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ऐसी बातें फैलाने से आपका क्या फायदा?
दक्षा वैदकर तुमने सुना, संजू दो सब्जेक्ट में फेल हो गया. मैंने तो सुना है कि उसके पापा उसे हॉस्टल भेजने के बारे में सोच रहे हैं. वो राधिका है न, शर्मा जी की बेटी.. उसे मैंने दोस्तों के साथ आइसक्रीम खाते देखा.ग्रुप में अधिकांश लड़के ही थे और वो तो इतना हंस-हंस के बात […]
दक्षा वैदकर
तुमने सुना, संजू दो सब्जेक्ट में फेल हो गया. मैंने तो सुना है कि उसके पापा उसे हॉस्टल भेजने के बारे में सोच रहे हैं. वो राधिका है न, शर्मा जी की बेटी.. उसे मैंने दोस्तों के साथ आइसक्रीम खाते देखा.ग्रुप में अधिकांश लड़के ही थे और वो तो इतना हंस-हंस के बात कर रही थी कि पूछो मत.. लोग इसी तरह की बातें देखते और सुनते हैं और उसमें नमक-मिर्च लगा कर दूसरे को बोल देते हैं.
वे सच्चाई जानने की कोशिश ही नहीं करते कि क्या संजू सच में फेल हो गया? क्या उसे सच में होस्टल भेजा जा रहा है? शर्मा जी की बेटी जिनके साथ आइसक्रीम खा रही थी, वे लोग कौन थे? ये भी तो हो सकता है कि उसके कजिन भाई-बहन हो? और अगर उसके दोस्त भी हैं, तो इस बात को दूसरों को बताने की क्या जरूरत है?
एक कहानी सुनें. एक बार विख्यात दार्शनिक सुकरात के पास उनका एक परिचित मिलने आया और बोला- क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे मित्र के बारे में क्या सुना है?
सुकरात ने उसे टोकते हुए कहा, एक मिनट रुको. इसके पहले कि तुम मुङो मेरे मित्र के बारे में कुछ बताओ, उसके पहले मैं तीन छन्नी परीक्षण करना चाहता हूं. पहली छन्नी है ‘सत्य’. क्या आप विश्वास के साथ कह सकते हैं कि जो बात आप मुझसे कहने जा रहे हैं, वह पूर्ण सत्य है?
व्यक्ति ने कहा- जी नहीं, दरअसल वह बात मैंने अभी-अभी सुनी है, और.. सुकरात बोले- तो तुम्हें इस बारे में ठीक से कुछ नहीं पता है. अब दूसरी छन्नी लगा कर देखते हैं. दूसरी छन्नी है ‘भलाई’. क्या तुम मुझसे मेरे मित्र के बारे में कोई अच्छी बात कहने जा रहे हो? मित्र बोला- नहीं, बल्कि मैं तो.. सुकरात बोले- तो तुम मुङो कोई बुरी बात बताने जा रहे हो, लेकिन तुम्हें यह भी नहीं पता है कि यह बात सत्य है या नहीं.
अब तीसरी छन्नी का परीक्षण करते हैं. यह है ‘उपयोगिता’. क्या वह बात मेरे लिए उपयोगी है? मित्र ने कहा- शायद नहीं. यह सुनकर सुकरात ने कहा- जो बात तुम बताने जा रहे हो, वह न तो सत्य है, न अच्छी है और न ही मेरे लिए उपयोगी है, तो फिर ऐसी बात कहने का क्या फायदा?
बात पते की..
– दूसरों के बारे में फिजूल की बातें इधर-उधर फैलाने से पहले सोचें कि ऐसी ही कोई बात कोई आपके बारे में फैलायेगा, तो आपको कैसा लगेगा?
– सुनी सुनायी गयी बातों पर बिल्कुल यकीन न करें. जब तक आपको सत्य का पता न चल जाये, किसी से कोई बात न कहें. बात की उपोगिता देखें.
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