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न्यायप्रियता के परमहंस

।। रवि दत्त बाजपेयी ।। न्यायमूर्ति नहीं, न्यायप्रिय-1 शिक्षा के अधिकार को कानूनी मान्यता दी न्यायमूर्ति कपाड़िया ने इस श्रृंखला की अंतिम कड़ी में जानिए न्यायमूर्ति सरोश होमी कपाड़िया को. सुप्रीम कोर्ट के कुछ अत्यंत लचीले मुख्य न्यायाधीशों के बाद न्यायमूर्ति कपाड़िया का चारित्रिक मेरु दंड, सुमेरु पर्वत–सा है. वह जिस दौर में भारत के […]

।। रवि दत्त बाजपेयी ।।

न्यायमूर्ति नहीं, न्यायप्रिय-1

शिक्षा के अधिकार को कानूनी मान्यता दी न्यायमूर्ति कपाड़िया ने

इस श्रृंखला की अंतिम कड़ी में जानिए न्यायमूर्ति सरोश होमी कपाड़िया को. सुप्रीम कोर्ट के कुछ अत्यंत लचीले मुख्य न्यायाधीशों के बाद न्यायमूर्ति कपाड़िया का चारित्रिक मेरु दंड, सुमेरु पर्वतसा है.

वह जिस दौर में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने, उनके पहले इस पद पर रहे लोगों के आचरण से भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका गंभीर सवालों के घेरे में थी. न्यायमूर्ति कपाड़िया ने आम लोगों के बीच शीर्ष न्यायपालिका में दोबारा विश्वास पैदा किया.

न्यायमूर्ति सरोश होमी कपाड़िया का जीवन चरित्र अपने आप में अत्यंत प्रेरणादायक वृत्तांत है, भारत का चीफ जस्टिस बनने पर न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर के बधाई के उत्तर में कपाड़िया ने लिखा, मैं एक निर्धन परिवार से आता हूं, मैंने अपने जीवन की शुरुआत एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में की थी, ईमानदारी ही मेरी एकमात्र संपत्ति है. न्यायमूर्ति कपाड़िया ने भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका की बागडोर ऐसे समय में संभाली, जब इस संस्था की विश्वसनीयता और निष्पक्षता गंभीर सवालों में थी, कपाड़िया ने अपने आचरण कार्यशैली से इस सर्वोच्च न्यायिक संस्था का गौरव पुनस्र्थापित किया.

24 सितंबर, 1947 को एक निम्न मध्यम वर्गीय पारसी परिवार में जन्मे सरोश होमी कपाड़िया के परिवार की आर्थिक पूंजी तो नगण्य थी, लेकिन उनके परिवार की नैतिक चारित्रिक पूंजी अक्षुण्ण थी.

कपाड़िया ने अपने जीवन के आरंभिक दिनों में मुंबई के जमीन मालिक बेरहामजी जीजीभाय के लिए संदेश वाहक की नौकरी पकड़ी, उनका काम जमीन मुकदमों के दस्तावेज विभिन्न वकीलों तक पहुंचाना था. इस दौरान कपाड़िया कोर्ट की कार्यवाही को ध्यान से सीखते और वकीलों से मुकदमों के बारे में विचार भी करते थे, इसी जिज्ञासा ने उन्हें कानून की पढ़ाई को प्रेरित किया.

वर्ष 1974 में उन्होंने बंबई हाइकोर्ट में वकालत शुरू की, 1991 में उन्हें हाइकोर्ट का जज नियुक्त किया गया, 2003 में वे सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए, मई 2010 से सितंबर 2012 के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे.

बंबई हाइकोर्ट में वकील कपाड़िया,भूमि राजस्व संबंधी मामलों के लिए मशहूर थे, घाटकोपर इलाके से जब 3000 लोगों को बेदखल करने का निर्णय हुआ, तो उन्होंने विस्थापितों का केस लड़ा और निर्वासन आदेश को निरस्त कराने में सफल रहे.

देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में, सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों को विभिन्न जजों को बांटने में हो रही धांधली रोकने के लिए रजिस्ट्री का काम अपने नियंत्रण में ले लिया, सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री पर आरोप था कि वे बेंच फिक्सिंग में लिप्त हैं अर्थात निश्चित मुकदमों को निश्चित जजों की पीठ के पास भेजा जाता था. इसी प्रकार न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कोर्ट में किसी मुकदमे में राहत पाने के लिए आकस्मिक सुनवाई की प्रक्रि या को बदल दिया, उनके कार्यकाल में आकस्मिक सुनवाई के लिए भी एक दिन पहले आवेदन देना अनिवार्य कर दिया.

न्यायमूर्ति कपाड़िया पहले प्रधान न्यायाधीश हुए, जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ, हाइकोर्ट में उनकी नियुक्ति के दौरान ही देश में नये आर्थिक सुधारों का सूत्रपात हुआ, कपाड़िया ने इस नव उदारवादी व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए स्वतंत्र निष्पक्ष न्यायपालिका स्थापित करने का प्रयास किया.

भारत के मुख्य सतर्कता आयुक्त (चीफ विजीलेंस कमिश्नर) के पद हेतु केंद्रीय मंत्रिमंडल की पसंद, पीवी थॉमस की नियुक्ति को निरस्त करने वाली पीठ में कपाड़िया भी थे. सहारा समूह की कपनियों को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी ठहराते हुए, सहारा समूह को अपने निवेशकों के पैसे लौटाने का आदेश दिया.

प्रदूषण मुक्त वातावरण को जीवन के अधिकार के साथ जोड़ कर कपाड़िया ने बेल्लारी सहित अन्य जिलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध का आदेश दिया. इस इलाके में अवैध खनन की जांच के लिए सीबीआइ को निर्देशित किया और इसी क्र में कर्नाटक के पूर्व मंत्री जी जनार्दन रेड्डी गिरफ्तार हुए. एक अत्यंत प्रसिद्ध मामले में न्यायमूर्ति कपाड़िया ने भारत सरकार द्वारा वोडाफोन कंपनी पर 11,000 करोड़ की टैक्स की मांग को गैरकानूनी मानते हुए निरस्त कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी के सभी आवंटन निरस्त किये जाने के बाद, राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से कानूनी सलाह मांगी, क्या प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए नीलामी ही एकमात्र तरीका है? न्यायमूर्ति कपाड़िया की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने केवल मूल प्रश्न का उत्तर दिया कि प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए नीलामी ही एकमात्र तरीका नहीं है, इस पीठ ने 2जी केस के बारे में कोई मंतव्य नहीं दिया. कपाड़िया ने भारत में शिक्षा के अधिकार को कानूनी मान्यता दी, नदियों को जोड़ने की परियोजना में सरकार को अविलंब कार्य शुरू करने का आदेश दिया था.

न्यायमूर्ति कपाड़िया हिंदू बौद्ध दर्शन से बहुत प्रभावित हैं, उन्होंने बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में काफी समय बिताया है और रामकृष्णविवेकानंद साहित्य का अध्ययन किया है. कपाड़िया मानते हैं कि एक जज को अनथक परिश्रम के साथ वीतरागी, तपस्वी का जीवन जीना चाहिए.

ओड़िशा में खनिज निकलने में लगी एक कंपनी ने लाभ की कमी के कारण वहां स्कूल, अस्पताल बनाने में असमर्थता जतायी, कपाड़िया ने प्रशिक्षित चार्टर्ड अकाउंटेंट की भांति उस कंपनी के वित्तीय प्रपत्रों को जांचा और निष्कर्ष निकाला कि कंपनी थोड़े नहीं, बल्कि500 करोड़ के अच्छे खासे मुनाफे में थी.

मुंबई हाइकोर्ट में जज कपाड़िया हमेशा ही, निचली मंजिल पर स्थित अदालत क्र मांक तीन में बैठते थे, यहां की परिपाटी है कि अपनी वरिष्ठता के साथ जज ऊपरी मंजिल में बने कक्षों में बैठते थे, लेकिन कपाड़िया हमेशा ही निचली मंजिल में रहे. यहां से अपने विदाई समारोह में कपाड़िया के कहा कि एक चतुर्थ वर्ग कर्मचारी के रूप में भोजनावकाश में वे इसी अदालत क्र मांक तीन के पास बैठा करते थे और इस स्थान से उनका भावनात्मक जुड़ाव है. न्यायमूर्ति कपाड़िया वकीलों से सामाजिक अवसरों पर मिलने से इतना बचते रहे कि इसे एक अन्य रूप में समझा गया, सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता संघ ने कपाड़िया की सेवानिवृत्ति के उपलक्ष्य में पारंपरिक रात्रि भोज का आयोजन भी नहीं किया. न्यायमूर्ति कपाड़िया के बारे में देश के एक महान न्यायप्रिय वीआर कृष्णा अय्यर का आकलनअपने 97 साल के जीवन में मैंने एक से एक उत्कृष्ट और सामथ्र्यवान जज देखे हैं, लेकिन इनमें से कोई भी कपाड़िया के पासंग में नहीं है, उनके जैसा, किसी आंख ने देखा नहीं, किसी दिल ने तसव्वुर नहीं किया और किसी जबान ने बराबर बताया नहीं.

न्यायमूर्ति कपाड़िया ने एक वीतरागी का जीवन जिया, अनथक परिश्रम, अटूट सत्यनिष्ठा और अखंड सच्चाई. भारत के न्यायप्रिय व्यक्तियों के उस दुर्लभ समूह में भी वह एक परमहंस हैं.

(समाप्त)

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