रतिष्ठा पाता है. आजादी के बाद यह प्रवृत्ति तेज हुई है. इसी कारण गांधी ने स्वावलंबन, स्वदेशी और श्रमिक की इज्जत और साथ ही मितव्ययिता का पाठ पढ़ाया था. क्योंकि मितव्ययिता एक नारा नहीं है, बल्कि एक काम करने का तरीका है, नुस्खा है, जिससे करोड़ों लोगों को विश्वास में लिया जा सकता है. जिस देश में लोकतंत्र, लोकशाही है, वहां करोड़ों के मन को जीतना है, तो उन्हें यह एहसास दिलाना होगा कि अगर देश गरीब है तो महज उनके लिए ही गरीब नहीं है. उन लोगों के लिए भी है जो बड़े पदों पर हैं और बड़ी कंपनियों की बदौलत अथाह धन के मालिक बने हैं. अगर यह बात होती तो आज देश बहुत हद तक आगे बढ़ चुका होता.
सवाल : इस दिशा में कोई कदम उठाने जा रहे हैं आप?
जवाब : मैंने आपसे जैसा कहा कि कदम तो उठाये जाने चाहिए, मैं इसके पक्ष में हूं, पर जो परिस्थितियां हैं, उसमें मैं यह नहीं कह सकता कि कितना समय लगेगा. मैं तो चाहता हूं कि कुछ कदम उठाये जाने चाहिए.
सवाल : आप छोटे राज्यों के समर्थक रहे हैं, झारखंड पर आपकी क्या राय है?
जवाब : देखिये छोटे राज्यों का समर्थक मैं आज भी हूं. रहा नहीं हूं, बल्कि हूं. आज भी मैं चाहता हूं. जनता पार्टी ने बहुत पहले छोटे राज्यों का समर्थन किया था. लेकिन आज की परिस्थितियों में कोई नया राज्य बनाने की बात, बड़ी अव्यावहारिक सी लगेगी. जिस समय पहली स्टेट रिआरगनाइजेशन कमिटी (राज्यों के पुनर्गठन के लिए गठित समिति) बनी थी, उस समय राष्ट्रीय आंदोलन की हर संभव समृद्ध विसारत के बावजूद देश धू-धू कर जलने लगा था. आज जब समाज में इतना तनाव है. इतनी उलझी समस्याएं खड़ी हैं, तो एक और नयी समस्या खड़ी करना उचित नहीं होगा. लेकिन उसी राज्य के अंतर्गत कोई विशेष सुविधा देने की बात हुई, विशेष स्टेट्स देने की बात होगी, तो उस पर सोचना चाहिए. पिछले दिनों झारखंड से संबंधित कमिटी की बैठक हुई है, उन लोगों ने कुछ राय दी है. मैंने सुना है बिहार सरकार ने भी अपनी राय भेजी है. अब उस पर आवश्यक कार्य हो रहे हैं.
सवाल : पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की गरीबी के खिलाफ आपके नेतृत्व में लंबा संघर्ष हुआ, अब आपकी सरकार इन इलाकों के लिए क्या करेगी?
जवाब : कोशिश कर रहे हैं. केवल पूर्वांचल या बिहार के लिए नहीं, बल्कि सभी पहाड़ी इलाकों के लिए, बुंदेलखंड भी बहुत पिछड़ा है. हम यह चाहते हैं कि हर ऐसे पिछड़े इलाके में कोई एक ऐसी संस्था हो, जो लोगों को विकास की दिशा में ले जाने में सहयोग करे.
सवाल : मौजूदा राजनीति कुछ महीनों में क्या करवट लेगी?
जवाब : कहना मुश्किल है क्योंकि परिस्थितियां इतनी अस्थिर कि इस संबंध में कोई वक्तव्य देना बड़ा कठिन काम होगा. इस कारण मेरे लिए कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा.
सवाल : मंत्रिमंडल का विस्तार कब तक करेंगे?
जवाब : संसद के अधिवेशन के बाद.