रांची: 1992 में संविधान के 73 वें संशोधन से एक तरफ जहां ग्राम सभाओं का गठन अनिवार्य हुआ, वहीं दूसरी तरफ त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी भी सुनिश्चित हुई. त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था 1959 में बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों पर लागू की गयी थी. तब से यह माना जा रहा था कि देश के समग्र विकास में महिलाओं की प्रतिभागिता आवश्यक है.
ग्रामीण स्तर पर महिलाओं को आगे लाने के उद्देश्य से संविधान में संशोधन कर कई नये प्रावधान जोड़े गये. इस संशोधन ने पंचायतों को संवैधानिक दरजा प्रदान किया और साथ ही पंचयात चुनावों में अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं समेत कुल 33 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए सुनिश्चित किया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि देश भर की लगभग 30 लाख महिलाएं चुनावों में प्रतिनिधित्व करने सामने आयी. बाद में कुछ राज्यों ने इस आरक्षण को बढ़ा कर 50 फीसदी तक कर दिया. संसद में लंबित एक विधेयक में इस आरक्षण को पूरे देश में ही 50 फीसदी करने का प्रस्ताव किया गया है.
इस आरक्षण के चलते महिलाओं के अस्तित्व और अधिकारों को स्वीकार करने का सिलसिला सिर्फ गांव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के कई जिलों में महिलाएं जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रभावशाली पद तक भी पहुंच चुकी हैं.