दक्षा वैदकर
सुबह घर से ऑफिस के लिए निकली, तो देखा कि गेट पर एक काले रंग की गाय बैठी है. हमेशा की तरह मैं गाड़ी स्टार्ट कर निकल गयी, जैसा कि सभी करते हैं. मीटिंग के बाद जब लंच के लिए दोबारा घर पहुंची, तो देखा कि मेरे मकान मालिक पहली मंजिल से बर्तन में पानी भर-भर कर ला रहे हैं और उस गाय को पिला रहे हैं.
उनके साथ उनका बेटा भी पानी ला रहा है, जिसने अभी 11वीं की परीक्षा दी है. पापा पानी पिला रहे थे और गाय को सहलाते हुए कह रहे थे- बेचारी को बहुत प्यास लगी थी. तभी तो इतना सारा पानी पीने के बाद भी प्यास नहीं बूझी. जा बेटा और पानी ले आ. बेटा गया और इस बार पानी के साथ रोटियां भी ले आया था. उसने कहा- पापा, हो सकता है कि उसे भूख भी लगी हो, इसलिए पानी पी-पी कर भूख भी मिटा रही हो. पिताजी उसे देख मुस्कुराये और रोटियां भी खिला दी.
यह दृश्य देख मैं भाव-विभोर हो गयी. अंकल के प्रति मेरे दिल में सम्मान और बढ़ गया. मुङो यह भी लगा कि मेरा ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया. मेरा ही क्या, कई लोगों का नहीं जाता. हम ये नहीं सोच पाते कि इतनी गरमी में हम प्यास बुझाने के लिए बैग में साथ पानी रखते हैं, रास्ते में रुक-रुक कर कोल्ड ड्रिंक पीते हैं, तो इन मूक प्राणियों को भी तो प्यास लगती होगी. इस क्रंकीट के जंगल वाले शहर में वे बेचारे पानी कहां से पीयेंगे? वे तो खरीद भी नहीं सकते और बोल कर मांग भी नहीं सकते. यह तो हमारा फर्ज है कि उनके बिना बोले हम इस बात को समङों.
मैं यह सब सोचते हुए सीढ़ियां चढ़ रही थी. पहली मंजिल पर पहुंची, तो देखा दरवाजा खुला हुआ था और दादी (मकान मालिक की मां) सामने सोफे पर बैठी थी. मैंने कहा- दादी, अंकल नीचे गाय को पानी पिला रहे हैं. पुण्य कमा रहे हैं. दादी ने कहा, तुम्हारे दादा जी भी ऐसे ही थे. उन्हीं के संस्कार बेटे में आये हैं और अब बेटे की देखा-देखी पोता भी यह सब करने लगा है. अभी वह मुझसे रोटी ले कर गया, जो हमने हमारे खाने के लिए बनायी थी. बोला, दादी हम लोग दोबारा रोटी बना लेंगे. अभी गाय को खिलाना जरूरी है.
बात पते की..
– आप अपने बड़ों से, मूक प्राणियों से, समाज के लोगों से जैसा व्यवहार करते हैं, आपके बच्चे भी वैसा ही व्यवहार सीखते हैं. इस बात का ध्यान रखें.
– पशु-पक्षी अपनी जरूरतों को बोल कर नहीं बता सकते. इसलिए उनका ख्याल रखें. उन्हें भोजन-पानी देंगे, तो आपको ही पुण्य मिलेगा.