जॉन एफ नैश जूनियर
रजनीश उपाध्याय
करीब दो साल पहले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के जीवन संघर्ष पर स्टोरी के लिए सामग्री जुटाने के दौरान जॉन एफ नैश जूनियर को नजदीक से जान पाया था. इसके पहले तक सिर्फ यह पता था कि वह एक नोबल पुरस्कार विजेता हैं और उनके जीवन पर आधारित एक बेहतरीन फिल्म ‘ए ब्यूटीफुल माइंड’ बनी है, जिसने चार ऑस्कर पुरस्कार जीते थे.
वशिष्ठ नारायण सिंह और नैश के जीवन में समानता के कई बिंदु ढूंढ़े जा सकते हैं, जिनमें दो महत्वपूर्ण हैं. पहला, दोनों की मेधा व तीक्ष्ण बुद्धि. दूसरा, शिजोफ्रेनिया का प्रहार, एक ऐसी बीमारी, जिसमें व्यक्ति कल्पना लोक में जीता है.
यह एक संयोग ही है कि जिस जॉन एफ नैश की जिंदगी की जद्दोजहद की वजह से दुनिया ने सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी को फिल्म ‘ए ब्यूटीफुल माइंड’ के माध्यम से एक अलग नजर से देखा-समझा, उनकी मौत विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस (24 मई) पर हुई. नैश जिंदा होते, तो अगले महीने की 13 तारीख को 87 वर्ष के होते. रविवार को अमेरिका के न्यू जर्सी में एक सड़क दुर्घटना में नैश और उनकी पत्नी एलिसिया की मौत हो गयी. नैश को 1994 में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में जिस गेम थ्योरी के लिए नोबल पुरस्कार मिला था, वह ग्लोबलाइजेशन के बाद ज्यादा प्रासंगिक हुआ. मार्केट इकोनॉमी की कई गुत्थियों को सुलझाने में इस थ्योरी का व्यावहारिक इस्तेमाल हो रहा है. इस थ्योरी का एक भाग नैश संतुलन तो किसी क्षेत्र में भी सटीक बैठता है. नैश संतुलन एक ऐसी अवस्था माना जाता है, जिसमें अगर बाकी खिलाड़ियों की रणनीति मालूम हो तो संतुलन की हालत में हर खिलाड़ी अपनी उत्तम रणनीतिवाली अवस्था में होता है. नैश ने गणित के क्षेत्र में कई अन्य महत्वपूर्ण काम किये थे.
लेकिन, यह तो नैश का एक पक्ष था. असल में उन्होंने दुनिया को यह संदेश दिया कि शिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति भी स्वस्थ हो सकता है. साथ ही यह भी बताया कि दिमाग की खूबसूरती उसकी तिकड़मों और चतुराई में नहीं, बल्कि इसमें है कि तीक्ष्ण बुद्धि का इस्तेमाल दुनिया को बेहतर बनाने में किस तरह किया जाये. 13 जून, 1928 को अमेरिका के वर्जिनिया में जन्मे नैश युवावस्था में पैरानॉइड शिजोफ्रेनिया बीमारी से ग्रस्त हो गये थे.
इसमें मरीज वास्तविक और खुद की निर्मित दुनिया के बीच के अंतर को नहीं जान पाता. लेकिन, कुछ तो अपने समाज व परिवार के प्यार व उल्लास भरे माहौल और बाकी अपनी जिजिविषा की बदौलत वह इस बीमारी को पराजित कर पाये. भले ही इसमें एक लंबा समय लगा. 2007 में वह भारत भी आये थे. मुंबई के टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में व्याख्यान दिया था. नैश के जीवन और उनके काम को समझने के लिए 2001 में आयी ए ब्यूटीफुल माइंड फिल्म को देखना जरूरी है. इसका निर्देशन रॉन हावर्ड ने किया था.
नैश का किरदार रसेन क्रो ने निभाया था. फिल्म का एक डायलॉग है – शायद खूबसूरत दिमाग का होना अच्छा है, लेकिन इससे बड़ा तोहफा खूबसूरत दिल का होना है. सच ही तो था-शिजोफ्रेनिया से पीड़ित नैश भी तो इंसानियत की भलाई और उन्नत्ति के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल कर रहे थे, तभी तो वे खूबसूरत दिमागवाले ुइनसान कहलाये. फिल्म के दृश्य में नोबेल पुरस्कार समारोह में नैश का भाषण है. नैश कहते हैं -‘पूरे जीवन भर मैं तर्कऔर गणित को लेकर कार्य करता रहा.
तमाम वर्षो में तर्क के साथ कार्य करते वक्त मेरे मस्तिष्क को लौकिक, अलौकिक और पुन: इसी दुनिया में वापसी के अनुभव हुए. मैं सोचने पर मजबूर हुआ कि आखिर सही और गलत का निर्धारण कैसे होता है? कौन है, जो दुनिया के लिए तर्कऔर कारणों को निर्धारित करता है. आज मैं कहना चाहता हूं कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी खोज यही है कि प्यार के रहस्यमयी समीकरणों के बीच ही आप तर्कको पा सकते हैं.’
नैश के निधन के बाद शायद इस सवाल पर चर्चा हो कि पूंजी और बाजार के दौर में क्या खूबसूरत दिमागवाले बुद्धि का इस्तेमाल दुनिया को सुंदर बनाने के काम में लगाने का जोखिम लेंगे? इस पर जब भी चर्चा होगी, अर्थशास्त्री नैश की जिजिविषा याद आती रहेगी.